सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

बुध ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

 

बुध ग्रह को बुद्धि, संचार और त्वचा का कारक कहा जाता है। बुध एक शुभ ग्रह है लेकिन क्रूर ग्रह के संगम से यह अशुभ फल देता है। बुध ग्रह शांति के लिए कई उपाय हैं। इनमें बुध यंत्र की स्थापना, बुधवार का व्रत, बुधवार को भगवान विष्णु का पूजन और विधारा की जड़ धारण करना आदि प्रमुख उपाय हैं।कुंडली में बुध की खराब स्थिति से त्वचा संबंधी विकार, शिक्षा में एकाग्रता की कमी, गणित विषय में कमजोरी और लेखन कार्य में परेशानी आती है। वहीं बुध के शुभ प्रभाव से बुद्धि, व्यापार, संचार और शिक्षा में उन्नति मिलती है। यदि आप बुध के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं तो तुरंत बुध ग्रह शांति के लिए ये उपाय करें। इन कार्यों को करने से बुध ग्रह से शुभ फल की प्राप्ति होती है और अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े बुध ग्रह शांति के उपाय

बुध  ग्रह शांति के लिये उपाय

हरा रंग अथवा ग्रीन कलर के सभी शेड्स के कपड़े पहन सकते हैं।
बहन, बेटी अथवा छोटी कन्या का सम्मान करें।
बहन को उपहार भेंट करें।
व्यापार में ईमानदार रहें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले बुध ग्रह के उपाय

भगवान विष्णु की पूजा करें।
भगवान बुध की आराधना करें।
श्री विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का जाप करें।

बुध के लिये व्रत

व्यापार में धन लाभ अथवा गृह क्लेश निवारण के लिए बुधवार के दिन व्रत धारण करें।

बुध ग्रह शांति के लिये दान करें

बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं को बुधवार के दिन बुध की होरा एवं इसके नक्षत्रों (अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) में सुबह अथवा शाम को करना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ- हरी घास, साबुत मूंग, पालक, कांस्य के बर्तन, नीले रंग के पुष्प, हरे व नीले रंग के कपड़े, हाथी के दांतों से बनी वस्तुएँ इत्यादि।

बुध के लिए रत्न

ज्योतिष में बुध ग्रह शांति के लिए पन्ना रत्न धारण किया जाता है। पन्ना को पहनने से जातक को अच्छे फल प्राप्त होते हैं। बुध प्रधान राशि मिथुन और कन्या राशि के जातकों के लिए पन्ना रत्न शुभ होता है।

श्री बुध यंत्र

जिनकी बुध की महादशा चल रही हो उनको अभिमंत्रित बुध यंत्र को बुध की होरा और बुध के नक्षत्र के समय धारण करना चाहिए।

बुध के लिये जड़ी

बुध ग्रह के कुप्रभाव को कम करने के लिए विधारा की जड़ पहनें। इस जड़ को बुधवार के दिन बुध की होरा के समय अथवा बुध के नक्षत्र में धारण करें।

बुध ग्रह के लिये रुद्राक्ष

बुध ग्रह की शुभता के लिए 4 मुखी रुद्राक्ष / 10 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ ह्रीं नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्रीं।।

बुध मंत्र

बुध ग्रह से शुभ फल पाने के लिए बुध बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः!

सामान्य रूप से बुध मंत्र को 9000 बार जपना चाहिए। हालाँकि देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 36000 बार जपने के लिए कहा गया है।

बुध ग्रह को प्रसन्न करने के लिए आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ बुं बुधाय नमः अथवा ॐ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः!

बुध ग्रह शांति के उपाय करने से निश्चित ही आपको बुध ग्रह के शुभ फल प्राप्त होंगे और आपकी बौद्धिक, तार्किक एवं गणना शक्ति में वृद्धि होगी। इसके साथ ही आपकी संवाद शैली में निखार आएगा। इस लेख में दिए गए मजबूत बुध के टोटके पूर्ण रूप से वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं। जैसा कि आपने देखा है कि इस लेख में बुध दोष के उपाय के साथ उनको करने की भी विधि बतायी गई है और इसी विधि और नियम के साथ आपको बुध ग्रह शांति मंत्र का जाप, संबंधित रुद्राक्ष, रत्न तथा जड़ी को धारण करना चाहिए।

ज्योतिष में बुध ग्रह को एक तटस्थ ग्रह माना गया है, यह दूसरे ग्रहों की संगति के अनुसार ही फल देता है। वैदिक शास्त्रों में बुध ग्रह का संबंध भगवान विष्णु जी से है। अतः बुध शांति के उपाय करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बुध ग्रह का वर्ण हरा है इसलिए बुध ग्रह शांति के लिए हरे रंग के कपड़ों को धारण अथवा दान किया जाता है। बुध ग्रह मिथुन और कन्या राशि का अधिपति है। इसलिए इन राशि के जातकों को बुध ग्रह शांति के उपाय को अवश्य ही करना चाहिए।

उम्मीद है कि बुध ग्रह शांति से संबंधित यह लेख आपके लिए लाभकारी एवं ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा।

मंगल ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय


मंगल ग्रह को पराक्रम और साहस का कारक माना जाता है। मंगल ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गए हैं। इनमें मंगलवार का व्रत, हनुमान जी की आराधना और सुंदर कांड का पाठ आदि प्रमुख है। कुंडली में मंगल की शुभ स्थिति से शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है। वहीं मंगल के अशुभ प्रभाव से मांस, रक्त और अस्थि जनित रोग होते हैं। यदि मंगल अशुभ फल दे रहा है तो मंगल से संबंधित उपाय करना चाहिए। मंगल ग्रह शांति के लिए मंगल यंत्र की स्थापना, मंगलवार को मंगल से संबंधित वस्तु का दान, अनंत मूल की जड़ धारण करना चाहिए। इनके अलावा भी वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह से संबंधित कई उपाय बताये गये हैं। इन कार्यों को करने से मंगल ग्रह से शुभ फल की प्राप्ति होती है और अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े मंगल ग्रह शांति के उपाय

मंगल  ग्रह शांति के लिये उपाय

लाल एवं कॉपर शेड कलर के वस्त्र धारण करें।
अपनी मातृभूमि एवं सेना का सम्मान करें।
भाई, साले एवं दोस्तों के साथ मधुर व्यवहार बनाए रखें।
मंगलवार के दिन पैसे उधार न लें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले मंगल ग्रह के उपाय

हनुमान जी की आराधना करें।
नरसिंह देव की पूजा करें।
भगवान कार्तिकेय की आराधना करें।
सुंदर कांड का पाठ करें।

मंगल के लिये व्रत

मंगल दोष दूर करने के लिए और मंगल देव की शुभ दृष्टि पाने के लिए मंगलवार के दिन उपवास रखें।

मंगल शांति के लिये दान करें

मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान मंगलवार को मंगल की होरा एवं मंगल ग्रह के नक्षत्रों (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) में किया जाना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ- लाल मसूर, खांड, सौंफ, मूंग, गेहूँ, लाल कनेर का पुष्प, तांबे के बर्तन एवं गुड़ आदि।

