सोमवार, 9 जनवरी 2017

कन्या- ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो

राशि स्वरूप- कन्या, राशि स्वामी- बुध।

1. राशि चक्र की छठी कन्या राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फूल लिए कन्या है। राशि का स्वामी बुध है। इसके अन्तर्गत उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण, चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।

2. कन्या राशि के लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हैं। भावुक भी होते हैं और वह दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा काम लेते हैं।

3. इस राशि के लोग संकोची, शर्मीले और झिझकने वाले होते हैं।

4. मकान, जमीन और सेवाओं वाले क्षेत्र में इस राशि के जातक कार्य करते हैं।

5. स्वास्थ्य की दृष्टि से फेफड़ों में शीत, पाचनतंत्र एवं आंतों से संबंधी बीमारियां जातकों मे मिलती हैं। इन्हें पेट की बीमारी से प्राय: कष्ट होता है। पैर के रोगों से भी सचेत रहें।

6. बचपन से युवावस्था की अपेक्षा जातकों की वृद्धावस्था अधिक सुखी और ज्यादा स्थिर होता है।

7. इस राशि वाल पुरुषों का शरीर भी स्त्रियों की भांति कोमल होता है। ये नाजुक और ललित कलाओं से प्रेम करने वाले लोग होते हैं।

8. ये अपनी योग्यता के बल पर ही उच्च पद पर पहुंचते हैं। विपरीत परिस्थितियां भी इन्हें डिगा नहीं सकतीं और ये अपनी सूझबूझ, धैर्य, चातुर्य के कारण आगे बढ़ते रहते है।

9. बुध का प्रभाव इनके जीवन मे स्पष्ट झलकता है। अच्छे गुण, विचारपूर्ण जीवन, बुद्धिमत्ता, इस राशि वाले में अवश्य देखने को मिलती है।

10. शिक्षा और जीवन में सफलता के कारण लज्जा और संकोच तो कम हो जाते हैं, परंतु नम्रता तो इनका स्वाभाविक गुण है।

11. इनको अकारण क्रोध नहीं आता, किंतु जब क्रोध आता है तो जल्दी समाप्त नहीं होता। जिसके कारण क्रोध आता है, उसके प्रति घृणा की भावना इनके मन में घर कर जाती है।

12.  इनमें भाषण व बातचीत करने की अच्छी कला होती है। संबंधियों से इन्हें विशेष लाभ नहीं होता है, इनका वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं होता। यह जरूरी नहीं कि इनका किसी और के साथ संबंध होने के कारण ही ऐसा होगा।

13. इनके प्रेम सम्बन्ध प्राय: बहुत सफल नहीं होते हैं। इसी कारण निकटस्थ लोगों के साथ इनके झगड़े चलते रहते हैं।

14. ऐसे व्यक्ति धार्मिक विचारों में आस्था तो रखते हैं, परंतु किसी विशेष मत के नहीं होते हैं। इन्हें बहुत यात्राएं भी करनी पड़ती है तथा विदेश गमन की भी संभावना रहती है। जिस काम में हाथ डालते हैं लगन के साथ पूरा करके ही छोड़ते हैं।

15. इस राशि वाले लोग अपरिचित लोगों मे अधिक लोकप्रिय होते हैं, इसलिए इन्हें अपना संपर्क विदेश में बढ़ाना चाहिए। वैसे इन व्यक्ति की मैत्री किसी भी प्रकार के व्यक्ति के साथ हो सकती है।
तुला- रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते

राशि स्वरूप- तराजू जैसा, राशि स्वामी- शुक्र।

1. तुला राशि का चिह्न तराजू है और यह राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है, यह वायुतत्व की राशि है। शुक्र राशि का स्वामी है। इस राशि वालों को कफ की समस्या होती है।

2. इस राशि के पुरुष सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। आंखों में चमक व चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। इनका स्वभाव सम होता है।

3. किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते, दूसरों को प्रोत्साहन देना, सहारा देना इनका स्वभाव होता है। ये व्यक्ति कलाकार, सौंदर्योपासक व स्नेहिल होते हैं।

4. ये लोग व्यावहारिक भी होते हैं व इनके मित्र इन्हें पसंद करते हैं।

5. तुला राशि की स्त्रियां मोहक व आकर्षक होती हैं। स्वभाव खुशमिजाज व हंसी खनखनाहट वाली होती हैं। बुद्धि वाले काम करने में अधिक रुचि होती है।

6. घर की साजसज्जा व स्वयं को सुंदर दिखाने का शौक रहता है। कला, गायन आदि गृह कार्य में दक्ष होती हैं। बच्चों से बेहद जुड़ाव रहता है।

7. तुला राशि के बच्चे सीधे, संस्कारी और आज्ञाकारी होते हैं। घर में रहना अधिक पसंद करते हैं। खेलकूद व कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं।

8. तुला राशि के जातक दुबले-पतले, लम्बे व आकर्षक व्यक्तिव वाले होते हैं। जीवन में आदर्शवाद व व्यवहारिकता में पर्याप्त संतुलन रखते हैं।

9. इनकी आवाज विशेष रूप से सौम्य होती हैं। चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान छाई रहती है।

10. इन्हें ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करना बहुत भाता है। ये एक अच्छे साथी हैं, चाहें वह वैवाहिक जीवन हो या व्यावसायिक जीवन।

11. आप अपने व्यवहार में बहुत न्यायवादी व उदार होते हैं। कला व साहित्य से जुड़े रहते हैं। गीत, संगीत, यात्रा आदि का शौक रखने वाले व्यक्ति अधिक अच्छे लगते हैं।

12. लड़कियां आत्म विश्वास से परिपूर्ण होती हैं। आपके मनपसंद रंग गहरा नीला व सफेद होते हैं। आपको वैवाहिक जीवन में स्थायित्व पसंद आता है।

13. आप अधिक वाद-विवाद में समय व्यर्थ नहीं करती हैं। आप सामाजिक पार्टियों, उत्सवों में रुचिपूर्वक भाग लेती हैं।

14. आपके बच्चे अपनी पढ़ाई या नौकरी आदि के कारण जल्दी ही आपसे दूर जा सकते हैं।

15. एक कुशल मां साबित होती हैं जो कि अपने बच्चों को उचित शिक्षा व आत्म विश्वास प्रदान करती हैं।
वृश्चिक- तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू

राशि स्वरूप- बिच्छू जैसा, राशि स्वामी- मंगल।

1. वृश्चिक राशि का चिह्न बिच्छू है और यह राशि उत्तर दिशा की द्योतक है। वृश्चिक राशि जलतत्व की राशि है। इसका स्वामी मंगल है। यह स्थिर राशि है, यह स्त्री राशि है।

2. इस राशि के व्यक्ति उठावदार कद-काठी के होते हैं। यह राशि गुप्त अंगों, उत्सर्जन, तंत्र व स्नायु तंत्र का प्रतिनिधित्व करती है। अत: मंगल की कमजोर स्थिति में इन अंगों के रोग जल्दी होते हैं। ये लोग एलर्जी से भी अक्सर पीडि़त रहते हैं। विशेषकर जब चंद्रमा कमजोर हो।

3. वृश्चिक राशि वालों में दूसरों को आकर्षित करने की अच्छी क्षमता होती है। इस राशि के लोग बहादुर, भावुक होने के साथ-साथ कामुक होते हैं।

4. शरीरिक गठन भी अच्छा होता है। ऐसे व्यक्तियों की शारीरिक संरचना अच्छी तरह से विकसित होती है। इनके कंधे चौड़े होते हैं। इनमें शारीरिक व मानसिक शक्ति प्रचूर मात्रा में होती है।

5. इन्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं होता है, इसलिए कोई इन्हें धोखा नहीं दे सकता। ये हमेशा साफ-सुथरी और सही सलाह देने में विश्वास रखते हैं। कभी-कभी साफगोई विरोध का कारण भी बन सकती है।

