गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

कार्य~सिद्धि कारक गोरक्षनाथ मंत्र

मन्त्रः-
“ॐ गों गोरक्षनाथ महासिद्धः, सर्व-व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद्भवाः ।। २।।
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वैताला, राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।
नाऽकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दश्यते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों ।। ४।।
ॐ घण्टाकर्णो नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।।”

विधिः- यह मंत्र तैंतीस हजार या छत्तीस हजार जाप कर सिद्ध करें । इस मंत्र के प्रयोग के लिए इच्छुक उपासकों को पहले गुरु-पुष्य, रवि-पुष्य, अमृत-सिद्धि-योग, सर्वार्त-सिद्धि-योग या दिपावली की रात्रि से आरम्भ कर तैंतीस या छत्तीस हजार का अनुष्ठान करें । बाद में कार्य साधना के लिये प्रयोग में लाने से ही पूर्णफल की प्राप्ति होना सुलभ होता है ।
विभिन्न प्रयोगः- इस को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है । भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है । मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है ।
१॰ मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है । राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।
२॰ अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बाँधने से चौरासी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ।
३॰ इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।
४॰ आग लगने पर इक्कीस बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।
५॰ मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।
६॰ कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बाँधने पर ज्वर, एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं ।
७॰ सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
८॰ पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणि उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।
९॰ गर्भ पीड़ा के समय जल अभिमंत्रित कर गर्भवती को पिलावे, तो पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से होता है, मंत्र से १०८ बार मंत्रित करे ।
१०॰ सर्प का उपद्रव मकान आदि में हो, तो पानी को १०८ बार मंत्रित कर मकानादि में छिड़कने से भय दूर होता है । सर्प काटने पर जल को ३१ बार मंत्रित कर पिलावे तो विष दूर हो ।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

दीपावली का त्योहार और उससे जुड़ी कथाएं

दीपावली पांच पर्वों का त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरकचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि त्योहार मनाए जाते हैं.

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दीपावली पांच पर्वों का अनूठा त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि मनाए जाते हैं. घर के बड़े-बुजुर्ग घरों की साफ-सफाई करते हैं, घरों में सफेदी कराते हैं. घरों को सजाते हैं, नये साल का कलैंडर लगाते हैं. बच्चे घरों को सजाने में रुचि लेते हैं, साथ ही दीपावली के दिन से पहले ही पटाखे फोड़ना शुरू कर देते हैं. लोग आपस में मिठाइयां बांटते हैं.
बाजार नये-नये सामानों से सज जाते हैं. बाजारों में रोनक तो देखते ही बनती है. लोग इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. दीपावली की रात्रि को महानिशीथ के नाम से जाना जाता है. इस रात्रि में कई प्रकार के तंत्र-मंत्र से महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर पूरे साल के लिए सुख-समृद्धि और धन लाभ की कामना की जाती है.
दीपावली पर पूजन के लिए सामग्री
महालक्ष्मी पूजन में केसर, रोली, चावल, पान का पत्ता, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बतासे, सिन्दूर, सूखे मेवे, मिठाई, दही गंगाजल धूप, अगरबत्ती दीपक रुई, कलावा, नारियल और कलश के लिए एक ताम्बे का पात्र चाहिए.
कैसे करें दीपावली पर पूजन की तैयारी
1. एक थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनाएं या नवग्रह का यंत्र स्थापित करें. इसके साथ ही एक ताम्बे का कलश बनाएं, जिसमें गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपड़े से ढक कर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर रख दें.
2. जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया है, वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिटटी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश सरस्वती जी या ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवी देवताओं की मूर्तियां या चित्र सजायें.
3. कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही और गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फल-फूल आदि से सजाएं. इसके ही दाहिने ओर एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है.
4. दिवाली के दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है. इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रूप में उनका स्वागत किया जाता है. दिवाली के दिन जहां गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि और धन की कामना करते हैं, वहीं साधु-संत और तांत्रिक कुछ विशेष सिद्धियां अर्जित करने के लिए रात्रिकाल में अपने तांत्रिक कर्म करते हैं.
दीपावली पर पूजा का विधान
1. घर के बड़े-बुजुर्गों को या नित्य पूजा-पाठ करने वालों को महालक्ष्मी पूजन के लिए व्रत रखना चाहिए. घर के सभी सदस्यों को महालक्ष्मी पूजन के समय घर से बाहर नहीं जाना चाहिए. सदस्य स्नान करके पवित्र आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम करके स्वस्ति वाचन करें. फिर गणेशजी का स्मरण कर अपने दाहिने हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, दव्य और जल आदि लेकर दीपावली महोत्सव के निमित्त गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजनार्थ संकल्प करें.
2. कुबेर पूजन करना लाभकारी होता है. कुबेर पूजन करने के लिये सबसे पहले तिजोरी अथवा धन रखने के संदुक पर स्वस्तिक का चिन्ह बनायें, और कुबेर का आह्वान करें.
3. सबसे पहले गणेश और अम्बिका का पूजन करें. फिर कलश स्थापन, षोडशमातृका पूजन और नवग्रह पूजन करके महालक्ष्मी आदि देवी-देवताओं का पूजन करें. पूजन के बाद सभी सदस्य प्रसन्न मुद्रा में घर में सजावट और आतिशबाजी का आयोजन करें.
4. आप हाथ में अक्षत, पुष्प, जल और धन राशि ले लें. यह सब हाथ में लेकर संकसंकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए, ‘मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान और समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो’. सबसे पहले गणेश जी और गौरी का पूजन करिए.
5. हाथ में थोड़ा-सा जल ले लें और भगवान का ध्यान करते हुए पूजा सामग्री चढ़ाएं. हाथ में अक्षत और पुष्प ले लें. अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन करें. घर पूरा धन-धान्य और सुख-समृद्धि हो जाएगा.
6. दीपावली का विधिवत-पूजन करने के बाद घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी जी की आरती की जाती है. आरती के लिए एक थाली में रोली से स्वास्तिक बनाएं. उस में कुछ अक्षत और पुष्प डालें, गाय के घी का चार मुखी दीपक चलायें. और मां लक्ष्मी की शंख, घंटी, डमरू आदि से आरती उतारें.
7. आरती करते समय परिवार के सभी सदस्य एक साथ होने चाहिए. परिवार के प्रत्येक सदस्य को माता लक्ष्मी के सामने सात बार आरती घूमानी चाहिए. सात बात होने के बाद आरती की थाली को लाइन में खड़े परिवार के अगले सदस्य को दे देना चाहिए. यहीं क्रिया सभी सदस्यों को करनी चाहिए.
8. दीपावली पर सरस्वती पूजन करने का भी विधान है. इसके लिए लक्ष्मी पूजन करने के पश्चात मां सरस्वती का भी पूजन करना चाहिए.
9. दीपावली एवं धनत्रयोदशी पर महालक्ष्मी के पूजन के साथ-साथ धनाध्यक्ष कुबेर का पूजन भी किया जाता है. कुबेर पूजन करने से घर में स्थायी सम्पत्ति में वृद्धि होती है और धन का अभाव दूर होता है.
इनका पूजन इस प्रकार करें.
कैसे करें बही-खाता पूजन
1. बही खातों का पूजन करने के लिए पूजा मुहुर्त समय अवधि में नवीन खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से या फिर लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए. इसके बाद इनके ऊपर 'श्री गणेशाय नम:' लिखना चाहिए. इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए.
2. मां सरस्वती का ध्यान करें. ध्यान करें कि जो मां अपने कर कमलों में घटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, चन्द्र के समान जिनकी मनोहर कांति है. जो शुंभ आदि दैत्यों का नाश करने वाली है. ‘वाणी’ जिनका स्वरूप है, जो सच्चिदानन्दमय से संपन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूं. ध्यान करने के बाद बही खातों का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करना चाहिए.
3. जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया गया है, वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती जी की मूर्तियां सजायें. कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही ओर गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फूल आदि से सजाएं. इसके ही दाहिने और एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें, जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है.
दीपावली को मनाने के पीछे की कथाएं
पहली कथाः 
एक बार की बात है, एक बार एक राजा ने एक लकड़हारे पर प्रसन्न होकर उसे एक चंदन की लकड़ी का जंगल उपहार स्वरुप दे दिया. पर लकड़हारा तो ठहरा लकड़हारा, भला उसे चंदन की लकड़ी का महत्व क्या मालूम, वह जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर उन्हें जलाकर, भोजन बनाने के लिये प्रयोग करता था.
राजा को अपने अपने गुप्तचरों से यह बात पता चली तो, उसकी समझ में आ गया कि, धन का उपयोग भी बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाता है. यही कारण है कि लक्ष्मी जी और श्री गणेश जी की एक साथ पूजा की जाती है. ताकि व्यक्ति को धन के साथ साथ उसे प्रयोग करने कि योग्यता भी आयें.
श्री राम का अयोध्या वापस आनाः- धार्मिक ग्रन्थ रामायण में यह कहा गया कि जब चौदह साल का वनवास काट कर राजा राम, लंका नरेश रावण का वध कर, वापस अयोध्या आये थे, उन्ही के वापस आने की खुशी में अयोध्या वासियों ने अयोध्या को दीयों से सजाया था. अपने भगवान के आने की खुशी में अयोध्या नगरी दीयों की रोशनी में जगमगा उठी थी.
दूसरी कथाः 
भगवान कृ्ष्ण ने दीपावली से एक दिन पहले नरकासुर का वध किया था. नरकासुर एक दानव था और उसके पृथ्वी लोक को उसके आतंक से मुक्त किया था. इसी कारण बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रुप में भी दीपावली पर्व मनाया जाता है.
राजा और साधु की कथाः 
एक कथा के अनुसार, एक बार के साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार आया. इसके लिये उसने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी. तपस्या पूरी होने पर लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित वरदान दे दिया. वरदान प्राप्त करने के बाद वह साधु राजा के दरबार में पहुंचा और सिंहासन पर चढ़कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया.
राजा ने देखा कि मुकुट के अन्दर से एक विषैला सांप निकल कर भागा. यह देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की थी. इसी प्रकार एक बार साधु ने सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा, सभी के बाहर जाते ही, राजमहल गिर कर खंडहर में बदल गया. राजा ने फिर उसकी प्रशंसा की, अपनी प्रशंसा सुनकर साधु के मन में अहंकार आने लगा.
साधु को अपनी गलती का पता चला, उसने गणपति को प्रसन्न किया, गणपति के प्रसन्न होने पर राजा की नाराजगी दूर हो और साधु को उसका स्थान वापस दे दिया गया. इसीलिए कहा गया है कि धन के लिये बुद्धि का होना आवश्यक है. यही कारण कि दीपावली पर लक्ष्मी व श्री गणेश के रुप में धन व बुद्धि की पूजा की जाती है.
लक्ष्मी जी और साहूकार की बेटी की कथा
एक गांव में एक साहूकार था, उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी. जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पेड़ पर लक्ष्मी जी का वास था. एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा ‘मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ’. लड़की ने कहा की ‘मैं अपने पिता से पूछ कर आऊंगा’. यह बात उसने अपने पिता को बताई, तो पिता ने ‘हां’ कर दी. दूसरे दिन से साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया.
दोनों अच्छे मित्रों की तरह आपस में बातचीत करने लगे. एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई. अपने घर में लक्ष्मी जी उसका दिल खोल कर स्वागत किया. उसकी खूब खातिर की. उसे अनेक प्रकार के भोजन परोसे. मेहमान नवाजी के बाद जब साहूकार की बेटी लौटने लगी तो, लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया कि अब तुम मुझे कब अपने घर बुलाओगी. साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला तो लिया, परन्तु अपने घर की आर्थिक स्थिति देख कर वह उदास हो गई. उसे डर लग रहा था कि क्या वह, लक्ष्मी जी का अच्छे से स्वागत कर पायेगी.
साहूकार ने अपनी बेटी को उदास देखा तो वह समझ गया, उसने अपनी बेटी को समझाया, कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ-सफाई कर. चार बत्ती के मुख वाला दिया जला और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा. उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर उसके पास डाल गया. साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर भोजन की तैयारी की. थोड़ी देर में श्री गणेश के साथ लक्ष्मी जी उसके घर आ गई. साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की, उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई. और साहूकार बहुत अमीर बन गया.
इन्द्र और बलि कथाः 
एक बार देवताओं के राजा इन्द्र से डर कर राक्षस राज बलि कहीं जाकर छुप गये. देवराज इन्द्र दैत्य राज को ढूंढते- ढूंढते एक खाली घर में पहुंचे, वहां बलि गधे के रूप में छुपे हुए थे. दोनों की आपस में बातचीत होने लगी. उन दोनों की बातचीत अभी चल ही रही थी, कि उसी समय दैत्यराज बलि के शरीर से एक स्त्री बाहर निकली.
देव राज इन्द्र के पूछने पर स्त्री ने कहा, ‘मै, देवी लक्ष्मी हूं. मैं स्वभाव वश एक स्थान पर टिककर नहीं रहती हूं’. परन्तु मैं उसी स्थान पर स्थिर होकर रहती हूं, जहां सत्य, दान, व्रत, तप, पराक्रम तथा धर्म रहते हैं. जो व्यक्ति सत्यवादी होता है, ब्राह्मणों का हितैषी होता है, धर्म की मर्यादा का पालन करता है. उसी के यहां मैं निवास करती हूं. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि लक्ष्मी जी केवल वहीं स्थायी रूप से निवास करती है, जहां अच्छे गुणी व्यक्ति निवास करते हैं.