मंगल के लिए रत्न

मंगल ग्रह के लिए मूंगा रत्नको धारण किया जाता है। मूंगा रत्न को पहनने से मंगल ग्रह के सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।  मेष और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए यह रत्न बहुत लाभकारी होता है।

मंगल यंत्र

कुंडली में मांगलिक दोष की वजह से जीवन में शादी-ब्याह, संतान प्राप्ति आदि की समस्याएं आती हैं। इन सभी समस्याओं को मंगल यंत्र की स्थापना करके दूर किया जा सकता है। मंगल यंत्र को मंगलवार के दिन मंगल की होरा एवं मंगल के नक्षत्र के समय धारण करें।

मंगल के लिये जड़ी

मंगल ग्रह शांति के लिए अनंत मूल जड़ी धारण करें। इस जड़ी को मंगलवार को मंगल की होरा और मंगल के नक्षत्र में धारण करें।

मंगल के लिये रुद्राक्ष

मंगल के लिए 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
छः मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ ह्रीं हूं नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सौं।।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ ह्रीं हूं नमः।
ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं।

मंगल मंत्र

मंगल ग्रह से मनवांछित फल पाने के लिए मंगल बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः!

मंगल मंत्र का जाप 1000 बार करना चाहिए। हालाँकि देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 40000 बार जपने के लिए कहा गया है।

आप इस मंत्र का जाप भी कर सकते हैं - ॐ भौं भौमाय नमः अथवा ॐ अं अंगराकाय नमः!

मंगल ग्रह शांति के उपाय को विधि अनुसार करने से आपको निश्चित ही मंगल देवता का आशीर्वाद प्राप्त होगा और आपके साहस, ऊर्जा और पराक्रम में वृद्धि होगी। ज्योतिष में मंगल को पापी ग्रह की श्रेणी में अवश्य रखा गया है। परंतु मंगल का प्रभाव सदैव ही अशुभ नहीं होता है। यह बात ठीक है कि मंगल ग्रह के कारण कुंडली में मंगल दोष पैदा होता है जो वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है। मंगल ग्रह लाल होने के कारण इसका नाता लाल रंग से जुड़ा है।

वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी होता है। अतः इन राशि वाले जातकों को मंगल को प्रसन्न करने के लिए मंगल ग्रह के टोटके या उपाय ज़रुर करने चाहिए। यदि आप मंगल शांति के उपाय करते हैं तो आपको इससे न केवल मंगल के द्वारा मिलने वाले कष्टों से मुक्ति मिलेगी। बल्कि ये उपाय आपके लिए बहुत लाभकारी साबित होंगे। मंगल व्रत, मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान, मंगल यंत्र की पूजा तथा मंगल शांति मंत्र का उच्चारण आदि करने से जातकों के मंगल से संबंधित कष्ट दूर होते हैं।

उम्मीद है कि मंगल ग्रह शांति से संबंधित यह लेख आपके लिए लाभकारी एवं ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा।

चंद्र ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय


वैदिक ज्योतिष में चंद्र ग्रह मन, मॉं और सुंदरता का कारक होता है। चंद्र ग्रह शांति से संबंधित कई उपाय हैं। इनमें सोमवार का व्रत, चंद्र यंत्र, चंद्र मंत्र, चंद्र ग्रह से संबंधित वस्तु का दान, खिरनी की जड़ और दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना समेत कई उपाय हैं। कुंडली में चंद्रमा की शुभ स्थिति से जीवन में प्रसन्नता, सुख, माता का बेहतर स्वास्थ्य और अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है। वहीं चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से मानसिक विकार, मन का भटकना, माता को कष्ट आदि परेशानी आती है। यदि कुंडली में चंद्रमा किसी बुरे ग्रह से पीड़ित है, तो चंद्र ग्रह से संबंधित कार्यों को अवश्य करना चाहिए। इन उपायों को करने से चंद्रमा से शुभ फल की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा से संबंधित वस्त्र और उत्पाद आदि को ग्रहण और धारण करना भी चंद्र ग्रह से जुड़े अहम उपाय हैं।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े चंद्र ग्रह शांति के उपाय

चंद्र  ग्रह शांति के लिये उपाय

सफेद रंग के वस्त्र धारण करें।
माता जी, सास एवं बुजुर्ग महिलाओं का सम्मान करें।
रात को दूध का सेवन करें।
चाँदी के बर्तनों का प्रयोग करें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले चंद्र ग्रह के उपाय

माँ दुर्गा की पूजा करें।
भगवान शिव की आराधना करें।
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें।
शिव चालिसा/दुर्गा चालिसा का जाप करें।

चंद्र ग्रह के लिये व्रत

शुभ चंद्र सुख, शांति, समृद्धि और दयालुता का द्यौतक है। चंद्र ग्रह की कृपा दृष्टि पाने के लिए सोमवार को उपवास रखें।

चंद्र ग्रह शांति के लिये दान करें

चंद्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान सोमवार को चंद्र की होरा और चंद्र के नक्षत्रों (रोहिणी, हस्त, श्रवण) में प्रातः किया जाना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ- दूध, चावल, चांदी, मोती, सफेद कपड़े, सफेद पुष्प एवं शंख आदि।

चंद्रमा के लिए रत्न

ज्योतिष में चंद्र ग्रह के लिए मोती रत्न को धारण करने का विधान है। यदि किसी जातक की कर्क राशि है तो उसे मोती को धारण करना चाहिए। इससे जातक को चंद्रमा के अच्छे फल प्राप्त होंगे।

श्री चंद्र यंत्र

चंद्र ग्रह शांति के लिए चंद्र यंत्र को सोमवार को चंद्र की होरा और चंद्र के नक्षत्रों के समय धारण करें।

चंद्र के लिये जड़ी

खिरनी की जड़ को धारण करने से आप चंद्र ग्रह से शुभ परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। इस जड़ को सोमवार के दिन चंद्र की होरा एवं चंद्र के नक्षत्रों में धारण करें।

चंद्र के लिये रुद्राक्ष

चंद्र के लिए 2 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं क्षौं व्रीं।।

चंद्र मंत्र

चंद्र देव की कृपा दृष्टि पाने के लिए आपको चंद्र बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र - ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः!

11000 बार चंद्र मंत्र का उच्चारण करें। हालाँकि देश-काल-पात्र के सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को (11000X4) 44000 बार जपने की सलाह दी गई है।

आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ सों सोमाय नमः!