6. ये जातक दूसरों के विचारों का विरोध ज्यादा करते हैं, अपने विचारों के पक्ष में कम बोलते हैं और आसानी से सबके साथ घुलते-मिलते नहीं हैं।

7. यह जातक अक्सर विविधता की तलाश में रहते हैं। वृश्चिक राशि से प्रभावित लड़के बहुत कम बोलते होते हैं। ये आसानी से किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं। इन्हें दुबली-पतली लड़कियां आकर्षित करती हैं।

8. वृश्चिक वाले एक जिम्मेदार गृहस्थ की भूमिका निभाते हैं। अति महत्वाकांक्षी और जिद्दी होते हैं। अपने रास्ते चलते हैं मगर किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते।

9. लोगों की गलतियों और बुरी बातों को खूब याद रखते हैं और समय आने पर उनका उत्तर भी देते हैं। इनकी वाणी कटु और गुस्सा तेज होता है मगर मन साफ होता है। दूसरों में दोष ढूंढने की आदत होती है। जोड़-तोड़ की राजनीति में चतुर होते हैं।

10. इस राशि की लड़कियां तीखे नयन-नक्ष वाली होती हैं। यह ज्यादा सुन्दर न हों तो भी इनमें एक अलग आकर्षण रहता है। इनका बातचीत करने का अपना विशेष अंदाज होता है।

11. ये बुद्धिमान और भावुक होती हैं। इनकी इच्छा शक्ति बहुत दृढ़ होती है। स्त्रियां जिद्दी और अति महत्वाकांक्षी होती हैं। थोड़ी स्वार्थी प्रवृत्ति भी होती हैं।

12. स्वतंत्र निर्णय लेना इनकी आदत में होते है। मायके परिवार से अधिक स्नेह रहता है। नौकरीपेशा होने पर अपना वर्चस्व बनाए रखती हैं।

13. इन लोगों काम करने की क्षमता काफी अधिक होती है। वाणी की कटुता इनमें भी होती है, सुख-साधनों की लालसा सदैव बनी ही रहती है।

14. ये सभी जातक जिद्दी होते हैं, काम के प्रति लगन रखते हैं, महत्वाकांक्षी व दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता रखते हैं। ये व्यक्ति उदार व आत्मविश्वासी भी होते है।

15. वृश्चिक राशि के बच्चे परिवार से अधिक स्नेह रखते हैं। कम्प्यूटर-टीवी का बेहद शौक होता है। दिमागी शक्ति तीव्र होती है, खेलों में इनकी रुचि होती है।
धनु- ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे

राशि स्वरूप- धनुष उठाए हुए, राशि स्वामी- बृहस्पति।

1. धनु द्वि-स्वभाव वाली राशि है। इस राशि का चिह्न धनुषधारी है। यह राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है।

2. धनु राशि वाले काफी खुले विचारों के होते हैं। जीवन के अर्थ को अच्छी तरह समझते हैं।

3. दूसरों के बारे में जानने की कोशिश में हमेशा करते रहते हैं।

4. धनु राशि वालों को रोमांच काफी पसंद होता है। ये निडर व आत्म विश्वासी होते हैं। ये अत्यधिक महत्वाकांक्षी और स्पष्टवादी होते हैं।

5. स्पष्टवादिता के कारण दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते हैं।

6. इनके अनुसार जो इनके द्वारा परखा हुआ है, वही सत्य है। अत: इनके मित्र कम होते हैं। ये धार्मिक विचारधारा से दूर होते हैं।

7. धनु राशि के लड़के मध्यम कद काठी के होते हैं। इनके बाल भूरे व आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। इनमें धैर्य की कमी होती है।

8. इन्हें मेकअप करने वाली लड़कियां पसंद हैं। इन्हें भूरा और पीला रंग प्रिय होता है।