शनिवार, 23 जून 2018

क्यों मिलाते हैं कुंडली?

क्यों मिलाते हैं कुंडली?
1. दोनों के बीच आपसी सामंजस्य अच्छा रहे।
2. दोनों का स्वास्थ्य अच्‍छा रहे।
3. दोनों को रतिसुख अच्छे से प्राप्त हो।
4. दोनों में से किसी का भी अनिष्ट न हो।
5. दोनों को ही आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े।
6. दोनों को ही संतान सुख की प्राप्ति हो।

उक्त 6 पॉइंट में शारीरिक, आर्थिक और मानसिक सुख सिमटा हुआ है। इन तीनों ही तरह के सुखों से लड़का और लड़की किसी भी प्रकार से वंचित न हो इसीलिए दोनों की ही कुंडली का मिलान किया जाता है। मिलान नहीं होने से यह माना जाता है कि यदि मिलान उचित नहीं है और फिर भी दोनों विवाह कर लेते हैं तो किसी भी प्रकार का अनिष्ट न भी हो, तो हो सकता है कि उनमें सामंजस्यता कायम न हो या उन्हें संतान सुख प्राप्त न हो। कई बार तलाक की नौबत भी आ जाती है या दोनों में से कोई एक विधुर या विधवा हो जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं।


उक्त बातें जन्म पत्रिका में क्रमश: लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव से देखी जाती है। प्रथम से जातक का स्वास्थ्य, चतुर्थ से घर के उपयोग की वस्तुओं का सुख, सप्तम से परस्पर स्त्री-पुरुष का सहवास-सुख, अष्टम से दीर्घकालीन जीवन तथा द्वादश या 12वें भाव से क्रय-विक्रय की शक्ति आदि पर विचार किया जाता है।

प्रत्येक ग्रह अपने भ्रमणकाल या परिभ्रमण के समय पत्रिका के 12 में से किसी न किसी भाव में होता है। ऐसे में यदि इन 5 भावों में पाप ग्रह हों या ये 5 भाव पाप ग्रहों से दृष्ट हों व युति-संबंध रखते हों, तो दांपत्य जीवन का 5 भागित 12 अर्थात 40 प्रतिशत से अधिक जीवन प्रभावित होता है। ऐसे में हमारे देवज्ञों ने सुखी, समृद्ध तथा आनंदमय दांपत्य जीवन व्यतीत करने के लिए 'अष्टकूट मिलान' करने की परंपरा प्रारंभ की।

क्या होता है अष्टकूट मिलान?
इसमें लड़के और लड़की के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। शास्त्रों में मेलापक के 2 भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर लड़के और लड़की की शिक्षा, चरित्र, भाग्य, आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। नक्षत्रों के 'अष्टकूट' तथा 9 ग्रह (परंपरागत) इस रहस्य को व्यक्त करते हैं।

अष्टकूट सूत्र में दोनों के आपसी गुणधर्मों को 8 भागों में बांटा गया है। ये 8 गुण जन्म राशि एवं नक्षत्र पर आधारित हैं। दोनों की कुंडली में जन्म समय चन्द्र जिस राशि एवं नक्षत्र में होता है उन्हें जातक की व्यक्तिगत राशि एवं नक्षत्र कहा जाता है। 8 गुणों को क्रमश: 1 से 8 अंक दिए गए हैं, जो कुल मिलाकर 36 होते हैं। प्रत्येक गुण के अलग-अलग अंक निर्धारित हैं। इन 36 अंकों में से से कम से कम 19 अंक मिल जाने से मिलान को ठीक माना जाता है, लेकिन इसके लिए उसका नाड़ी मिलान होना जरूरी होता है।

अष्टकूट मिलान में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, राशीश (ग्रह मैत्री), गण, भटूक और नाड़ी का मिलान किया जाता है। अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं है। कुंडली में मंगल दोष भी देखा जाता है, फिर सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम और सप्तमेश को देख रहे ग्रह और सप्तमेश की युति आदि भी देखी जाती है।

अष्टकूट मिलान में 36 अंकों का वितरण
वर्ण : 1
वश्य : 2
तारा : 3
योनि : 4
मैत्री : 5
गण : 6
भकूट : 7
नाड़ी : 8

1. वर्ण : वर्ण का अर्थ होता है स्वभाव और रंग। वर्ण 4 होते हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। लड़के या लड़की की जाति कुछ भी हो लेकिन उनका स्वभाव और रंग उक्त 4 में से 1 होगा। मिलान में इस मानसिक और शारीरिक मेल का बहुत महत्व है। यहां रंग का इतना महत्व नहीं है जितना कि स्वभाव का है।

2. वश्य : वश्य का संबंध भी मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं- चतुष्पाद, कीट, वनचर, द्विपाद और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है?