इस आलेख में दिए गए चंद्र ग्रह शांति के उपाय वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं, जो कि बहुत ही कारगर और आसान हैं। यदि आप चंद्र को मजबूत करने के उपाय को विधि पूर्वक करते हैं तो इससे आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा। चंद्र ग्रह शांति मंत्र मन में सकारात्मक विचारों को जन्म देता है जिससे व्यक्ति सही दिशा में सोचकर आगे की ओर क़दम बढ़ाता है। चंद्र दोष के उपाय से जातक को माता का सुख प्राप्त होता है। चंद्रमा मजबूत होने से माता को स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चंद्र ग्रह को कर्क राशि का स्वामी कहा जाता है। अतः इस राशि के जातक चंद्र ग्रह के उपाय कर सकते हैं। कई बार लोगों को यह लगता है कि कुंडली में ग्रह के कमज़ोर होने पर ही ग्रह शांति के उपाय करने चाहिए। लेकिन यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत है तो इसके शुभ फलों में वृद्धि करने के लिए आप चंद्र ग्रह शांति के उपाय भी कर सकते हैं। इस लेख में चंद्र ग्रह के उपाय जैसे चंद्र ग्रह का मंत्र जाप, चंद्र ग्रह के लिए दान, चंद्र व्रत आदि को करने की विधि भी बहुत सरल तरीके से बतायी गई है।

आशा करते हैं कि चंद्र ग्रह शांति से संबंधित यह लेख आपके लिए लाभकारी एवं ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा।

सूर्य ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

 

वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह को नवग्रहों का राजा कहा जाता है। सूर्य के प्रभाव से मनुष्य को सम्मान और सफलता मिलती है। सूर्य ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गए हैं। सूर्य मंत्र, सूर्य यंत्र और सूर्य नमस्कार समेत कई उपायों को करने से लाभ मिलता है। हर दिन नियमित रूप से सूर्य मंत्र उच्चारित करने और सूर्य नमस्कार करने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य ग्रह सरकारी एवं विभिन्न क्षेत्रों में उच्च सेवा का कारक माना गया है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में सूर्य की शुभ स्थिति व्यक्ति को जीवन में उन्नति प्रदान करती है लेकिन यदि सूर्य अशुभ प्रभाव देता है, तो सम्मान की हानि, पिता को कष्ट, उच्च पद प्राप्ति में बाधा, ह्रदय और नेत्र संबंधी रोग होते हैं। जन्म कुंडली में सूर्य से संबंधित किसी भी परेशानी के समाधान के लिए करें सूर्य ग्रह से जुड़े विभिन्न उपाय।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े सूर्य ग्रह शांति के उपाय

सूर्य  ग्रह शांति के लिये उपाय

लाल और केसरिया रंग के वस्त्र धारण करें।
पिता जी, सरकार एवं उच्च अधिकारियों का सम्मान करें।
प्रातः सूर्योदय से पहले उठें और अपनी नग्न आँखों से उगते हुए सूरज का दर्शन करें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले सूर्य के उपाय

भगवान विष्णु की पूजा करें।
सूर्य देव की पूजा करें।
भगवान राम की पूजा करें।
आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप करें।

सूर्य देव के लिये व्रत

सूर्य देव का आशीर्वाद पाने हेतु रविवार को व्रत धारण किया जाता है।

सूर्य ग्रह शांति के लिये दान करें

सूर्य ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान रविवार को सूर्य की होरा और सूर्य के नक्षत्रों (कृतिका, उत्तरा-फाल्गुनी, उत्तरा षाढ़ा) में प्रातः 10 बजे से पूर्व किया जाना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ: गुड़, गेहूँ, तांबा, माणिक्य रत्न, लाल पुष्प, खस, मैनसिल आदि।

सूर्य ग्रह के लिए रत्न

वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह के लिए रूबी माणिक्य  को धारण किया जाता है। यदि किसी जातक की सूर्य प्रधान राशि सिंह है तो उसे माणिक्य रत्न को पहनना चाहिए।

श्री सूर्य यंत्र

सूर्य ग्रह शांति के लिए रविवार के दिन सूर्य यंत्र को सूर्य की होरा  एवं इसके नक्षत्र में धारण करना चाहिए।

सूर्य के लिये जड़ी

सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए बेल मूल  धारण करें। इस जड़ को रविवार के दिन सूर्य की होरा अथवा सूर्य के नक्षत्र में धारण करना चाहिए।

सूर्य के लिये रुद्राक्ष

एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए मंत्र:
ॐ ह्रीं नमः।
ॐ यें हं श्रों ये।।

तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ क्लीं नमः।
ॐ रें हूं ह्रीं हूं।।

बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ क्रों श्रों रों नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं घृणि श्रीं।।

सूर्य मंत्र

सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए आप सूर्य बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं। मंत्र - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।

वैसे तो सूर्य बीज मंत्र को 7000 बार जपना चाहिए परंतु देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र का (7000x4) 28000 बार उच्चारण करना चाहिए।

आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ घृणि सूर्याय नमः!

सूर्य ग्रह शांति के उपाय करने से जातकों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। चूंकि सूर्य आत्मा, राजा, कुलीनता, उच्च पद, सरकारी नौकरी का कारक है। अतः सूर्य ग्रह शांति मंत्र का जाप अथवा सूर्य यंत्र को स्थापित करने से जातक एक राजा के समान जीवन व्यतीत करता है। वह सरकारी क्षेत्र में प्रशासनिक स्तर का पद पाता है। इस लेख में दिए गए सूर्य दोष के उपाय वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं, जो बहुत ही कारगर और सरल हैं।

वैदिक ज्योतिष में सूर्य को एक क्रूर ग्रह माना गया है। इसके नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति अहंकारी, आत्म केन्द्रित, ईर्ष्यालु और क्रोधी स्वभाव का हो जाता है और स्वास्थ्य जीवन पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। ऐसे में सूर्य शांति के उपाय करने से जातकों को लाभ होता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है। अतः सिंह राशि वाले जातकों के लिए सूर्य मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। सूर्य ग्रह के उच्च होने पर भी आपको सूर्य को मजबूत करने के उपाय करने चाहिए। इससे आपको दोगुना लाभ होगा।

आशा करते हैं कि सूर्य ग्रह शांति से संबंधित यह लेख आपके लिए लाभकारी एवं ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा।

बुधवार, 19 अप्रैल 2023

शुक्र का अन्य ग्रहों के साथ युति का क्या फल होता है ?

 सूर्य-शुक्र युति

इस युति को ज्योतिष में अच्छा नहीं कहा गया है। दरअसल शुक्र सूर्य के समीप आकर अपनी ऊर्जा को खो देता है जिसके कारण जातक को सुख में कमी महसूस होती है। इस युति के कारण जीवन में संघर्ष के साथ ही पत्नी के सुख की कमी अनुभव हो सकती है। 


चन्द्रमा-शुक्र युति

इस युति के जातक को अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। जातक का शरीर सुंदर होगा और उसे कला साहित्य में रूचि होगी। ऐसा जातक स्त्री वर्ग में लोकप्रिय हो सकता है। उसे व्यापार में लाभ प्राप्त होता है। एक अच्छा लेखक, अभिनेता और कवि भी हो सकता है। 


मंगल-शुक्र युति

मंगल रक्त और शुक्र वीर्य का कारक होने के कारण यह युति शुभ नहीं है। इस युति पर राहु का प्रभाव हो तो स्त्री और पुरुष दोनों चरित्रहीन हो सकते हैं। रक्त से जुड़ी बीमारी और यौन सुख में कमी भी जातक को अनुभव हो सकती है। वैवाहिक जीवन ठीक नहीं होगा। 


