रत्न ज्योतिष – रत्न, उनकी पहचान, फायदे
रत्न के माध्यम से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता पाई जा सकती है। लेकिन इसके लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि कौन-सा रत्न आपके लिए सर्वाधिक अनुकूल है। यहाँ आप रत्न से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। जैसे- किस राशि के व्यक्ति को कौन सा रत्न धारण करना चाहिए? रत्न को कब पहनना चाहिए और कितने रत्ती का रत्न होना चाहिए?
रत्न क्या है?
रत्न वे बहुमूल्य पत्थर हैं जो बहुत प्रभावशाली और आकर्षक होते हैं। अपने ख़ास गुणों के कारण रत्न का प्रयोग आभूषण निर्माण, फैशन, डिज़ाइनिंग और ज्योतिष आदि में किया जाता है। अपनी शुरुआती अवस्था में रत्न महज़ कुछ विशेष पत्थर के टुकडे होते हैं, लेकिन बाद में इन्हें बारीक़ी से तराशकर पॉलिशिंग के बाद बेशक़ीमती पत्थर बनाया जाता है। ज्योतिष के अनुसार रत्न में दैवीय ऊर्जा समायी हुई होती है जिससे मनुष्य जीवन का कल्याण होता है। ज्योतिष में ग्रह शांति के विभिन्न प्रकार के रत्नों को धारण किया जाता है।
रत्न ज्योतिष का महत्व
रत्न ज्योतिष का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है। ज़िंदगी में अक्सर मनुष्य को ग्रहों के बुरे प्रभाव की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वैदिक ज्योतिष में ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गये हैं, इनमें से एक उपाय है राशि रत्न धारण करना। रत्न को पहनने से ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। साथ ही जीवन में आ रही समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। हर राशि का अलग-अलग स्वभाव होता है, ठीक उसी प्रकार हर रत्न का भी सभी बारह राशियों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार रत्न ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ग्रह | संबंधित रत्न |
सूर्य | माणिक्य |
चंद्र | मोती |
मंगल | मूंगा |
बुध | पन्ना |
बृहस्पति (गुरु) | पुखराज/फिरोज़ा |
शुक्र | हीरा |
शनि | नीलम |
राहु | गोमेद |
केतु | लहसुनिया |
राशि रत्न क्यों आवश्यक है?
जन्म कुंडली के अनुसार किसी जातक की राशि उसके जन्म के समय ग्रह और नक्षत्र की स्थिति के अनुसार पड़ती है। इस कारण प्रत्येक राशि का गुण व धर्म दूसरी राशि से भिन्न होता है। ठीक इसी प्रकार प्रत्येक रत्न की ख़ास विशेषता होती है और वह दूसरे रत्न से भिन्न होता है। राशि रत्न के अनुसार हर राशि के लिए एक विशेष रत्न होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि व्यक्ति राशि के अनुकूल रत्न धारण नहीं करता है तो उसे इसके नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं। अतः रत्न राशि के अनुसार जातकों को अपनी राशि के अनुसार रत्न को पहनना चाहिए। इसलिए रत्न धारण करने से पूर्व ज्योतिषीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
जन्म कुंडली के अनुसार रत्न
लग्न राशि | भाव के स्वामी | ग्रह | रत्न |
मेष | लग्नेश | मंगल | मूंगा |
पंचमेश | सूर्य | माणिक्य | |
नवमेश | गुरु | पुखराज | |
वृषभ | लग्नेश | शुक्र | हीरा |
पंचमेश | बुध | पन्ना | |
नवमेश | शनि | नीलम | |
मिथुन | लग्नेश | बुध | पन्ना |
पंचमेश | शुक्र | हीरा | |
नवमेश | शनि | नीलम | |
कर्क | लग्नेश | चंद्रमा | मोती |
पंचमेश | मंगल | मूंगा | |
नवमेश | गुरु | पुखराज | |
सिंह | लग्नेश | सूर्य | माणिक्य |
पंचमेश | गुरु | पुखराज | |
नवमेश | मंगल | मूंगा | |
कन्या | लग्नेश | बुध | पन्ना |
पंचमेश | शनि | नीलम | |
नवमेश | शुक्र | हीरा | |
तुला | लग्नेश | शुक्र | हीरा |
पंचमेश | शनि | नीलम | |
नवमेश | बुध | पन्ना | |
वृश्चिक | लग्नेश | मंगल | मूंगा |
पंचमेश | गुरु | पुखराज | |
नवमेश | चंद्र | मोती | |
धनु | लग्नेश | गुरु | पुखराज |
पंचमेश | मंगल | मूंगा | |
नवमेश | सूर्य | माणिक्य | |
मकर | लग्नेश | शनि | नीलम |
पंचमेश | शुक्र | हीरा | |
नवमेश | बुध | पन्ना | |
कुंभ | लग्नेश | शनि | नीलम |
पंचमेश | बुध | पन्ना | |
नवमेश | शुक्र | हीरा | |
मीन | लग्नेश | गुरु | पुखराज |
पंचमेश | चंद्र | मोती | |