3. तारा : तारा का संबंध दोनों के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाई गई है- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं।

4. योनि : योनि का संबंध संभोग से होता है। जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है। विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं- अश्व, गज, मेष, सर्प, श्‍वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। विवाह में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण योनि के कारण ही तो होता है। शरीर संतुष्टि के लिए योनि मिलान भी आवश्यक होता है।

5. राशिश या मैत्री : राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है।

6 . गण : गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैं- देव, राक्षस और मनुष्य।

7. भकूट : भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एक-दूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जाना जाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है।

8. नाड़ी : नाड़ी का संबंध संतान से है। दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी, यह नाड़ी पर निर्भर करता है। शरीर में रक्त प्रवाह और ऊर्जा का विशेष महत्व है। दोनों की ऊर्जा का मिलान नाड़ी से ही होता है।

शुक्रवार, 4 मई 2018

जेल यात्रा योग



वैदिक ज्योतिष के शास्त्रों में वर्णित परिभाषा अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मंगल और राहु एक साथ किसी घर में बैठकर युति कर रहे हों अथवा मंगल व राहू के बीच दृष्टि संबंध बन रहा हो तो ऐसी जन्मकुंडली में अंगारक योग निर्मित होता है। 

जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में "अंगारक दोष" का निर्माण होता है तो व्यक्ति का स्वभाव हिंसक पशु जैसा हो जाता है। अंगारक दोष वाले व्यक्तियों के अपने बंधुओं, मित्रों व रिश्तेदारों के साथ कटु संबंध स्थापित होते हैं। 

वैदिक ज्योतिष के फलित खंड अनुसार अंगारक दोष वाले व्यक्ति शुभाशुभ दशा-अंतर्दशा आने पर अपराधी बन जाते हैं व उसे अपने असामाजिक कार्यों के चलते लंबे समय तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ता है। कुंडली में किस भाव में अंगारक दोष बनता है उसके अनुसार ही फल प्राप्त होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं। जमिन जायदाद से जुड़ी परेशानियां व धन संबंधित परेशानियां बनी रहती हैं। माता के सुख में कमी आती है। संतान प्राप्ति में परेशानियां आती है इत्यादि।
सावन माह में भगवान शिव खुद विराजते हैं  और यहां मन्नतें पूर्ण करतेहै

राहू व मंगल की युति अथवा दृष्टि संबंध को "लाल किताब" में "पागल हाथी" अथवा "खूंखार शेर" कहकर संबोधित किया गया है।

 अगर यह योग किसी की कुंडली में होता है तो वो व्यक्ति अपनी मेहनत से नाम व पैसा कमाता है। ऐसे लोगों के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं। 

यह योग अच्छा और बुरा दोनों तरह का फल देने वाला है। वास्तविकता में वैदिक ज्योतिष व लाल किताब में "अंगारक दोष" की व्याख्या का मूल उद्देश है व्यक्ति की क्रूर मानसिकता को परिभाषित करना। 

अंगारक दोष का अशुभ फल तब प्राप्त होता है जब कुंडली में मंगल व राहु दोनों ही अशुभ होते हैं। कुंडली में मंगल व राहु में से किसी के शुभ होने की स्थिति में जातक को अशुभ फल प्राप्त नहीं होते। कुंडली में मंगल व राहु दोनों के शुभ होने पर शुभ फलकारी अंगारक योग बनाता है। यह योग शुभ व अशुभ दोनो रूप से फल देता है। 

वैदिक ज्योतिष अनुसार कुंडली में अंगारक की स्थिति होने पर इसकी शांति आवश्यक है अन्यथा लंबे समय तक परेशानियां बनी रहती है।
 
जन्मकुंडली के द्वादश भाव में आंगरक योग का फल 

- पहले भाव में अंगारक योग होने से पेट रोग, शरीर पर चोट, अस्थिर मानसिकता, क्रूरता होती है। 
 
- दूसरे भाव में अंगारक योग होने से धन में उतार-चढ़ाव व व्यक्ति का घर-बार बरबाद हो जाता है।
 
- तीसरे भाव में अंगारक योग होने से भाइयों से कटु संबंध बनते हैं परंतु व्यक्ति धोखेबाजी से सफल हो जाता है। 
 
- चौथे भाव में अंगारक योग होने से माता को दुख व भूमि संबंधित विवाद होते हैं।
 
- पांचवें भाव में अंगारक योग होने से संतानहीनता व जुए-सट्टे से लाभ होता है।
 
- छठे भाव में अंगारक योग होने से ऋण लेकर उन्नति होती है। व्यक्ति खूनी या शल्य-चिकित्सक भी बन सकता है। 
 
- सातवें भाव में अंगारक योग होने से दुखी विवाहित जीवन, नाजायज संबंध, विधवा या विधुर होना परंतु सांझेदारी से लाभ भी मिलता है। 
 
- आठवें भाव में अंगारक योग होने से पैतृक सम्पत्ति मिलती है परंतु सड़क दुर्घटना के प्रबल योग बनते हैं।
 
- नवें भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति भाग्यहीन, वहमी, रूढ़ीवादी व तंत्रमंत्र में लिप्त होते हैं।
 
- दसवें भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति अति कर्मठ, मेहनतकश, स्पोर्टमेन व अत्यधिक सफल होते हैं।
 
- ग्यारवें भाव में अंगारक योग होने से प्रॉपर्टी से लाभ मिलता है। व्यक्ति चोर, कपटी धोखेबाज़ होते हैं। 
 
- बारहवें भाव में अंगारक योग होने से इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट व रिश्वतख़ोरी से लाभ। ऐसे व्यक्ति बलात्कार जैसे अपराधों में भी लिप्त होते हैं।  
 
उपाय: अंगारक योग की अशुभता को दूर करने हेतु वैदिक शास्त्रों नें पुरुषों हेतु अंगारेश्वर महादेव व स्त्रियॉं  हेतु मंगलचंडिका में माध्यम से मंगल-राहु अंगारक योग की शांति होती है।

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017


ॐ सात पूनम काल का बारह बरस क्वार ,एको देवी जानिए चौदह भुवन द्वार द्वि पक्षे निर्मलिये तेरह देवन देव अष्ट भुजी परमेशवरी ग्यारह रूद्र सेव ,सोलह कला समपुरनी तिन नयन भरपूर दसो द्वारी तुही माँ , पांचो बाजे नूर ,नव निधि षट दर्शनी पन्द्रह तिथि जान चारो युग में कालका कर काली कल्याण ये मन्त्र थोडा तिक्ष्ण प्रकार का है ..इसलिए सात्विकता बरतिए ..और इसे प्रयोग में लाइए इस मन्त्र का जप करते हुए उपर वाला यन्त्र लिखे और जब साधना पूरी हो जाती है साधक के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता | प्रयोग -- जिस किसी व्यक्ति पर कैसी भी प्रेत बाधा या किसी का किया तंत्र प्रयोग (जैसे-मूठ) हो, तो इस यन्त्र को अष्ट गंध से लिख कर उस व्यक्ति को पहना दिया जाये तो बाधा शांत हो जाती है | कार्य सिद्धि के लिए इस यन्त्र को अपने साथ ले कर कार्य के लिए जा सकते है | मुक़दमे में विजय पाने के लिए है और घर छोड़ कर गये व्यक्ति को वापिस लाने के लिए इसका अचूक उपयोग किया जा सकता हैं .. इस चमत्कारिक यन्त्र से वशीकरण, के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है आप पहले इसे विधि विधान से गुरु अनुमति ले कर सिद्ध कर ले इसके प्रयोग तो सैकड़ो है उसे ... कसे करना हैं बता देंगे | यंत्र सिद्ध करते करते माँ के दर्शन हो जाते। है ऐसा मेरा और कई लोगो का अनुभव है |....