बुध-शुक्र युति

बुध वाणी और शुक्र कला का कारक होने के कारण यह युति शानदार परिणाम देने वाली होती है। जातक एक प्रसिद्ध लेखक हो सकता है। हास्य नाटक का लेखक या बड़ा निर्देशक बन सकता है। ऐसे व्यक्ति पढ़ाई में बहुत अच्छा होगा। अपनी बुद्धि से स्त्री वर्ग को प्रसन्न रखता है।


गुरु- शुक्र युति 

इस युति में जातक असमंजस में रहता है क्योंकि उसे भौतिक और आध्यात्मिक दोनों सुख मिलते हैं ऐसे में व्यक्ति का चरित्र लोगों की समझ में नहीं आता है। स्त्री सुख में कमी लेकिन मंत्रों का ज्ञाता और वेद में निपुण होगा। ऐसा व्यक्ति अपनी वाणी से मन मोह लेता है लेकिन भौतिक सुख में कमी अवश्य रहती है। 


शनि-शुक्र युति 

शनि की ऊर्जा शुक्र को खत्म कर देती है। जातक स्त्री से दूर ही रहता है और यौन सुख में रूचि नहीं रहती है। ऐसा व्यक्ति दार्शनिक भी हो सकता है। ऐसा जातक बातों को बड़ी गहराई से समझता है और मनन करता है। भौतिक सुख की कामना नहीं होती और साधक बन सकता है। 


राहु-शुक्र युति

राहु को छल कपट का कारक कहा गया है लेकिन शुक्र ऐसा नहीं है इसलिए यह युति जीवन में कष्टकारी ही साबित होती है। ऐसा व्यक्ति स्त्री के साथ धोखा करता है और उन्हें भोगने में रूचि रखता है। नशे का आदी और शराब पीने वाला होगा। ऐसे में यह युति चरित्र के लिए ठीक नहीं है


केतु-शुक्र युति 

केतु शुक्र की ऊर्जा को उभारने का काम करता है। इस युति के कारण जातक की सिनेमा और साहित्य में अच्छी रूचि होगी। ऐसा व्यक्ति अपनी स्त्री का सुख कम ही भोगता है। जीवन में किसी ना किसी लड़की का प्रवेश होता रहता है। बुद्धि स्थिर नहीं होगी और जातक इधर उधर की बात सोचता रहता है।


शुक्रवार, 17 मार्च 2023

जुड़वां बच्चों की कुंडली होती है समान, फिर क्यों भविष्य में होता है अंतर ?

 

जुड़वां बच्चों के जन्म में कुछ समय का अंतर होता है. यह 3 से 12 मिनट का हो सकता है. ज्योतिष के अनुसार इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी बदल जाने से बच्चों के भाग्य में  भी अंतर हो जाता है

ज्योतिष’ मुनष्य के भविष्य को ज्ञात करने वाली पद्धित मानी जाती है. इसलिए कहा जाता है कि जब तक भविष्य है तब तक ज्योतिष भी है. ज्योतिषियों से हर कोई भविष्य जानना चाहता है. लेकिन सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्न हैं कि ‘जुडवां बच्चों की कुंडली समान होने के बाद भाग्य में अंतर क्यों कहा जाता है कि कर्म सिद्धांत के कारण भी जुड़वां बच्चों के भाग्य में अंतर होता है. क्योंकि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अगले जन्म में भुगतना पड़ता है. जुड़वां बच्चों पर भी यही बात लागू होती है. भले ही उनके जन्म समय में कुछ मिनट का अंतर होता है, लेकिन उनके द्वारा किए कर्म उन्हें अलग-अलग दिशाओं में ले जाते हैं.

वास्तव में जुड़वां बच्चों की कुंडली महत्वपूर्ण विषय है. यदि प्रत्यक्ष रूप में देखा जाए तो दोनों की कुंडली समान लगती है और जन्म समय में भी बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है. फिर भी भाग्य में अंतर होने के कारण दोनों बच्चों के जीवन की दशा और दिशा अलग-अलग होती है. जुड़वां बच्चों की कुंडली का अध्ययन विशेष तरीकों से किया जा सकता है.जुड़वां बच्चों की कुंडली में खासतौर पर जन्म स्थान, जन्म तिथि और दिन एक समान होते हैं. लेकिन शक्ल, विचारधाएं, इच्छाएं और बच्चों के साथ होनी वाली घटनाओं में अंतर होता है. इतना ही नहीं दोनों का व्यक्तित्व भी अलग होता है.

कैसे देखें जुड़वां बच्चों की कुंडली

जुड़वां बच्चों की कुंडली देखना आसान काम नहीं है, क्योंकि जन्म स्थान, जन्म तिथि आदि जैसी कई चीजें समान होने के साथ यह दिखने में एक जैसी प्रतीत होती है. इसलिए जुड़वां बच्चों की कुंडली बनाते समय जन्म कुंडली के साथ ही गर्भ कुंडली का निर्माण किया जाता है.

गर्भ कुंडली और जन्म कुंडली में अंतर

गर्भ कुंडली, जन्म कुंडली से अलग होती है. गर्भ कुंडली से जुड़वां बच्चों के भविष्य के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है. गर्भ कुंडली को जन्म कुंडली के आधार पर ही बनाया जाता है. लेकिन इसे गर्भाधान या गर्भधारण के समय को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है. लेकिन यह काफी कठिन कार्य है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि गर्भाधान के अनुसार जुड़वां बच्चों की कुंडली बनाई जाए तो जुड़वां बच्चों के जीवन और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को आसानी से समझा जा सकता है.

क्यों जरूरी है गर्भाधान मुहूर्त को जानना

कहा जाता है कि बच्चे पर माता-पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ता है और खासकर सबसे अधिक मां का. क्योंकि शिशु पूरे 9 महीने मां के गर्भ में ही आश्रय पाता है. माना जाता है कि जिस समय दंपत्ति गर्भाधान करते हैं उस समय ब्रह्मांड में नक्षत्रों की व्यवस्था और ग्रहों की स्थितियों का भी प्रभाव होने वाले बच्चे पर पड़ता है. यही कारण है कि शास्त्रों में गर्भाधान के मुहूर्त को महत्वपूर्ण माना जाता है. गर्भाधान के दिन, समय, तिथि वार, नक्षत्र, चंद्र स्थिति और दंपतियों की कुंडली आदि का गहनता से परीक्षण कर गर्भाधान मुहूर्त को निकाला जाता है.

इस कारण एक जैसा नहीं होता जुड़वां बच्चों का भविष्य

कृष्णमूर्ति पद्धति, जिसका निर्माण वैदिक ज्योतिष से प्रेरणा लेकर हुआ है, इसमें नक्षत्र और उपनक्षत्र के आधार पर ग्रहों से मिलने वाले फल की गणना की जाती है. इसके अनुसार, जुड़वां बच्चों की जन्मतिथि भले ही समान होती है, लेकिन समय में अंतर होता है. कहा जाता है कि जुड़वां बच्चों के जन्म में 3 मिनट से लेकर 10 या फिर 12 मिनट का अंतर हो सकता है.

