बुधवार, 28 दिसंबर 2016

  • हिन्दू पुराणों में उल्लेख है की जो व्यक्ति अपने पितरों का श्रद्धा भाव से श्राद्ध या तर्पण करता है उसे पितृ अपनी संतानों के प्रति कल्याण की कामना एवम आशीर्वाद प्रदान करते हैं। *पौराणिक तथ्यों की जिनके अनुसार आत्मा का धरती से लेकर परमात्मा तक पहुंचने का सफर वर्णित हैं। लेकिन धरती पर रहकर पूर्वजों को खुश कैसे किए जाए? इसका आसान सा जबाव यही है कि जब आपके वरिष्ठ परिजन जब धरती पर जिंदा हैं। उन्हें सम्मान दें। उनको किसी तरह से दुःखी न करें। क्योंकि माता-पिता, दादा-दादी, जब तक जिंदा हैं और खुश हैं तो मरने के बाद भी वह आपसे खुश ही रहेंगे। आधुनिक दौर में माता-पिता, दादा-दादी ,नाना- नानी या अन्य वरिष्ठजनों को लोग यातनाएं देते हैं उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं यह पूरी तरह से गलत है। और इनके मरने के बाद उनका तर्पण करते हैं। ऐसे में वह आपसे खुश कैसे रह सकते हैं।
  • पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन धरती पर आए पितरों को याद करके उनकी विदाई की जाती है। पूरे पितृ पक्ष में पितरों को याद न किया गया हो तो अमावस्या को उन्हें याद करके दान करने और गरीबों को भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है[1] इसदिन सभी पितर अपने परिजनों के घर के द्वार पर बैठे रहते हैं।जो व्यक्ति इन्हें अन्न जल प्रदान करता है उससे प्रसन्न होकर पितर खुशी-खुशी आशीर्वाद देकर अपने लोक लौट जाते हैं।
  • पितृ विसर्जन अमावस्या को श्राद्ध की पात्रता
  • हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष में किसी भी अमावस्या को जन्म लेने वाले पूर्वजों का श्रद्धा या तर्पण किया जाता है।
  • पितृ विसर्जन अमावस्या का श्राद्ध पर्व किसी नदी[4] या सरोवर के तट पर या निजी आवास में भी हो सकता है।
  • अतृप्त आत्माओं की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान

  • अकाल मौत होने पर उनकी आत्म की शांति हेतु नर्मदा नदी के तट पर श्रद्धा और भक्ति के साथ तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।

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