शाबर मंत्रो को जगाने का पर्याय -
अगर बहोत कोशिश करने पर मंत्र जागृत नहीं हो रहे हो तो इस साधना को करके कोई भी साबर मंत्र जग सकते हो आप ..इस साधना को कर इसे सार्थक करे ..( अगर फिर नहीं हुआ तो साबर कल्प्सिद्धि से तो होना ही होना है यह हमारा दावा है ( कल्प्सिद्धि एक विशेष क्रिया है ) मन्त्रः- ..... ॐ इक ओंकार, सत नाम करता पुरुष निर्मै निर्वैर अकाल मूर्ति अजूनि सैभं गुर प्रसादि जप आदि सच, जुगादि सच है भी सच, नानक होसी भी सच -... मन की जै जहाँ लागे अख, तहाँ-तहाँ सत नाम की रख । चिन्तामणि कल्पतरु आए कामधेनु को संग ले आए, आए आप कुबेर भण्डारी साथ लक्ष्मी आज्ञाकारी, बारां ऋद्धां और नौ निधि वरुण देव ले आए । प्रसिद्ध सत-गुरु पूर्ण कियो स्वार्थ, आए बैठे बिच पञ्ज पदार्थ । ढाकन गगन, पृथ्वी का बासन, रहे अडोल न डोले आसन, राखे ब्रह्मा-विष्णु-महेश, काली-भैरों-हनु-गणेश । सूर्य-चन्द्र भए प्रवेश, तेंतीस करोड़ देव इन्द्रेश । सिद्ध चौरासी और नौ नाथ, बावन वीर यति छह साथ । राखा हुआ आप निरंकार, थुड़ो गई भाग समुन्द्रों पार । अटुट भण्डार, अखुट अपार । खात-खरचत, कछु होत नहीं पार । किसी प्रकार नहीं होवत ऊना । देव दवावत दून चहूना । गुर की झोली, मेरे हाथ । गुरु-बचनी पञ्ज तत, बेअन्त-बेअन्त-बेअन्त भण्डार । जिनकी पैज रखी करतार, नानक गुरु पूरे नमस्कार । अन्नपूर्णा भई दयाल, नानक कुदरत नदर निहाल । ऐ जप करने पुरुष का सच, नानक किया बखान, जगत उद्धारण कारने धुरों होआ फरमान । अमृत-वेला सच नाम जप करिए । कर स्नान जो हित चित्त कर जप को पढ़े, सो दरगह पावे मान । जन्म-मरण-भौ काटिए,.. जो प्रभ संग लावे ध्यान । जो मनसा मन में करे, दास नानक दीजे दान ।।...

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

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6 से 12 फरवरी के बीच वृष, मिथुन, कर्क, कन्या औरवृश्चिक, राशि वालों के लिए अच्छा समय है। इन राशियों के नौकरीपेशा और बिजनेस करने वाले लोग सफल रहेंगे। नौकरी में प्रमोशन और बिजनेस में फायदा होगा। लव लाइफ के मामले में भी ये लोग लकी रहेंगे। इनके साथ सिंह, तुला और धनु राशि वाले कुछ लोगों के लिए समय सामान्य है। इनके अलावा मेष, मकर, कुंभ और मीन राशि वाले लोग इन दिनों में थोड़ा संभलकर रहें। नुकसान, विवाद और धन हानि के योग बन रहे हैं।
मेष -इन दिनों में आपके लिए फायदे वाली स्थिति बनेगी। नौकरी या धंधे में अपनी हैसियत को लेकर असुरक्षा का भाव आपके मन में आ सकता है, लेकिन सोचे हुए काम पूरे जरूर होंगे। मेष राशि के बेरोजगार लोगों के लिए समय अच्छा है। रोजगार मिलने के योग हैं। विरोधी आपको परेशान करने की असफल कोशिश करेंगे। जहां तक हो सके किसी के साथ बहस में न उलझें।
भावनाओं को नियंत्रण में रखें। इन दिनों में अपनी वाणी पर भी कंट्रोल करें। सोच-समझकर बोलें। कार्यक्षेत्र की चुनौतियां कम हो सकती है। सामूहिक कार्यों में सफलता मिलेगी। जीवन की दिशा में बदलाव भी शुरू हो रहा है। इन दिनों में आपके कुछ शक दूर हो सकते हैं। आकर्षण बढ़ेगा। सेहत को लेकर लापरवाही न करें। कोई नया सदस्य परिवार से जुड़ सकता है।
लव -लव लाइफ में इस सप्ताह उतार-चढ़ाव आ सकते हैं, यानी दाम्पत्य सुख कम-ज्यादा हो सकता है। अविवाहित लोगों को विवाह प्रस्ताव मिलेंगे।
करियर-करियर के मामलों में समय अच्छा है। बिजनेस की समस्याएं दूर होंगी। बेरोजगार लोगों को थोड़ी कोशिश के बाद रोजगार मिल सकता है। रोजगार को लेकर मन में चल रही आशंकाएं खत्म होंगी। करियर के लिहाज से सप्ताह सामान्य रहेगा, लेकिन फिर भी कोशिश करते रहें। उचित मार्गदर्शन मिलेगा, उसका फायदा उठाएं। तभी आगे जाकर सफलता मिलेगी।
हेल्थ-इस सप्ताह आपको अपनी सेहत पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है। पेट संबंधित रोगों के कारण परेशानी हो सकती है।
वृष -इस सप्ताह नए लोगों से मुलाकात हो सकती है और उनके साथ बीता समय आपके लिए सुखद रहेगा। नए विचार आएंगे। इस राशि के नौकरीपेशा लोग नई नौकरी तलाश कर सकते हैं। धन लाभ होगा, हालांकि उससे आपको संतुष्टि कम ही मिल पाएगी। कार्यक्षेत्र में कोई तनाव है, तो वह सुलझ जाएगा। आप ऐसी चीजों और लोगों से दूर होते जाएंगे, जो आपको टेंशन देते हैं या आपके लिए उपयोगी नहीं हैं। आप किसी का भला करने की कोशिश करेंगे। आसपास के लोगों को खुश रखने की कोशिश भी करेंगे। इस सप्ताह अपनी बुरी आदतों पर कंट्रोल करें। काम में अपनी पूरी ताकत झोंक दें। किसी पुराने न्यायालयीन मामले का फैसला भी इन दिनों में हो सकता है। लव लाइफ ठीक रहेगी।
लव -इस सप्ताह आपकी लव लाइफ भी ठीक रहेगी। जीवनसाथी से पुराने विवाद खत्म हो जाएंगे। नए रिश्तों की शुरुआत होगी।
करियर- इस सप्ताह प्रोफेशनल लाइफ में कुछ तनाव हो सकता है। कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन तनाव की स्थिति बन सकती है। पैसों के लेन-देन में सावधानी रखें। कोई नया निवेश भी न करें तो बेहतर रहेगा। यह सप्ताह स्टूडेंट्स के लिए बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। करियर को लेकर चिंता रहेगी। हालांकि, सप्ताह के आखिरी समय तक कोई बहुत बड़ी सफलता भी जरूर हाथ लग सकती है।
हेल्थ-इस सप्ताह आप सेहत को लेकर टेंशन न लें। आपकी पुरानी सेहत संबंधी समस्याओं का समाधान इस सप्ताह हो जाएगा।
मिथुन -इस सप्ताह नौकरी और बिजनेस में आपके सामने ऐसे मौके आएंगे जिनका फायदा आने वाले दिनों में मिलेगा। आप सकारात्मक रहेंगे। खुद पर गर्व कर सकेंगे। इन दिनों में आपकी बहुत-सी इच्छाएं पूरी हो सकती है। ऑफिस के किसी ऐसे काम में सफलता मिलेगी, जिसमें कई लोग शामिल हैं। पारिवारिक या साझेदारी के बिजनेस में भी सफलता मिलेगी। किसी पुराने दोस्त से मिलने या पुराने मामले को निपटाने का मौका मिलेगा।
करीबी रिश्तेदार आपके लिए महत्वपूर्ण रहेंगे। सप्ताह के बीच में आपकी मुलाकात ऐसे व्यक्ति से होगी, जो आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आखिरी दिनों में आश्चर्यजनक स्थितियां बन सकती है। दोस्तों और भाइयों का सहयोग मिलेगा। कार्य शैली का विकास होगा। परिवार में मांगलिक उत्सव होंगे या इस समय आपको धार्मिक यात्राओं पर भी जाने का मौका मिलेगा।
लव -लव लाइफ के लिए समय अच्छा है। प्रेमियों में खूब बनेगी। जीवनसाथी से अच्छा व्यवहार करेंगे। साथ में समय बीतेगा
प्रोफेशन-मिथुन राशि वालों की प्रोफेशनल लाइफ इस सप्ताह ठीक रहेगी। बिजनेस में फायदा होगा। पुराने निवेश से इस सप्ताह फायदा होगा। नौकरीपेशा वालों के लिए समय सामान्य है।
करियर-इस सप्ताह करियर संबंधी कोई अच्छी खबर मिलेगी। मेहनत का फायदा मिल सकता है, लेकिन कोई भी फैसला जल्दबाजी में न लें।
हेल्थ-परिवार की किसी महिला सदस्य की सेहत को लेकर चिंता रहेगी।