इस दौरान लग्न अंशों और ग्रहों के अंशों में भी बदलाव हो जाता है. क्योंकि ज्योतिष के अनुसार इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी भी बदल जाते हैं और इस अंतर के कारण एक नक्षत्र में जन्म लेने के कारण जुड़वां बच्चों के नक्षत्र के स्वामियों में अंतर आ सकता है. इसी सूक्ष्म गणना के अनुसार जुड़वां बच्चों की पत्रिकाएं भी अलग हो जाएंगी और उनके व्यवहार व भविष्य भी एक जैसे नहीं रहेंगे.

जानें किन ग्रहों का आधिपत्य किन वस्तुओं पर

 

  • सूर्य ग्रह- तांबा, माणिक्य, राजसी चिह्नयुक्त वस्तु, पुरातन महत्व वाली वस्तु और विज्ञान से संबंधित वस्तुओं का संबंध सूर्य ग्रह से होता है. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ग्रह की स्थिति शुभ हो तो उसे इससे संबंधित चीजों को ग्रहण करना शुभ फलदायी होता है.वहीं सूर्य नीच या दु:स्थान में हो तो ऐसी चीजों का दान करना उचित होता है. 
  • चंद्रमा ग्रह, चांदी, चावल, सीप, मोती, शंख, वाहन आदि जैसी वस्तुएं चंद्रमा से संबंधित होती हैं. चंद्रमा की अनिष्ट स्थिति में इन चीजों का दान करना चाहिए लेकिन ग्रहण नहीं करना चाहिए. वहीं कुंडली में चंद्र की अच्‍छी स्थिति में होने पर इन वस्तुओं को लेना चाहिए. लेकिन दान नहीं करना चाहिए अन्यथा ग्रह कलेह, चिंता, व्यर्थ भागदौड़ आदि में परेशानी में वृद्धि होती है.
  • मंगल ग्रह- जिंक धातु और चोरी की वस्तुओं पर मंगल ग्रह का आधिपत्य होता है.कुंडली में मंगल ग्रह अनिष्ट फल दे तो किसी से भी मिठाई का भेंट लेने से बचें. लेकिन मिठाई का दान करना अच्छा होता है.
  • बुध ग्रह- कुंडली में यदि बुध अनिष्ट फलदायी हो तो कलम , खिलौने और खेलकूद का सामान देने चाहिए. वहीं कुंडली में यदि बुध शुभ फलदायी हो तो इन चीजों को लेने में संकोच नहीं करें.
  • गुरु ग्रह- धार्मिक पुस्तकें, स्वर्ण, पीले वस्त्र, केसर आदि का उपहार गुरु के अशुभ फलदायी होने पर ले सकते हैं. लेकिन इन चीजों का दान करने पर गुरु का शुभ फल कम हो सकता है. इससे धन आवक में अवरोध, व्यापार में घाटा और तरक्की में रुकावटें हो सकती है. 
  • शुक्र ग्रह- सुगंधित द्रव्य, रेशमी वस्त्र, चार पहिया वाहन, सुख-सुविधा से जुड़े सामान, स्‍त्रियों प्रसाधान वस्तुएं शुक्र ग्रह से संबंधित होती हैं. यदि कुंडली में शुक्र अशुभ फलदायी हो तो इन चीजों को बांटें लेकिन ग्रहण नहीं करें. ऐसा करना स्त्रियों से पीड़ा, वैमनस्य, मूत्र रोग का कारण बन सकते हैं.
  • शनि ग्रह- कुंडली में यदि शनि ग्रह शुभ स्थिति में तो ही पार्टी वगैरह में जाएं लेकिन घर पर मेहमानों को बुलाकर पार्टी न करें.
  • राहु ग्रह- बिजली उपकरण, कार्बन, दवाइयां, वर्तुलाकार आदि वस्तुओं पर राहु ग्रह का अधिकार होता है. इन वस्तुओं का आदान-प्रदान करने से पहले कुंडली में राहु की स्थिति जरूर जान लें.
  • केतु ग्रह- कंबल, जूते-चप्पल, कुत्ता, चाकू-छुरी, मछली से बने व्यंजन आदि पर केतु ग्रह का अधिकार है. केतु अच्छा हो तो इन वस्तुओं को लेना चाहिए लेकिन देने से बचें. केतु कमजोर होने पर इन चीजों का लेने और मजबूत होने पर देने पर कान के रोग, पैरों पर चोट और पुत्र को पीड़ा हो सकती है.

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

बारह भावों के विभिन्न नाम

 प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य का विचार होता है।

द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमुल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।

तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, अपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि पर विचार करते है।

चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख का विचार करते है।

पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्टा आदि का विचार करते हैं।

षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि का विचार होता है।

सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, सांझेदारी के व्यापार आदि पर विचार किया जाता है।

अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि का विचार होता है।

नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों पर विचार इसी भाव के अन्तर्गत होता है।

दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुषृय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्ध यात्राएं, सुख आदि पर विचार किया जाता है।

एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भा से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि का विचार होता है।

द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि का विचार किया जाता है।

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2022

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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

कुंडली मिलान बहुत जरूरी है



 हमारे अनुसार विवाह में कुं‍डलियों का मिलान करते समय गुणों के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण बातों का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए, भले ही गुण निर्धारित संख्या की अपेक्षा कम मिले हों। परंतु दांपत्य सुख के अन्य कारकों से यदि दांपत्य सुख की सुनिश्चितता होती है, तो विवाह करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। आइए, जानते हैं कि मेलापक (कुंडली मिलान) करते या करवाते समय गुणों के अतिरिक्त किन विशेष बातों का ध्यान रखा जाता आवश्यक है?


मेलापक के समय ध्यान देने योग्य बातें : विवाह का उद्देश्य गृहस्थ आश्रम में पदार्पण के साथ ही वंशवृद्धि और उत्तम दांपत्य सुख प्राप्त करना होता है। प्रेम व सामंजस्य से परिपूर्ण परिवार ही इस संसार में स्वर्ग के समान होता है। इन उद्देश्यों की पूर्ति की संभावनाओं के ज्ञान के लिए मनुष्य की जन्म कुंडली में कुछ महत्वपूर्ण कारक होते हैं। ये कारक हैं- सप्तम भाव एवं सप्तमेश, द्वादश भाव एवं द्वादशेश, द्वितीय भाव एवं द्वितीयेश, पंचम भाव एवं पंचमेश, अष्टम भाव एवं अष्टमेश के अतिरिक्त दांपत्य का नै‍सर्गिक कारक ग्रह शुक्र (पुरुषों के लिए) व गुरु (स्त्रियों के लिए)।

सप्तम भाव एवं सप्तमेश : दांपत्य सुख प्राप्ति के लिए सप्तम भाव का विशेष महत्व होता है। सप्तम भाव ही साझेदारी का भी होता है। विवाह में साझेदारी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अत: सप्तम भाव पर कोई पाप ग्रह का प्रभाव नहीं होना चाहिए। सप्तम भाव के अधिपति को सप्तमेश कहा जाता है। सप्तम भाव की तरह ही सप्तमेश पर कोई पाप प्रभाव नहीं होना चाहिए और न ही सप्तमेश किसी अशुभ भाव में स्थित होना चाहिए।