9. अपनी पढ़ाई और करियर के कारण अपने जीवन साथी और विवाहित जीवन की उपेक्षा कर देते हैं। पत्नी को शिकायत का मौका नहीं देते और घरेलू जीवन का महत्व समझते हैं।

10. धनु राशि की लड़कियां लंबे कदमों से चलने वाली होती हैं। ये आसानी से किसी के साथ दोस्ती नहीं करती हैं।

11.  ये एक अच्छी श्रोता होती हैं और इन्हें खुले और ईमानदारी पूर्ण व्यवहार के व्यक्ति पसंद आते हैं। इस राशि की स्त्रियां गृहणी बनने की अपेक्षा सफल करियर बनाना चाहती है।

12.  इनके जीवन में भौतिक सुखों की महत्ता रहती है। सामान्यत: सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करती हैं।

13. इस राशि के जातक ज्यादातर अपनी सोच का विस्तार नहीं करते एवं कई बार कन्फयूज रहते हैं। एक निर्णय पर पंहुचने पर इनको समय लगता है एवं यह देरी कई बार नुकसान दायक भी हो जाती है।

14. ज्यादातर यह लोग दूसरों के मामलों में दखल नहीं देते एवं अपने काम से काम रखते हैं।

15. इनका पूरा जीवन लगभग मेहनत करके कमाने में जाता है या यह अपने पुश्तैनी कार्य को ही आगे बढाते हैं।
मकर- भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी

राशि स्वरूप- मगर जैसा, राशि स्वामी- शनि।

1. मकर राशि का चिह्न मगरमच्छ है। मकर राशि के व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होते हैं। यह सम्मान और सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य कर सकते हैं।

2. इनका शाही स्वभाव व गंभीर व्यक्तित्व होता है। आपको अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है।

3. इन्हें यात्रा करना पसंद है। गंभीर स्वभाव के कारण आसानी से किसी को मित्र नहीं बनाते हैं। इनके मित्र अधिकतर कार्यालय या व्यवसाय से ही संबंधित होते हैं।

4. सामान्यत: इनका मनपसंद रंग भूरा और नीला होता है। कम बोलने वाले, गंभीर और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं।

5. ईश्वर व भाग्य में विश्वास करते हैं। दृढ़ पसंद-नापसंद के चलते इनका वैवाहिक जीवन लचीला नहीं होता और जीवनसाथी को आपसे परेशानी महसूस हो सकती है।

6. मकर राशि के लड़के कम बोलने वाले होते हैं। इनके हाथ की पकड़ काफी मजबूत होती है। देखने में सुस्त, लेकिन मानसिक रूप से बहुत चुस्त होते हैं।

7. प्रत्येक कार्य को बहुत योजनाबद्ध ढंग से करते हैं। गहरा नीला या श्वेत रंग प्रधान वस्त्र पहने हुए लड़कियां इन्हें बहुत पसंद आती हैं।

8. आपकी खामोशी आपके साथी को प्रिय होती है। अगर आपका जीवनसाथी आपके व्यवहार को अच्छी तरह समझ लेता है तो आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है।

9. आप जीवन साथी या मित्रों के सहयोग से उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।

10. मकर राशि की लड़कियां लम्बी व दुबली-पतली होती हैं। यह व्यायाम आदि करना पसंद करती हैं। लम्बे कद के बाबजूद आप ऊंची हिल की सैंडिल पहनना पसंद करती हैं।

11. पारंपरिक मूल्यों पर विश्वास करने वाली होती हैं। छोटे-छोटे वाक्यों में अपने विचारों को व्यक्त करती हैं।

12. दूसरों के विचारों को अच्छी तरह से समझ सकती हैं। इनके मित्र बहुत होते हैं और नृत्य की शौकिन होती हैं।

13. इनको मजबूत कद कठी के व्यक्ति बहुत आकर्षित करते हैं। अविश्वसनीय संबंधों में विश्वास नहीं करती हैं।

14. अगर आप करियर वुमन हैं तो आप कार्य क्षेत्र में अपना अधिकतर समय व्यतीत करती हैं।