सोमवार, 9 जनवरी 2017

मेष- चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ

राशि स्वरूप: मेंढा जैसा, राशि स्वामी- मंगल।

1. राशि चक्र की सबसे प्रथम राशि मेष है। जिसके स्वामी मंगल है। धातु संज्ञक यह राशि चर (चलित) स्वभाव की होती है। राशि का प्रतीक मेढ़ा संघर्ष का परिचायक है।

2. मेष राशि वाले आकर्षक होते हैं। इनका स्वभाव कुछ रुखा हो सकता है। दिखने में सुंदर होते है। यह लोग किसी के दबाव में कार्य करना पसंद नहीं करते। इनका चरित्र साफ -सुथरा एवं आदर्शवादी होता है।

3. बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी होते हैं। समाज में इनका वर्चस्व होता है एवं मान सम्मान की प्राप्ति होती है।

4. निर्णय लेने में जल्दबाजी करते है तथा जिस कार्य को हाथ में लिया है उसको पूरा किए बिना पीछे नहीं हटते।

5. स्वभाव कभी-कभी विरक्ति का भी रहता है। लालच करना इस राशि के लोगों के स्वभाव मे नहीं होता। दूसरों की मदद करना अच्छा लगता है।

6. कल्पना शक्ति की प्रबलता रहती है। सोचते बहुत ज्यादा हैं।

7. जैसा खुद का स्वभाव है, वैसी ही अपेक्षा दूसरों से करते हैं। इस कारण कई बार धोखा भी खाते हैं।

8. अग्नितत्व होने के कारण क्रोध अतिशीघ्र आता है। किसी भी चुनौती को स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है।

9. अपमान जल्दी भूलते नहीं, मन में दबा के रखते हैं। मौका पडने पर प्रतिशोध लेने  से नहीं चूकते।

10. अपनी जिद पर अड़े रहना, यह भी मेष राशि के स्वभाव में पाया जाता है। आपके भीतर एक कलाकार छिपा होता है।

11. आप हर कार्य को करने में सक्षम हो सकते हैं। स्वयं को सर्वोपरि समझते हैं।

12. अपनी मर्जी के अनुसार ही दूसरों को चलाना चाहते हैं। इससे आपके कई दुश्मन खड़े हो जाते हैं।

13. एक ही कार्य को बार-बार करना इस राशि के लोगों को पसंद नहीं होता।

14. एक ही जगह ज्यादा दिनों तक रहना भी अच्छा नहीं लगता। नेतृत्व छमता अधिक होती है।

15. कम बोलना, हठी, अभिमानी, क्रोधी, प्रेम संबंधों से दु:खी, बुरे कर्मों से बचने वाले, नौकरों एवं महिलाओं से त्रस्त, कर्मठ, प्रतिभाशाली, यांत्रिक कार्यों में सफल होते हैं।
वृष- ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो

राशि स्वरूप- बैल जैसा, राशि स्वामी- शुक्र।

राशि परिचय

1. इस राशि का चिह्न बैल है। बैल स्वभाव से ही अधिक पारिश्रमी और बहुत अधिक वीर्यवान होता है, साधारणत: वह शांत रहता है, किन्तु क्रोध आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है।

2. बैल के समान स्वभाव वृष राशि के जातक में भी पाया जाता है। वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है।

3. इसके अन्तर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण और मृगशिरा के प्रथम दो चरण आते हैं।

4. इनके जीवन में पिता-पुत्र का कलह रहता है, जातक का मन सरकारी कार्यों की ओर रहता है। सरकारी ठेकेदारी का कार्य करवाने की योग्यता रहती है।

5. पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा जीविकोपार्जन का साधन होता है। जातक अधिकतर तामसी भोजन में अपनी रुचि दिखाता है।

6. गुरु का प्रभाव जातक में ज्ञान के प्रति अहम भाव को पैदा करने वाला होता है, वह जब भी कोई बात करता है तो स्वाभिमान की बात करता है।

7. सरकारी क्षेत्रों की शिक्षा और उनके काम जातक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

8. किसी प्रकार से केतु का बल मिल जाता है तो जातक सरकार का मुख्य सचेतक बनने की योग्यता रखता है। मंगल के प्रभाव से जातक के अंदर मानसिक गर्मी प्रदान करता है।

9. कल-कारखानों, स्वास्थ्य कार्यों और जनता के झगड़े सुलझाने का कार्य जातक कर सकता है, जातक की माता के जीवन में परेशानी ज्यादा होती है।

10. ये अधिक सौन्दर्य प्रेमी और कला प्रिय होते हैं। जातक कला के क्षेत्र में नाम करता है।

11. माता और पति का साथ या माता और पत्नी का साथ घरेलू वातावरण मे सामंजस्यता लाता है, जातक अपने जीवनसाथी के अधीन रहना पसंद करता है।

12. चन्द्र-बुध जातक को कन्या संतान अधिक देता है और माता के साथ वैचारिक मतभेद का वातावरण बनाता है।

13. आपके जीवन में व्यापारिक यात्राएं काफी होती हैं, अपने ही बनाए हुए उसूलों पर जीवन चलाता है।

14.  हमेशा दिमाग में कोई योजना बनती रहती है। कई बार अपने किए गए षडयंत्रों में खुद ही फंस भी जाते हैं।

15.  रोहिणी के चौथे चरण के मालिक चन्द्रमा हैं, जातक के अंदर हमेशा उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहती है, वह अपने ही मन का राजा होता है।
मिथुन- का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह

राशि स्वरूप- स्त्री-पुरुष आलिंगनबद्ध, राशि स्वामी- बुध।

1. यह राशि चक्र की तीसरी राशि है। राशि का प्रतीक युवा दम्पति है, यह द्वि-स्वभाव वाली राशि है।

2. मृगसिरा नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक मंगल-शुक्र हैं। मंगल शक्ति और शुक्र माया है।

3. जातक के अन्दर माया के प्रति भावना पाई जाती है, जातक जीवनसाथी के प्रति हमेशा शक्ति बन कर प्रस्तुत होता है। साथ ही, घरेलू कारणों के चलते कई बार आपस में तनाव रहता है।

4. मंगल और शुक्र की युति के कारण जातक में स्त्री रोगों को परखने की अद्भुत क्षमता होती है।

5. जातक वाहनों की अच्छी जानकारी रखता है। नए-नए वाहनों और सुख के साधनों के प्रति अत्यधिक आकर्षण होता है। इनका घरेलू साज-सज्जा के प्रति अधिक झुकाव होता है।

6. मंगल के कारण जातक वचनों का पक्का बन जाता है।

7. गुरु आसमान का राजा है तो राहु गुरु का शिष्य, दोनों मिलकर जातक में ईश्वरीय ताकतों को बढ़ाते हैं।

8. इस राशि के लोगों में ब्रह्माण्ड के बारे में पता करने की योग्यता जन्मजात होती है। वह वायुयान और सेटेलाइट के बारे में ज्ञान बढ़ाता है।

9. राहु-शनि के साथ मिलने से जातक के अन्दर शिक्षा और शक्ति उत्पादित होती है। जातक का कार्य शिक्षा स्थानों में या बिजली, पेट्रोल या वाहन वाले कामों की ओर होता है।

10. जातक एक दायरे में रह कर ही कार्य कर पाता है और पूरा जीवन कार्योपरान्त फलदायक रहता है। जातक के अंदर एक मर्यादा होती है जो उसे धर्म में लीन करती है और जातक सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अपने को रत रखता है।

11.  गुरु जो ज्ञान का मालिक है, उसे मंगल का साथ मिलने पर उच्च पदासीन करने के लिए और रक्षा आदि विभागों की ओर ले जाता है।

12. जातक अपने ही विचारों, अपने ही कारणों से उलझता है। मिथुन राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है, जो चन्द्रमा की निर्णय समय में जन्म लेते हैं, वे मिथुन राशि के कहे जाते हैं।

13. बुध की धातु पारा है और इसका स्वभाव जरा सी गर्मी-सर्दी में ऊपर नीचे होने वाला है। जातकों में दूसरे की मन की बातें पढऩे, दूरदृष्टि, बहुमुखी प्रतिभा, अधिक चतुराई से कार्य करने की क्षमता होती है।