द्वादश भाव एवं द्वादशेश : सप्तम भाव के ही सदृश द्वादश भाव भी दांपत्य सुख के लिए अहम माना गया है। द्वादश भाव को शैया सुख का अर्थात यौन सुख प्राप्ति का भाव माना गया है। अत: द्वादश भाव एवं इसके अधिपति द्वादशेश पर किसी भी प्रकार के पाप ग्रहों का प्रभाव दांपत्य सुख की हानि कर सकता है।

द्वितीय भाव एवं द्वितीयेश : विवाह का अर्थ है एक नवीन परिवार की शुरुआत। द्वितीय भाव को धन एवं कुटुम्ब भाव कहते हैं। द्वितीय भाव से पारिवारिक सुख का पता चलता है। अत: द्वितीय भाव एवं द्वितीय भाव के स्वामी पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दं‍पति को पारिवारिक सुख से व‍ंचित करता है।

पंचम भाव एवं पंचमेश : शास्त्रानुसार जब मनुष्य जन्म लेता है, तब जन्म लेने के साथ ही वह ऋणी हो जाता है। इन्हीं जन्मजात ऋणों में से एक है 'पितृ ऋण' जिससे संतानोत्पत्ति के द्वारा मुक्त हुआ जाता है। पंचम भाव से संतान सुख का ज्ञान होता है। पंचम भाव एवं इसके अधिपति पंचमेश पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दंपति को संतान सुख से वंचित करता है।

अष्टम भाव एवं अष्टमेश : विवाहोपरांत विधुर या वैधव्य भोग किसी आपदा के सदृश है। अत: भावी दंपति की आयु का भलीभांति परीक्षण आवश्यक है। अष्टम भाव एवं अष्टमेश से आयु का विचार किया जाता है। अष्टम भाव एवं अष्टमेश पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दंपति की आयु क्षीण करता है।

नैसर्गिक कारक : इन कारकों के अतिरिक्त दांपत्य सुख से नैसर्गिक कारकों, जो वर की कुंडली में शुक्र एवं कन्या की कुंडली में गुरु होता है, पाप प्रभाव नहीं होना चाहिए। यदि वर अथवा कन्या की कुंडली में दांपत्य सुख के नैसर्गिक कारक शुक्र व गुरु पाप प्रभाव से पीड़ित हैं या अशुभ भावों में स्थित है तो दांपत्य सुख की हानि कर सकते हैं।

विंशोत्तरी दशा भी है महत्वपूर्ण : उपरोक्त महत्वपूर्ण कारकों के अतिरिक्त वर अथवा कन्या की महादशा एवं अंतरदशाओं की भी कुंडली मिलान में महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसकी अक्सर ज्योतिषी उपेक्षा कर देते हैं। हमारे अनुसार वर अथवा कन्या दोनों ही पर पाप व अनिष्ट ग्रहों की महादशा/ अंतरदशा का एक ही समय में आना भी दांपत्य सुख के लिए हानिकारक है। अत: उपरोक्त कारकों के मिलान एवं परीक्षण के उपरांत महादशा एवं अंतरदशा का परीक्षण परिणाम में सटीकता लाता है।

यह ग्रह देते हैं भयंकर रोग, पढ़ें चौंकाने वाले ज्योतिष रहस्य


 ज्योतिष विज्ञान को मानने वाले वैदिक शोधकर्ताओं का मानना है कि ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के शरीर का संचालन भी ग्रहों के अनुसार होता है। सूर्य आंखों, चंद्रमा मन, मंगल रक्त संचार, बुध हृदय, बृहस्पति बुद्धि, शुक्र प्रत्येक रस तथा शनि, राहू और केतु उदर का स्वामी है।शनि अगर बलवान है तो नौकरी और व्यापार में विशेष लाभ होता है। गृहस्थ जीवन सुचारु चलता है। लेकिन अगर शनि का प्रकोप है तो व्यक्ति को बात-बात पर क्रोध आता है। निर्णय शक्ति काम नहीं करती, गृहस्थी में कलह और व्यापार में तबाही होती है।


आजकल वैदिक अनुसंधान में जप द्वारा ग्रहों के कुप्रभाव से बचाव व ग्रहों की स्थिति अनुकूल करके, व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। कई वैदिक वैज्ञानिक कर्म में विश्वास रखते हैं लेकिन पर्याप्त कर्म के बाद अपेक्षित फल न मिल पाना, वह ग्रहों का कुप्रभाव मानते हैं। वे घरेलू क्लेश, संपत्ति विवाद, व्यवसाय व नौकरी में अड़चनें ही नहीं, ब्लडप्रेशर, कफ, खांसी और चेहरे की झाइयां जप द्वारा ही दूर करने का दावा करते हैं।

सूर्य : सूर्य धरती का जीवनदाता, लेकिन एक क्रूर है, वह मानव स्वभाव में तेजी लाता है। यह ग्रह कमजोर होने पर सिर में दर्द, आंखों का तथा टाइफाइड आदि रोग होते हैं। किन्तु अगर सूर्य उच्च राशि में है तो सत्तासुख, पदार्थ और वैभव दिलाता है। अगर सूर्य के गलत प्रभाव सामने आ रहे हों तो सूर्य के दिन यानी रविवार को उपवास तथा माणिक्य लालड़ी तामड़ा अथवा महसूरी रत्न को धारण किया जा सकता है।

सूर्य को अनुकूल करने के लिए मंत्र-'ॐ हाम्‌ हौम्‌ सः सूर्याय नमः' का एक लाख 47 हजार बार विधिवत जाप करना चाहिए। यह पाठ थोड़ा-थोड़ा करके कई दिन में पूरा किया जा सकता है।

चंद्रमा : चंद्रमा एक शुभ ग्रह है लेकिन उसका फल अशुभ भी होता है। यदि चंद्रमा उच्च है तो व्यक्ति को अपार यश और ऐश्वर्य मिलता है, लेकिन अगर नीच का है तो व्यक्ति खांसी, नजला, जुकाम जैसे रोगों से घिरा रहता है। चंद्रमा के प्रभाव को अनुकूल करने के लिए सोमवार का व्रत तथा सफेद खाद्य वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। पुखराज और मोती पहना जा सकता है। मंत्र 'ॐ श्राम्‌ श्रीम्‌ श्रौम्‌ सः चंद्राय नमः' का 2 लाख 31 हजार बार जप करना चाहिए।

मंगल : यह महापराक्रमी ग्रह है। कर्क, वृश्चिक, मीन तीनों राशियों पर उसका अधिकार है। यह लड़ाई-झगड़ा, दंगाफसाद का प्रेरक है। इससे पित्त, वायु, रक्तचाप, कर्णरोग, खुजली, उदर, रज, बवासीर आदि रोग होते हैं। अगर कुंडली में मंगल नीच का है तो तबाही कर देता है।

बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं, भूकंप, सूखा भी मंगल के कुप्रभावों के प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन अगर मंगल उच्च का है तो वह व्यक्ति कामक्रीड़ा में चंचल, तमोगुणी तथा व्यक्तित्व का धनी होता है। वे अथाह संपत्ति भी खरीदते हैं। मंगल का प्रभाव अनुकूल करने के लिए मूंगा धारण किया जा सकता है। तांबे के बर्तन में खाद्य वस्तु दान करने और मंत्र' ॐ क्रम्‌ क्रीम्‌ क्रौम सः भौमाय नमः' का जाप 2 लाख 10 हजार बार करने से लाभ हो सकता है।