15. आप अपने घर या घरेलू कार्यों के विषय में अधिक चिंता नहीं करती हैं।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016


यदि कन्या या वर को जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें स्थान में मंगल हो तो कुंडली मंगली होती है। 100 में से 80 कुंडली के मंगल का परिहार स्वयं की कुंडली में ही हो जाता है।

मंगल दोष परिहार

मंगल के साथ चन्द्र गुरु शनि में से कोई भी एक ग्रह हो अथवा शनि की पूर्ण दृष्टि हो तो ऐसी कुंडली में मंगल दोष किंचित मात्र भी नहीं रहता है। मेष का मंगल लग्न में हो, वृश्चिक का चौथा, मीन का 7वां, कुंभ का 8वां, धनु का 12वां हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
यदि केंद्र त्रिकोण में गुरु हो या केंद्र में चन्द्रमा हो या 6-11वें भाव में राहु हो, मंगल के साथ राहु अथवा मंगल को गुरु देखता हो अथवा मंगल से दूसरा शुक्र हो तो मंगल शुभ होकर समृद्धिकारक हो जाता

गुरु बलवान हो, शुक्र लग्न अथवा 7वां हो, मंगल वक्री नीच या शत्रु के घर का हो या अस्त हो तो दोष नहीं होता है।
  

श्री मनसा देवी के बारे में वैसे तो बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं परन्तु निम्नलिखित कथा प्रमाणिक मानी जाती हैं! 
 
मुग़ल सम्राट अकबर के समय की बात हैं कि चंडीगढ़ के पास मनीमाजरा नामक स्थान हैं! यह जागीर एक राजपूत जागीरदार के अधीन थी ! सम्राट कृषकों से लगान के रूप में अन्न वसूल करवाता था ! एक बार प्राकृतिक प्रकोप वश फसल बहुत कम हुई जिससे जागीरदार वसूली करने में असमर्थ रहे ! 
 
इसलिए उन्होंने अकबर से लगान माफ़ करने की प्रार्थना की ! 
यद्यपि बादशाह अकबर काफी अच्छा शासक था लेकिन उसने जागीरदारों की कोई बात नहीं मानी व् क्रोधित होकर उन सब जागीरदारों  को जेल में डालने का हुक्म दे दिया ! इस बात की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गई ! 
माँ का भक्त गरीबदास यह सुनकर बहुत दुखी हुआ ! उसने दुर्गा माँ से प्रार्थना कि माता प्रसन्न होकर हमें कष्ट से उबारो व् जागीरदारों को मुक्त करवा दो !
भक्त की प्रार्थना से प्रसन्न हो माता बोली तू जो चाहता हैं वैसा ही आशीर्वाद देती हूँ !
कुछ समय बाद सब जागीरदार अपने २ घरों को लौटेंगे !
गरीबदास माँ के चरणों में गिर गया और बोला - माता तेरा खेल निराला हैं !
तू सर्व शक्तिमान हैं ! 

आप अपने भक्तों की सदा रक्षा करती हैं ! कुछ समय बाद सभी जागीरदार प्रसन्न चित्त अपने २ घर लौट आये ! माँ की महिमा उन सबको मालूम हो गई ! सबने मिलकर वहाँ एक मंदिर बनवा दिया जो की मनसा देवी के अर्थात इच्छा पूर्ण करने वाली देवी के नाम से विख्यात हो गया !

 

मनसा देवी के नाम से एक मंदिर हरिद्वार में शिवालिक पर्वत की चोटी पर स्थित हैं ! इसकी गरणा शक्ति पीठों में तो नहीं हैं लेकिन वर्तमान में इसकी मान्यता भी बहुत बढ़ रही हैं ! हरिद्वार जाने वाले यात्री अवश्य ही इनके दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामना की सिद्धि के लिए पास ही के एक वृक्ष पर औधी बांधते हैं ! लगभग ३ किलो मीटर की चढाई मंदिर की हैं ! 