14. जातक को बुद्धि वाले कामों में ही सफलता मिलती है। अपने आप पैदा होने वाली मति और वाणी की चतुरता से इस राशि के लोग कुशल कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी बन जाते हैं।

15. हर कार्य में जिज्ञासा और खोजी दिमाग होने के कारण इस राशि के लोग अन्वेषण में भी सफलता लेते रहते हैं और पत्रकार, लेखक, मीडियाकर्मी, भाषाओं की जानकारी, योजनाकार भी बन सकते हैं।
कर्क- ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो

राशि स्वरूप- केकड़ा, राशि स्वामी- चंद्रमा।

1. राशि चक्र की चौथी राशि कर्क है। इस राशि का चिह्न केकड़ा है। यह चर राशि है।

2. राशि स्वामी चन्द्रमा है। इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।

3. कर्क राशि के लोग कल्पनाशील होते हैं। शनि-सूर्य जातक को मानसिक रूप से अस्थिर बनाते हैं और जातक में अहम की भावना बढ़ाते हैं।

4. जिस स्थान पर भी वह कार्य करने की इच्छा करता है, वहां परेशानी ही मिलती है।

5. शनि-बुध दोनों मिलकर जातक को होशियार बना देते हैं। शनि-शुक्र जातक को धन और जायदाद देते हैं।

6. शुक्र उसे सजाने संवारने की कला देता है और शनि अधिक आकर्षण देता है।

7. जातक उपदेशक बन सकता है। बुध गणित की समझ और शनि लिखने का प्रभाव देते हैं। कम्प्यूटर आदि का प्रोग्रामर बनने में जातक को सफलता मिलती है।

8. जातक श्रेष्ठ बुद्धि वाला, जल मार्ग से यात्रा पसंद करने वाला, कामुक, कृतज्ञ, ज्योतिषी, सुगंधित पदार्थों का सेवी और भोगी होता है। वह मातृभक्त होता है।

9. कर्क, केकड़ा जब किसी वस्तु या जीव को अपने पंजों को जकड़ लेता है तो उसे आसानी से नहीं छोड़ता है। उसी तरह जातकों में अपने लोगों तथा विचारों से चिपके रहने की प्रबल भावना होती है।

10. यह भावना उन्हें ग्रहणशील, एकाग्रता और धैर्य के गुण प्रदान करती है।

11. उनका मूड बदलते देर नहीं लगती है। कल्पनाशक्ति और स्मरण शक्ति बहुत तीव्र होती है।

12. उनके लिए अतीत का महत्व होता है। मैत्री को वे जीवन भर निभाना जानते हैं, अपनी इच्छा के स्वामी होते हैं।

13. ये सपना देखने वाले होते हैं, परिश्रमी और उद्यमी होते हैं।

14. जातक बचपन में प्राय: दुर्बल होते हैं, किन्तु आयु के साथ साथ उनके शरीर का विकास होता जाता है।

15. चूंकि कर्क कालपुरुष की वक्षस्थल और पेट का प्रतिधिनित्व करती है, अत: जातकों को अपने भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
सिंह- मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे

राशि स्वरूप- शेर जैसा, राशि स्वामी- सूर्य।

1. सिंह राशि पूर्व दिशा की द्योतक है। इसका चिह्न शेर है। राशि का स्वामी सूर्य है और इस राशि का तत्व अग्नि है।

2. इसके अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वा फाल्गुनी के चारों चरण और उत्तराफाल्गुनी का पहला चरण आता है।

3. केतु-मंगल जातक में दिमागी रूप से आवेश पैदा करता है। केतु-शुक्र, जो जातक में सजावट और सुन्दरता के प्रति आकर्षण को बढ़ाता है।

4. केतु-बुध, कल्पना करने और हवाई किले बनाने के लिए सोच पैदा करता है। चंद्र-केतु जातक में कल्पना शक्ति का विकास करता है। शुक्र-सूर्य जातक को स्वाभाविक प्रवृत्तियों की तरफ बढ़ाता है।

5. जातक का सुन्दरता के प्रति मोह होता है और वे कामुकता की ओर भागता है। जातक में अपने प्रति स्वतंत्रता की भावना रहती है और किसी की बात नहीं मानता।

6. जातक, पित्त और वायु विकार से परेशान रहने वाले लोग, रसीली वस्तुओं को पसंद करने वाले होते हैं। कम भोजन करना और खूब घूमना, इनकी आदत होती है।

7. छाती बड़ी होने के कारण इनमें हिम्मत बहुत अधिक होती है और मौका आने पर यह लोग जान पर खेलने से भी नहीं चूकते।

8. जातक जीवन के पहले दौर में सुखी, दूसरे में दुखी और अंतिम अवस्था में पूर्ण सुखी होता है।

9. सिंह राशि वाले जातक हर कार्य शाही ढंग से करते हैं, जैसे सोचना शाही, करना शाही, खाना शाही और रहना शाही।

10. इस राशि वाले लोग जुबान के पक्के होते हैं। जातक जो खाता है वही खाएगा, अन्यथा भूखा रहना पसंद करेगा, वह आदेश देना जानता है, किसी का आदेश उसे सहन नहीं होता है, जिससे प्रेम करेगा, उस मरते दम तक निभाएगा, जीवनसाथी के प्रति अपने को पूर्ण रूप से समर्पित रखेगा, अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी का आना इस राशि वाले को कतई पसंद नहीं है।

11. जातक कठोर मेहनत करने वाले, धन के मामलों में बहुत ही भाग्यशाली होते हैं। स्वर्ण, पीतल और हीरे-जवाहरात का व्यवसाय इनको बहुत फायदा देने वाले होते हैं।

12. सरकार और नगर पालिका वाले पद इनको खूब भाते हैं। जातकों की वाणी और चाल में शालीनता पाई जाती है।

13. इस राशि वाले जातक सुगठित शरीर के मालिक होते हैं। नृत्य करना भी इनकी एक विशेषता होती है, अधिकतर इस राशि वाले या तो बिलकुल स्वस्थ रहते है या फिर आजीवन बीमार रहते हैं।

14. जिस वारावरण में इनको रहना चाहिए, अगर वह न मिले, इनके अभिमान को कोई ठेस पहुंचाए या इनके प्रेम में कोई बाधा आए, तो यह बीमार रहने लगते है।

15. रीढ़ की हड्डी की बीमारी या चोटों से अपने जीवन को खतरे में डाल लेते हैं। इस राशि के लोगों के लिये हृदय रोग, धड़कन का तेज होना, लू लगना और आदि बीमारी होने की संभावना होती है।
कन्या- ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो

राशि स्वरूप- कन्या, राशि स्वामी- बुध।

1. राशि चक्र की छठी कन्या राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फूल लिए कन्या है। राशि का स्वामी बुध है। इसके अन्तर्गत उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण, चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।

2. कन्या राशि के लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हैं। भावुक भी होते हैं और वह दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा काम लेते हैं।

3. इस राशि के लोग संकोची, शर्मीले और झिझकने वाले होते हैं।

4. मकान, जमीन और सेवाओं वाले क्षेत्र में इस राशि के जातक कार्य करते हैं।

5. स्वास्थ्य की दृष्टि से फेफड़ों में शीत, पाचनतंत्र एवं आंतों से संबंधी बीमारियां जातकों मे मिलती हैं। इन्हें पेट की बीमारी से प्राय: कष्ट होता है। पैर के रोगों से भी सचेत रहें।

6. बचपन से युवावस्था की अपेक्षा जातकों की वृद्धावस्था अधिक सुखी और ज्यादा स्थिर होता है।

7. इस राशि वाल पुरुषों का शरीर भी स्त्रियों की भांति कोमल होता है। ये नाजुक और ललित कलाओं से प्रेम करने वाले लोग होते हैं।

8. ये अपनी योग्यता के बल पर ही उच्च पद पर पहुंचते हैं। विपरीत परिस्थितियां भी इन्हें डिगा नहीं सकतीं और ये अपनी सूझबूझ, धैर्य, चातुर्य के कारण आगे बढ़ते रहते है।

9. बुध का प्रभाव इनके जीवन मे स्पष्ट झलकता है। अच्छे गुण, विचारपूर्ण जीवन, बुद्धिमत्ता, इस राशि वाले में अवश्य देखने को मिलती है।

10. शिक्षा और जीवन में सफलता के कारण लज्जा और संकोच तो कम हो जाते हैं, परंतु नम्रता तो इनका स्वाभाविक गुण है।