हर ग्रह शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करता है उसी के अनुसार रोग होते हैं जैसे शुक्र काम कला का प्रतीक है तो समस्त यौन रोग शुक्र की अशुभता से ही होते हैं। बुध की अशुभता हृदय रोग देती है। बृहस्पति बुद्धि से संबंधित परेशानी देता है। शनि, राहू और केतु उदर के स्वामी हैं अत: इनकी अशुभता पेट के विकारों को पैदा करती है।

बुधवार, 11 दिसंबर 2019

भगवान दत्तात्रेय ने बनाए 24 ‘गुरु’, जानें क्यों

एक समय सारे वेद नष्ट हो गए। वैदिक कर्मों एवं यज्ञ आदि का लोप हो गया। चारों वर्ण एक में मिल गए और सर्वत्र वर्णसंकरता फैल गई। धर्म शिथिल हो गया और अधर्म दिनों दिन बढ़़ऩे लगा। सत्य दब गया तथा सब ओर असत्य ने अपना सिक्का जमा लिया। प्रजा क्षीण होने लगी। ऐसे समय में अत्रि पत्नी अनुसूया से प्रकट होकर दत्तात्रेय जी ने यज्ञ और कर्मानुष्ठान की विधि सहित सम्पूर्ण वेदों का पुनरुद्धार किया और पुन: चारों वर्णों को पृथक-पृथक अपनी-अपनी मर्यादा में स्थापित किया।

(1)  पृथ्वी- धूप, शीत, वर्षा को धैर्यपूर्वक सहन करने वाली, लोगों द्वारा मल-मूत्र त्यागने व पदाघात आदि पर भी क्रोध न करने वाली, अपनी कक्ष और मर्यादा पर निरंतर नियत गति से घूमने वाली सदैव कर्तव्य परायण पृथ्वी को मैंने अपना प्रथम गुरु माना और उनसे इन सद्गुणों को सीखा। 

(2) पवन- कभी अचल न होकर बैठना, निरंतर गतिशील रहना, संतप्तों को सांत्वना देना, गंध को वहन करना पर स्वयं निर्लिप्त रहना- ये विशेषताएं पवन में पाईं और उन्हें सीखकर उसे गुरु माना।

(3)  आकाश- अनंत विशाल होते हुए भी अनेक ब्रह्मांडों को अपनी गोद में भरे रहने वाले, ऐश्वर्यवान रहते हुए भी रंच मात्र अभिमान न करने वाले आकाश का गुण मुझे बहुत प्रिय लगा। इन गुणों को आचरण में लाने का प्रयत्न करते हुए मैंने उसे गुरु वरण किया।

(4) जल- सबको शुद्ध बनाना, सदा सरल और तरल रहना, आतप को शीतलता में परिवर्तित कर देना, वृक्ष-वनस्पतियों तक को जीवन दान करना आदि महानताएं जल में देखीं तो उसे गुरु मानना ही उचित समझा।

(5) यम- अनुपयोगी को हटा देना, अभिवृद्धि पर नियंत्रण रखना, संसार यात्रा से थके हुओं को विश्राम देने के कार्य में संलग्न यम को पाया तो उसे भी गुरु बना लिया।

(6) अग्नि- निरंतर प्रकाशमान, ऊर्ध्वमुख, संग्रह से दूर रहने वाली, स्पर्श करने वालों को अपना ही रूप बना लेने वाली, समीप रहने वालों को भी प्रभावित करने वाली अग्रि मुझे आदर्श लगी, अत: उसे गुरु वरण किया।

(7) चन्द्रमा- अपने पास प्रकाश न रहने पर भी सूर्य से याचना करके पृथ्वी को चांदनी का दान देते रहने वाला परमार्थी चंद्रमा मुझे सराहनीय लोक सेवक लगा। विपत्ति में सारी कलाएं क्षीण हो जाने पर भी निराश न होकर न बैठना और फिर आगे बढऩे का साहस बार-बार करते रहना, धैर्यवान चंद्रमा का श्रेष्ठ गुण कितना उपयोगी है- यह देखकर उसे मैंने गुरु बनाया।

(8) सूर्य- नियत समय पर अपना नियत कार्य अविचल भाव से निरंतर करते रहना, स्वयं प्रकाशित होना और दूसरों को प्रकाशित करना सूर्य का गुण देखकर उन्हें गुरु माना।

(9) कबूतर- पेड़ के नीचे बिछे हुए जाल में पड़े दाने देखकर लालची कबूतर आलस्यवश अन्यत्र न गया और उतावली में बिना कुछ सोचे-विचारे ललचाया और जाल में फंस कर अपने प्राण गंवा बैठा। उसे गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की कि लोभ और अविवेक से किस प्रकार पतन होता है।

(10) अजगर- शीतकाल में अंग जकड़ जाने के कारण भूखा अजगर मिट्टी खाकर दुॢदन को सहन करता था, उसकी इस सहनशीलता ने मुझे अपना अनुयायी और शिष्य बना लिया।

(11) समुद्र- अपनी मर्यादा से आगे न बढऩे वाला, स्वयं खारा होने पर भी बादलों को मधुर जल दान करने वाले समुद्र को गुरु कैसे न मानता।

(12) पतंगा- लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्राणों की परवाह न करके सदैव अग्रसर होने वाला पतंगा अपनी निष्ठा से गुरु बन मुझे शिक्षा दे रहा था।

(13) मधु मक्खी- पुष्पों का मधुर संचय करके दूसरों के लिए समर्पण करने की जीवन साधना में लगी हुई मधुमक्खी मुझे शिक्षा दे रही थी कि मनुष्य स्वार्थी नहीं, परमार्थी बने।

(14) भौंरा- राम के आसक्त प्राणी किस प्रकार अपने प्राण गंवाता है यह शिक्षा अपने गुरु भौंरा से मैंने सीखी और गांठ बांध ली।

(15) हाथी- कामातुर हाथी किस प्रकार बंधन में बंध गया, यह देखकर मैंने वासना के दुष्परिणामों को समझा और उसे गुरु माना।

(16) मृग, मछली- कानों के विषयों में आसक्त मृग की बधिकों द्वारा पकड़े जाते और जिह्वा की लोलुप मछली को कछुआरे के जाल में तड़पते देखा तो उनसे भी शिक्षा ग्रहण की।

(17) वेश्या- सद्गृहस्थ का आनंद और पतिव्रत धर्म द्वारा परलोक साधन का व्यवहार गंवा कर पश्चाताप से दूसरों को सावधानी का संदेश देने वाली पिंगला वेश्या भी मेरे गुरु पद पर प्रतिष्ठित हुई।

(18) काक- काक पक्षी ने मुझे सिखाया कि धूर्तता और स्वार्थपरता की नीति अंत में हानिकारक होती है। अत: वह भी मेरा गुरु ही है।