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

  • हिन्दू पुराणों में उल्लेख है की जो व्यक्ति अपने पितरों का श्रद्धा भाव से श्राद्ध या तर्पण करता है उसे पितृ अपनी संतानों के प्रति कल्याण की कामना एवम आशीर्वाद प्रदान करते हैं। *पौराणिक तथ्यों की जिनके अनुसार आत्मा का धरती से लेकर परमात्मा तक पहुंचने का सफर वर्णित हैं। लेकिन धरती पर रहकर पूर्वजों को खुश कैसे किए जाए? इसका आसान सा जबाव यही है कि जब आपके वरिष्ठ परिजन जब धरती पर जिंदा हैं। उन्हें सम्मान दें। उनको किसी तरह से दुःखी न करें। क्योंकि माता-पिता, दादा-दादी, जब तक जिंदा हैं और खुश हैं तो मरने के बाद भी वह आपसे खुश ही रहेंगे। आधुनिक दौर में माता-पिता, दादा-दादी ,नाना- नानी या अन्य वरिष्ठजनों को लोग यातनाएं देते हैं उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं यह पूरी तरह से गलत है। और इनके मरने के बाद उनका तर्पण करते हैं। ऐसे में वह आपसे खुश कैसे रह सकते हैं।
  • पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन धरती पर आए पितरों को याद करके उनकी विदाई की जाती है। पूरे पितृ पक्ष में पितरों को याद न किया गया हो तो अमावस्या को उन्हें याद करके दान करने और गरीबों को भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है[1] इसदिन सभी पितर अपने परिजनों के घर के द्वार पर बैठे रहते हैं।जो व्यक्ति इन्हें अन्न जल प्रदान करता है उससे प्रसन्न होकर पितर खुशी-खुशी आशीर्वाद देकर अपने लोक लौट जाते हैं।
  • पितृ विसर्जन अमावस्या को श्राद्ध की पात्रता
  • हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष में किसी भी अमावस्या को जन्म लेने वाले पूर्वजों का श्रद्धा या तर्पण किया जाता है।
  • पितृ विसर्जन अमावस्या का श्राद्ध पर्व किसी नदी[4] या सरोवर के तट पर या निजी आवास में भी हो सकता है।
  • अतृप्त आत्माओं की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान

  • अकाल मौत होने पर उनकी आत्म की शांति हेतु नर्मदा नदी के तट पर श्रद्धा और भक्ति के साथ तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।

विष्णु जी हिन्दू धर्म के देवता हैं। विष्णु जी त्रिदेवों में से एक बताए गए हैं। मान्यतानुसार जगत का पालन श्री हरि विष्णु जी ही करते हैं। भगवान विष्णु को दया-प्रेम का सागर माना जाता है।  विष्णु जी देवी लक्ष्मी (विष्णुजी की पत्नी) के साथ क्षीरसागर में वास करते हैं। सच्चे मन से आराधना करने पर वह व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।

विष्णु जी की चालीसा( Vishnu Chalisa in Hindi)
।।दोहा।।
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
।।चौपाई।।
नमो विष्णु भगवान खरारी,कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी,त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥1॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत,सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत,बैजन्ती माला मन मोहत ॥2॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे,देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे,काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥3॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन,दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन,दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥4॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण,कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण,केवल आप भक्ति के कारण ॥5॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा,तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा,रावण आदिक को संहारा ॥6॥
आप वाराह रूप बनाया,हरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया,चौदह रतनन को निकलाया ॥7॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया,रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया,असुरन को छवि से बहलाया ॥8॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया,मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया,भस्मासुर को रूप दिखाया ॥9॥
वेदन को जब असुर डुबाया,कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया,उसही कर से भस्म कराया ॥10॥
असुर जलन्धर अति बलदाई,शंकर से उन कीन्ह लडाई ।
हार पार शिव सकल बनाई,कीन सती से छल खल जाई ॥11॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी,बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी,वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥12॥
देखत तीन दनुज शैतानी,वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी,हना असुर उर शिव शैतानी ॥13॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे,हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे,बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥14॥
हरहु सकल संताप हमारे,कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे,दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥15॥
चहत आपका सेवक दर्शन,करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन,होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥16॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण,विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन,कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥17॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण,कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाईहर्षित रहत परम गति पाई ॥18॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई,निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ,भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥19॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ,निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै,पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥20॥
हिन्दू मान्यतानुसार देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में से चामुण्डा देवी प्रमुख हैं। दुर्गा सप्तशती में चामुण्डा देवी की कथा का वर्णन किया है। माना जाता है कि चामुण्डा देवी की साधना करने से मनुष्य को परम सुख की प्राप्ति होती है। आइए पढ़ें चामुंडा देवी की चालीसा:

चामुण्डा देवी की चालीसा (Chamunda Devi in Hindi)

दोहा

नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड ।
दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़ ।।
मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत ।
मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत ।।

चौपाई

नमस्कार चामुंडा माता । तीनो लोक मई मई विख्याता ।।
हिमाल्या मई पवितरा धाम है । महाशक्ति तुमको प्रडम है ।।1।।

मार्कंडिए ऋषि ने धीयया । कैसे प्रगती भेद बताया ।।
सूभ निसुभ दो डेतिए बलसाली । तीनो लोक जो कर दिए खाली ।।2।।

वायु अग्नि याँ कुबेर संग । सूर्या चंद्रा वरुण हुए तंग ।।
अपमानित चर्नो मई आए । गिरिराज हिमआलये को लाए ।।3।।

भद्रा-रॉंद्र्रा निट्टया धीयया । चेतन शक्ति करके बुलाया ।।
क्रोधित होकर काली आई । जिसने अपनी लीला दिखाई ।।4।।

चंदड़ मूंदड़ ओर सुंभ पतए । कामुक वेरी लड़ने आए ।।
पहले सुग्गृीव दूत को मारा । भगा चंदड़ भी मारा मारा ।।5।।

अरबो सैनिक लेकर आया । द्रहूँ लॉकंगन क्रोध दिखाया ।।
जैसे ही दुस्त ललकारा । हा उ सबद्ड गुंजा के मारा ।।6।।

सेना ने मचाई भगदड़ । फादा सिंग ने आया जो बाद ।।
हत्टिया करने चंदड़-मूंदड़ आए । मदिरा पीकेर के घुर्रई ।।7।।

चतुरंगी सेना संग लाए । उचे उचे सीविएर गिराई ।।
तुमने क्रोधित रूप निकाला । प्रगती डाल गले मूंद माला ।।8।।

चर्म की सॅडी चीते वाली । हड्डी ढ़ाचा था बलसाली ।।
विकराल मुखी आँखे दिखलाई । जिसे देख सृिस्टी घबराई ।।9।।

चंदड़ मूंदड़ ने चकरा चलाया । ले तलवार हू साबद गूंजाया ।।
पपियो का कर दिया निस्तरा । चंदड़ मूंदड़ दोनो को मारा ।।10।।

हाथ मई मस्तक ले मुस्काई । पापी सेना फिर घबराई ।।
सरस्वती मा तुम्हे पुकारा । पड़ा चामुंडा नाम तिहरा ।।11।।

चंदड़ मूंदड़ की मिरतट्यु सुनकर । कालक मौर्या आए रात पर ।।
अरब खराब युध के पाठ पर । झोक दिए सब चामुंडा पर ।।12।।

उगर्र चंडिका प्रगती आकर । गीडदीयो की वाडी भरकर ।।
काली ख़टवांग घुसो से मारा । ब्रह्माड्ड ने फेकि जल धारा ।।13।।

माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया । मा वेश्दवी कक्करा घुमाया ।।
कार्तिके के शक्ति आई । नार्सिंघई दित्तियो पे छाई ।।14।।