11. इनको अकारण क्रोध नहीं आता, किंतु जब क्रोध आता है तो जल्दी समाप्त नहीं होता। जिसके कारण क्रोध आता है, उसके प्रति घृणा की भावना इनके मन में घर कर जाती है।

12.  इनमें भाषण व बातचीत करने की अच्छी कला होती है। संबंधियों से इन्हें विशेष लाभ नहीं होता है, इनका वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं होता। यह जरूरी नहीं कि इनका किसी और के साथ संबंध होने के कारण ही ऐसा होगा।

13. इनके प्रेम सम्बन्ध प्राय: बहुत सफल नहीं होते हैं। इसी कारण निकटस्थ लोगों के साथ इनके झगड़े चलते रहते हैं।

14. ऐसे व्यक्ति धार्मिक विचारों में आस्था तो रखते हैं, परंतु किसी विशेष मत के नहीं होते हैं। इन्हें बहुत यात्राएं भी करनी पड़ती है तथा विदेश गमन की भी संभावना रहती है। जिस काम में हाथ डालते हैं लगन के साथ पूरा करके ही छोड़ते हैं।

15. इस राशि वाले लोग अपरिचित लोगों मे अधिक लोकप्रिय होते हैं, इसलिए इन्हें अपना संपर्क विदेश में बढ़ाना चाहिए। वैसे इन व्यक्ति की मैत्री किसी भी प्रकार के व्यक्ति के साथ हो सकती है।
तुला- रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते

राशि स्वरूप- तराजू जैसा, राशि स्वामी- शुक्र।

1. तुला राशि का चिह्न तराजू है और यह राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है, यह वायुतत्व की राशि है। शुक्र राशि का स्वामी है। इस राशि वालों को कफ की समस्या होती है।

2. इस राशि के पुरुष सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। आंखों में चमक व चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। इनका स्वभाव सम होता है।

3. किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते, दूसरों को प्रोत्साहन देना, सहारा देना इनका स्वभाव होता है। ये व्यक्ति कलाकार, सौंदर्योपासक व स्नेहिल होते हैं।

4. ये लोग व्यावहारिक भी होते हैं व इनके मित्र इन्हें पसंद करते हैं।

5. तुला राशि की स्त्रियां मोहक व आकर्षक होती हैं। स्वभाव खुशमिजाज व हंसी खनखनाहट वाली होती हैं। बुद्धि वाले काम करने में अधिक रुचि होती है।

6. घर की साजसज्जा व स्वयं को सुंदर दिखाने का शौक रहता है। कला, गायन आदि गृह कार्य में दक्ष होती हैं। बच्चों से बेहद जुड़ाव रहता है।

7. तुला राशि के बच्चे सीधे, संस्कारी और आज्ञाकारी होते हैं। घर में रहना अधिक पसंद करते हैं। खेलकूद व कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं।

8. तुला राशि के जातक दुबले-पतले, लम्बे व आकर्षक व्यक्तिव वाले होते हैं। जीवन में आदर्शवाद व व्यवहारिकता में पर्याप्त संतुलन रखते हैं।

9. इनकी आवाज विशेष रूप से सौम्य होती हैं। चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान छाई रहती है।

10. इन्हें ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करना बहुत भाता है। ये एक अच्छे साथी हैं, चाहें वह वैवाहिक जीवन हो या व्यावसायिक जीवन।

11. आप अपने व्यवहार में बहुत न्यायवादी व उदार होते हैं। कला व साहित्य से जुड़े रहते हैं। गीत, संगीत, यात्रा आदि का शौक रखने वाले व्यक्ति अधिक अच्छे लगते हैं।

12. लड़कियां आत्म विश्वास से परिपूर्ण होती हैं। आपके मनपसंद रंग गहरा नीला व सफेद होते हैं। आपको वैवाहिक जीवन में स्थायित्व पसंद आता है।

13. आप अधिक वाद-विवाद में समय व्यर्थ नहीं करती हैं। आप सामाजिक पार्टियों, उत्सवों में रुचिपूर्वक भाग लेती हैं।

14. आपके बच्चे अपनी पढ़ाई या नौकरी आदि के कारण जल्दी ही आपसे दूर जा सकते हैं।

15. एक कुशल मां साबित होती हैं जो कि अपने बच्चों को उचित शिक्षा व आत्म विश्वास प्रदान करती हैं।
वृश्चिक- तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू

राशि स्वरूप- बिच्छू जैसा, राशि स्वामी- मंगल।

1. वृश्चिक राशि का चिह्न बिच्छू है और यह राशि उत्तर दिशा की द्योतक है। वृश्चिक राशि जलतत्व की राशि है। इसका स्वामी मंगल है। यह स्थिर राशि है, यह स्त्री राशि है।

2. इस राशि के व्यक्ति उठावदार कद-काठी के होते हैं। यह राशि गुप्त अंगों, उत्सर्जन, तंत्र व स्नायु तंत्र का प्रतिनिधित्व करती है। अत: मंगल की कमजोर स्थिति में इन अंगों के रोग जल्दी होते हैं। ये लोग एलर्जी से भी अक्सर पीडि़त रहते हैं। विशेषकर जब चंद्रमा कमजोर हो।

3. वृश्चिक राशि वालों में दूसरों को आकर्षित करने की अच्छी क्षमता होती है। इस राशि के लोग बहादुर, भावुक होने के साथ-साथ कामुक होते हैं।

4. शरीरिक गठन भी अच्छा होता है। ऐसे व्यक्तियों की शारीरिक संरचना अच्छी तरह से विकसित होती है। इनके कंधे चौड़े होते हैं। इनमें शारीरिक व मानसिक शक्ति प्रचूर मात्रा में होती है।

5. इन्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं होता है, इसलिए कोई इन्हें धोखा नहीं दे सकता। ये हमेशा साफ-सुथरी और सही सलाह देने में विश्वास रखते हैं। कभी-कभी साफगोई विरोध का कारण भी बन सकती है।

6. ये जातक दूसरों के विचारों का विरोध ज्यादा करते हैं, अपने विचारों के पक्ष में कम बोलते हैं और आसानी से सबके साथ घुलते-मिलते नहीं हैं।

7. यह जातक अक्सर विविधता की तलाश में रहते हैं। वृश्चिक राशि से प्रभावित लड़के बहुत कम बोलते होते हैं। ये आसानी से किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं। इन्हें दुबली-पतली लड़कियां आकर्षित करती हैं।

8. वृश्चिक वाले एक जिम्मेदार गृहस्थ की भूमिका निभाते हैं। अति महत्वाकांक्षी और जिद्दी होते हैं। अपने रास्ते चलते हैं मगर किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते।

9. लोगों की गलतियों और बुरी बातों को खूब याद रखते हैं और समय आने पर उनका उत्तर भी देते हैं। इनकी वाणी कटु और गुस्सा तेज होता है मगर मन साफ होता है। दूसरों में दोष ढूंढने की आदत होती है। जोड़-तोड़ की राजनीति में चतुर होते हैं।

10. इस राशि की लड़कियां तीखे नयन-नक्ष वाली होती हैं। यह ज्यादा सुन्दर न हों तो भी इनमें एक अलग आकर्षण रहता है। इनका बातचीत करने का अपना विशेष अंदाज होता है।

11. ये बुद्धिमान और भावुक होती हैं। इनकी इच्छा शक्ति बहुत दृढ़ होती है। स्त्रियां जिद्दी और अति महत्वाकांक्षी होती हैं। थोड़ी स्वार्थी प्रवृत्ति भी होती हैं।

12. स्वतंत्र निर्णय लेना इनकी आदत में होते है। मायके परिवार से अधिक स्नेह रहता है। नौकरीपेशा होने पर अपना वर्चस्व बनाए रखती हैं।

13. इन लोगों काम करने की क्षमता काफी अधिक होती है। वाणी की कटुता इनमें भी होती है, सुख-साधनों की लालसा सदैव बनी ही रहती है।

14. ये सभी जातक जिद्दी होते हैं, काम के प्रति लगन रखते हैं, महत्वाकांक्षी व दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता रखते हैं। ये व्यक्ति उदार व आत्मविश्वासी भी होते है।

15. वृश्चिक राशि के बच्चे परिवार से अधिक स्नेह रखते हैं। कम्प्यूटर-टीवी का बेहद शौक होता है। दिमागी शक्ति तीव्र होती है, खेलों में इनकी रुचि होती है।
धनु- ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे

राशि स्वरूप- धनुष उठाए हुए, राशि स्वामी- बृहस्पति।

1. धनु द्वि-स्वभाव वाली राशि है। इस राशि का चिह्न धनुषधारी है। यह राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है।

2. धनु राशि वाले काफी खुले विचारों के होते हैं। जीवन के अर्थ को अच्छी तरह समझते हैं।