नवमेश | मंगल | मूंगा |
रत्न का पौराणिक इतिहास
अग्नि पुराण में ऐसा वर्णन आता है कि जब महाबली राक्षस वृत्रासुर ने देव लोक पर आक्रमण कर दिया। तब सभी देवता उसके आतंक से भयभीत होकर भगवान विष्णु के दरबार पहुँचे। उसके बाद भगवान विष्णु जी से सलाह पाकर देव लोक के स्वामी इन्द्र देव ने महर्षि दधीचि से वज्र बनाने हेतु उनकी हड्डियों का दान मांगा और इसी वज्र से देवताओं ने वृत्रासुर का संहार किया। कहा जाता है कि वज्र निर्माण के समय दधीचि की अस्थियों के कुछ अंश पृथ्वी पर गिर गए और उन्हीं से तमाम रत्नों की खानें बन गईं।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत की उत्पत्ति हुई तो उसे पाने के लिए असुरों और देवताओं के बीच संघर्ष होने लगा। इस छीना-छपटी में अमृत की कुछ बूदें पृथ्वी पर गिर गईं और इन्हीं बूंदों से रत्न की विभिन्न खानें बन गईं।
रत्न के प्रकार
भौगोलिक दृष्टि से रत्न तीन प्रकार के होते हैं। इनमें पहला रत्न खनिज रत्न है। खनिज रत्न खदानों से प्राप्त किए जाते हैं। दूसरे जैविक रत्न होते हैं जिन्हें समुद्र से प्राप्त किया जाता है और तीसरे वनस्पतिक रत्न होते हैं। हिन्दू प्राचीन ग्रंथों में उच्च कोटि के लभभग 84 प्रकार के रत्न बताए गए हैं। समय-समय पर बहुत से नए रत्नों की खोज भी हुई है। रत्न ज्योतिष में नवरत्न के अलावा भी कई अन्य रत्न भी है। नव रत्न में गोमेद, नीलम, पन्ना, पुखराज, माणिक्य, मूँगा, मोती, लहसुनिया और हीरा रत्न आते हैं।
रत्न धारण की विधि
रत्न के वास्तविक लाभ पाने के लिए जातकों को रत्न विधि के अनुसार ही धारण करना चाहिए। ग्रह से संबंधित रत्न को विशेष विधि से पहना जाता है। इसके तहत जिस ग्रह से संबंधित रत्न को धारण करते हैं तो उस ग्रह से संबंधित मंत्रों का जाप तथा पूजा पाठ आदि की जाती है। रत्न को धारण करने से पूर्व उसे गंगा जल अथवा कच्चे दूध से शुद्ध करना चाहिए और इसे विशेष दिन अथवा मुहूर्त में भी धारण किया जाता है। रत्न को किस धातु के साथ पहनना चाहिए यह भी जानना आवश्यक होता है। यदि आपको रत्न धारण करने की विधि नहीं मालूम है तो आप किसी अच्छे ज्योतिषी से सलाह ले सकते हैं।
रत्नों के लाभ
ज्योतिष में प्रत्येक रत्न को किसी विशेष उद्देश्य और लाभ के लिए पहना जाता है। जो व्यक्ति रत्न को धारण करता है उसे इसके कई लाभ लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे -
- रत्न को ग्रह शांति के लिए धारण किया जाता है
- रत्न के प्रभाव व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुख की प्राप्ती होती
- रत्न धारण करने से जीवन पर ग्रहों के अनुकूल प्रभाव पड़ते हैं
- रत्न के प्रभाव से जातक के जीवन में सकारात्म बदलाव होते हैं
- रत्न जीवन में सुख-शांति, वैभव-समृद्धि को लेकर आते हैं
- हीरा रत्न वैवाहिक सुख में वृद्धि करता है
- माणिक्य रत्न समाज में मान-सम्मान और सार्वजनिक क्षेत्र में उच्च पद दिलाता है
- पुखराज रत्न ज्ञान में वृद्धि करता है
- मोती मन को एकाग्र करता है
- मूंगा के प्रभाव से व्यक्ति के साहस और आत्म विश्वास में वृद्धि होती है
- नीलम से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है
- जो व्यक्ति पन्ना रत्न को धारण करता है उसका बौद्धिक विकास होता है
- रत्न को धारण करने से व्यक्ति को विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है
रत्न संबंधी सावधानियाँ
रत्न हमेशा से मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करते आए हैं। सदियों से लेकर आज तक लोगों ने रत्नों का प्रयोग आभूषणों, वस्त्रों, घर तथा महलों, ताज और तख़्तों आदि की शोभा बढ़ाने के लिए किया है। ज्योतिषीय उपाय के रूप में लोगों को इसके कई लाभ भी प्राप्त होते हैं। परंतु यदि रत्न किसी व्यक्ति के अनुकूल नही होता है तो यह उसे नकारात्मक फल प्रदान करता है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति के जीवन में कई कठिनाइयाँ आती हैं। उसे आर्थिक, शारीरिक और मानसिक क्षति पहुँचती है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि रत्न को किसी ज्योतिषीय परामर्श के बाद ही धारण करना चाहिए।
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