चुन चुन सिंग सभी को खाया । हर दानव घायल घबराया ।।
रक्टतबीज माया फेलाई । शक्ति उसने नई दिखाई ।।15।।

रक्त्त गिरा जब धरती उपर । नया डेतिए प्रगता था वही पर ।।
चाँदी मा अब शूल घुमाया । मारा उसको लहू चूसाया ।।16।।

सूभ निसुभ अब डोडे आए । सततर सेना भरकर लाए ।।
वाज्ररपात संग सूल चलाया । सभी देवता कुछ घबराई ।।17।।

ललकारा फिर घुसा मारा । ले त्रिसूल किया निस्तरा ।।
सूभ निसुभ धरती पर सोए । डेतिए सभी देखकर रोए ।।18।।

कहमुंडा मा ध्ृम बचाया । अपना सूभ मंदिर बनवाया ।।
सभी देवता आके मानते । हनुमत भेराव चवर दुलते ।।19।।

आसवीं चेट नवराततरे अओ । धवजा नारियल भेट चाड़ौ ।।
वांडर नदी सनन करऔ । चामुंडा मा तुमको पियौ ।।20।।

दोहा

सरणागत को शक्ति दो हे जाग की आधार ।
‘ओम’ ये नेया दोलती कर दो भाव से पार ।।

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

मां काली हिन्दू धर्म की देवी हैं। इन्हें देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि या मां काली कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति राक्षसों के संहार हेतु की गई थी। मान्यता के अनुसार काली माता बल और शक्ति की देवी हैं। आइए इनकी आराधना कर इन्हें प्रसन्न करें।










श्री काली चालीसा
॥॥दोहा ॥॥
जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ॥
अरि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता ॥1॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । हाथ तीसरे सोहत भाला ॥2॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥3॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता । जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥4॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता । तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । कल्याणी पापी कुल घालक ॥5॥
शेष सुरेश न पावत पारा । गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥6॥
रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । भक्तजनों के संकट टारे ॥7॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी । भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । नारद शारद पार न पावैं ॥8॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी । तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । विश्वविदित भव संकट त्राता ॥9॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥10॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥11॥
त्रेता में रघुवर हित आई । दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥12॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे । कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥13॥
ये बालक लखि शंकर आए । राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥14।
बाढ्यो महिषासुर मद भारी । पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता । नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥16॥
मान मथनहारी खल दल के । सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं । उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥18॥
काली चालीसा जो पढ़हीं । स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥19॥
करहु मातु भक्तन रखवाली । जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥20॥
॥॥दोहा॥॥
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥

हिन्दू धर्म में हनुमान जी को वीरता, भक्ति और साहस का परिचायक माना जाता है। शिवजी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंग बली, पवनपुत्र, मारुती नंदन, केसरी आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि हनुमान जी अजर-अमर हैं।

श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa in Hindi)
।।दोहा।।
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार |
बरनौ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ||
।।चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर |
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ||2||
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी |
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा ||4|
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे |
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन ||6|
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर |
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया ||8||
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा |
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे ||10||
लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये |
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई ||12||
सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें |
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ||14||
जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते |
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ||16||
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना |
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु ||18|
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं |
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||20||
राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे |
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना ||22||
आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे |
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें ||24||
नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा |
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें ||26||
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा |
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे ||28||
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा |
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे ||30||
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता 
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ||32||
तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें |
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ||34||
और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई |
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा ||36||
जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं |
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई ||38||
जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा |
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ||40||
।।दोहा।।
पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||
हनुमान चालीसा का लाभ (Benefits of Hanuman Chalisa)
हनुमान जी को प्रतिदिन याद करने और उनके मंत्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं। शनि साढ़ेसाती या महादशा से पीड़ित जातकों के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना लाभदायक माना जाता है। साथ ही जिन लोगों की कुंडली में मांगलिक दोष हो उनके लिए भी हनुमान चालीसा का पाठ लाभदायक समझा जाता है।