3. दूसरों के बारे में जानने की कोशिश में हमेशा करते रहते हैं।

4. धनु राशि वालों को रोमांच काफी पसंद होता है। ये निडर व आत्म विश्वासी होते हैं। ये अत्यधिक महत्वाकांक्षी और स्पष्टवादी होते हैं।

5. स्पष्टवादिता के कारण दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते हैं।

6. इनके अनुसार जो इनके द्वारा परखा हुआ है, वही सत्य है। अत: इनके मित्र कम होते हैं। ये धार्मिक विचारधारा से दूर होते हैं।

7. धनु राशि के लड़के मध्यम कद काठी के होते हैं। इनके बाल भूरे व आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। इनमें धैर्य की कमी होती है।

8. इन्हें मेकअप करने वाली लड़कियां पसंद हैं। इन्हें भूरा और पीला रंग प्रिय होता है।

9. अपनी पढ़ाई और करियर के कारण अपने जीवन साथी और विवाहित जीवन की उपेक्षा कर देते हैं। पत्नी को शिकायत का मौका नहीं देते और घरेलू जीवन का महत्व समझते हैं।

10. धनु राशि की लड़कियां लंबे कदमों से चलने वाली होती हैं। ये आसानी से किसी के साथ दोस्ती नहीं करती हैं।

11.  ये एक अच्छी श्रोता होती हैं और इन्हें खुले और ईमानदारी पूर्ण व्यवहार के व्यक्ति पसंद आते हैं। इस राशि की स्त्रियां गृहणी बनने की अपेक्षा सफल करियर बनाना चाहती है।

12.  इनके जीवन में भौतिक सुखों की महत्ता रहती है। सामान्यत: सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करती हैं।

13. इस राशि के जातक ज्यादातर अपनी सोच का विस्तार नहीं करते एवं कई बार कन्फयूज रहते हैं। एक निर्णय पर पंहुचने पर इनको समय लगता है एवं यह देरी कई बार नुकसान दायक भी हो जाती है।

14. ज्यादातर यह लोग दूसरों के मामलों में दखल नहीं देते एवं अपने काम से काम रखते हैं।

15. इनका पूरा जीवन लगभग मेहनत करके कमाने में जाता है या यह अपने पुश्तैनी कार्य को ही आगे बढाते हैं।
मकर- भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी

राशि स्वरूप- मगर जैसा, राशि स्वामी- शनि।

1. मकर राशि का चिह्न मगरमच्छ है। मकर राशि के व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होते हैं। यह सम्मान और सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य कर सकते हैं।

2. इनका शाही स्वभाव व गंभीर व्यक्तित्व होता है। आपको अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है।

3. इन्हें यात्रा करना पसंद है। गंभीर स्वभाव के कारण आसानी से किसी को मित्र नहीं बनाते हैं। इनके मित्र अधिकतर कार्यालय या व्यवसाय से ही संबंधित होते हैं।

4. सामान्यत: इनका मनपसंद रंग भूरा और नीला होता है। कम बोलने वाले, गंभीर और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं।

5. ईश्वर व भाग्य में विश्वास करते हैं। दृढ़ पसंद-नापसंद के चलते इनका वैवाहिक जीवन लचीला नहीं होता और जीवनसाथी को आपसे परेशानी महसूस हो सकती है।

6. मकर राशि के लड़के कम बोलने वाले होते हैं। इनके हाथ की पकड़ काफी मजबूत होती है। देखने में सुस्त, लेकिन मानसिक रूप से बहुत चुस्त होते हैं।

7. प्रत्येक कार्य को बहुत योजनाबद्ध ढंग से करते हैं। गहरा नीला या श्वेत रंग प्रधान वस्त्र पहने हुए लड़कियां इन्हें बहुत पसंद आती हैं।

8. आपकी खामोशी आपके साथी को प्रिय होती है। अगर आपका जीवनसाथी आपके व्यवहार को अच्छी तरह समझ लेता है तो आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है।

9. आप जीवन साथी या मित्रों के सहयोग से उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।

10. मकर राशि की लड़कियां लम्बी व दुबली-पतली होती हैं। यह व्यायाम आदि करना पसंद करती हैं। लम्बे कद के बाबजूद आप ऊंची हिल की सैंडिल पहनना पसंद करती हैं।

11. पारंपरिक मूल्यों पर विश्वास करने वाली होती हैं। छोटे-छोटे वाक्यों में अपने विचारों को व्यक्त करती हैं।

12. दूसरों के विचारों को अच्छी तरह से समझ सकती हैं। इनके मित्र बहुत होते हैं और नृत्य की शौकिन होती हैं।

13. इनको मजबूत कद कठी के व्यक्ति बहुत आकर्षित करते हैं। अविश्वसनीय संबंधों में विश्वास नहीं करती हैं।

14. अगर आप करियर वुमन हैं तो आप कार्य क्षेत्र में अपना अधिकतर समय व्यतीत करती हैं।

15. आप अपने घर या घरेलू कार्यों के विषय में अधिक चिंता नहीं करती हैं।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016


यदि कन्या या वर को जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें स्थान में मंगल हो तो कुंडली मंगली होती है। 100 में से 80 कुंडली के मंगल का परिहार स्वयं की कुंडली में ही हो जाता है।

मंगल दोष परिहार

मंगल के साथ चन्द्र गुरु शनि में से कोई भी एक ग्रह हो अथवा शनि की पूर्ण दृष्टि हो तो ऐसी कुंडली में मंगल दोष किंचित मात्र भी नहीं रहता है। मेष का मंगल लग्न में हो, वृश्चिक का चौथा, मीन का 7वां, कुंभ का 8वां, धनु का 12वां हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
यदि केंद्र त्रिकोण में गुरु हो या केंद्र में चन्द्रमा हो या 6-11वें भाव में राहु हो, मंगल के साथ राहु अथवा मंगल को गुरु देखता हो अथवा मंगल से दूसरा शुक्र हो तो मंगल शुभ होकर समृद्धिकारक हो जाता

गुरु बलवान हो, शुक्र लग्न अथवा 7वां हो, मंगल वक्री नीच या शत्रु के घर का हो या अस्त हो तो दोष नहीं होता है।
  

श्री मनसा देवी के बारे में वैसे तो बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं परन्तु निम्नलिखित कथा प्रमाणिक मानी जाती हैं! 
 
मुग़ल सम्राट अकबर के समय की बात हैं कि चंडीगढ़ के पास मनीमाजरा नामक स्थान हैं! यह जागीर एक राजपूत जागीरदार के अधीन थी ! सम्राट कृषकों से लगान के रूप में अन्न वसूल करवाता था ! एक बार प्राकृतिक प्रकोप वश फसल बहुत कम हुई जिससे जागीरदार वसूली करने में असमर्थ रहे ! 
 
इसलिए उन्होंने अकबर से लगान माफ़ करने की प्रार्थना की ! 
यद्यपि बादशाह अकबर काफी अच्छा शासक था लेकिन उसने जागीरदारों की कोई बात नहीं मानी व् क्रोधित होकर उन सब जागीरदारों  को जेल में डालने का हुक्म दे दिया ! इस बात की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गई ! 
माँ का भक्त गरीबदास यह सुनकर बहुत दुखी हुआ ! उसने दुर्गा माँ से प्रार्थना कि माता प्रसन्न होकर हमें कष्ट से उबारो व् जागीरदारों को मुक्त करवा दो !
भक्त की प्रार्थना से प्रसन्न हो माता बोली तू जो चाहता हैं वैसा ही आशीर्वाद देती हूँ !
कुछ समय बाद सब जागीरदार अपने २ घरों को लौटेंगे !
गरीबदास माँ के चरणों में गिर गया और बोला - माता तेरा खेल निराला हैं !
तू सर्व शक्तिमान हैं ! 

आप अपने भक्तों की सदा रक्षा करती हैं ! कुछ समय बाद सभी जागीरदार प्रसन्न चित्त अपने २ घर लौट आये ! माँ की महिमा उन सबको मालूम हो गई ! सबने मिलकर वहाँ एक मंदिर बनवा दिया जो की मनसा देवी के अर्थात इच्छा पूर्ण करने वाली देवी के नाम से विख्यात हो गया !

 

मनसा देवी के नाम से एक मंदिर हरिद्वार में शिवालिक पर्वत की चोटी पर स्थित हैं ! इसकी गरणा शक्ति पीठों में तो नहीं हैं लेकिन वर्तमान में इसकी मान्यता भी बहुत बढ़ रही हैं ! हरिद्वार जाने वाले यात्री अवश्य ही इनके दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामना की सिद्धि के लिए पास ही के एक वृक्ष पर औधी बांधते हैं ! लगभग ३ किलो मीटर की चढाई मंदिर की हैं !