(19) अबोध बालक- राग द्वेष, चिंता, काम, क्रोध, लोभ आदि दुर्गुणों से रहित अबोध बालक कितना सुखी और शांत रहता है, उसके समान बनने के लिए बच्चे को अपना आदर्श माना तथा उसे भी गुरु कहा। 

(20) धान कूटती स्त्री- एक स्त्री चूडिय़ां पहने धान कूट रही थी। चूडिय़ां आपस में खनकती थीं। घर आए मेहमानों को इस बात का पता न लगे, इसलिए उसने एक-एक करके हाथों की चूडिय़ां उतार दीं और एक-एक ही रहने दीं। उससे मैंने सीखा कि अनेक कामनाओं के रहते चूडिय़ों की तरह मन में संघर्ष होते रहते हैं पर यदि एक ही लक्ष्य नियत कर लिया जाए तो सभी उद्वेग शांत हो जाएं।

(21) लोहार- लोहार अपनी भट्ठी में लोहे के टूटे-फूटे टुकड़ों को गर्म करके हथौड़े की चोट से कई तरह का सामान बना रहा था, उसे देखकर सीखा कि निरुपयोगी और कठोर प्रतीत होने वाले मनुष्य भी यदि अपने को तपाने और चोट सहने की तैयारी कर लें तो उपयोगी उपकरण बन सकते हैं।

(22) सर्प- सर्प दूसरों को कष्ट देता और प्रत्युतत्तर में सब ओर से त्रास पाता है। उसने मुझे सिखाया कि उद्दण्ड, क्रोधी, आक्रामक और आततायी होना किसी के लिए भी श्रेयस्कर नहीं है।

(23) मकड़ी- मकड़ी की क्रिया को देखकर मुझे सूझा कि अपनी दुनिया हर मनुष्य अपनी भावना के अनुरूप ही गढ़ता है।

(24) भृंगज- भृंगज कीड़ा एक झींगुर को पकड़कर लाया और अपनी भुनभुनाहट से प्रभावित कर उसे अपने समान बना लिया। यह देखकर मैंने सोचा कि एकाग्रता और तन्मयता के द्वारा मनुष्य अपना शारीरिक और मानसिक कायाकल्प कर डालने में भी सफल हो सकता है।

विवेकशील व्यक्ति सामान्य वस्तुओं और घटनाओं से भी शिक्षा ग्रहण करते और अपने जीवन में धारण करते हैं। अतएव उनका विवेक बढ़ता जाता है, यह विवेक ही सब सिद्धियों का मूल कारण है। अविवेकी लोग तो ब्रह्मा के समान गुरु को भी पाकर कुछ लाभ उठा नहीं सकते।    

शनिवार, 27 जुलाई 2019

शिवरात्रि, मनोकामना के अनुसार ऐसे करें शिव की पूजा

शिवरात्रि, मनोकामना के अनुसार ऐसे करें शिव की पूजा


सावन का पवित्र महीना चल रहा है। इस महीने में होने वाली शिवरात्रि को खास माना जाता है। शिवरात्रि 30 जुलाई को मनाई जाएगी, जिसे इस महीने का सबसे पुण्यदायक दिन माना गया है। इस दिन शिव भक्त महादेव का जलाभिषेक कर सुख-समृद्धि और कल्याण की कामना करते हैं। शास्त्रों के अनुसार सावन शिवरात्रि पर जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। साथ ही सावन की शिवरात्रि के साथ ही कई त्योहारों की शुरुआत हो जाती है।सावन में शिव की पूजा का महत्व 
स्वयं भगवान शिव माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी और अपने शिवगणों सहित पूरे माह पृथ्वी पर विराजते हैं। शिव जब जीव का संहार करते हैं, तो महाकाल बन जाते हैं, यही शिव महामृत्युंजय बनकर उसी जीव की रक्षा भी करते हैं, तो शंकर बनकर जीव का भरण-पोषण भी करते हैं, यही योगियों के सूक्ष्मतत्व महारूद्र बनकर योगियों-साधकों जीवात्माओं के अंतस्थल में विराजते हैं और रूद्र बनकर महाविनाश लीला भी करते हैं, अर्थात स्वयं शिव ही ब्रह्मा और विष्णु के रूप में एकाकार देवो के देव महादेव बन जाते हैं। इन्ही महादेव को प्रसन्न करने के लिए अच्छे अवसर के रूप में मास शिवरात्रि का पावन पर्व 30 जुलाई को मनाया जाएगा। 
कब मनाई जाएगी शिवरात्रि
वैसे हर महीने की कृष्णपक्ष चतुर्दशी को मास शिवरात्रि होती है, लेकिन सावन और फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को पड़ने वाली शिवरात्रि का खास महत्व होता है। फाल्गुन महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि, महाशिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है। कहा जाता है कि इस दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था।
सावन शिवरात्रि की पूजा विधि
ऐसा कहा जाता है कि शिव की सच्चे मन से पूजा करना ही काफी होता है। सच्चे मन से आराधना करने से ही भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं।
ऐसे करें अभिषेक
शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर मंदिर जाएं। मंदिर जाते समय जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, इत्र, चंदन, केसर, भांग सभी को एक ही बर्तन में साथ ले जाएं और शिवलिंग का अभिषेक करें।
लगाएं शिव को भोग
शिव को गेहूं से बनी चीजें अर्पित करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि ऐश्वर्य पाने के लिए शिव को मूंग का भोग लगाया जाना चाहिए। वहीं ये भी कहा जाता है कि मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए शिव को चने की दाल का भोग लगाया जाना चाहिए। शिव को तिल चढ़ाने की भी मान्यता है। कहा जाता है कि शिव को तिल चढ़ाने से पापों का नाश होता है।
इस पूजा से महादेव देंगे मोक्ष का महावरदान
संपूर्ण कष्टों और पुनर्जन्म से मुक्ति चाहने वाले मनुष्य को गंगा जल और पंचामृत चढ़ाते हुए 'ॐ नमो भगवते रुद्राय। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नों रुद्रः प्रचोदयात।' मंत्र को पढ़ते हुए सभी सामग्री जो भी यथा संभव हो, उसे लेकर समर्पण भाव से शिव को अर्पित करें। श्रद्धा भाव और विश्वास के साथ जो भी पूजन आप करेंगे, उससे प्रसन्न होकर महादेव आपकी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगे।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

कार्य~सिद्धि कारक गोरक्षनाथ मंत्र

मन्त्रः-
“ॐ गों गोरक्षनाथ महासिद्धः, सर्व-व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद्भवाः ।। २।।
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वैताला, राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।
नाऽकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दश्यते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों ।। ४।।
ॐ घण्टाकर्णो नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।।”

विधिः- यह मंत्र तैंतीस हजार या छत्तीस हजार जाप कर सिद्ध करें । इस मंत्र के प्रयोग के लिए इच्छुक उपासकों को पहले गुरु-पुष्य, रवि-पुष्य, अमृत-सिद्धि-योग, सर्वार्त-सिद्धि-योग या दिपावली की रात्रि से आरम्भ कर तैंतीस या छत्तीस हजार का अनुष्ठान करें । बाद में कार्य साधना के लिये प्रयोग में लाने से ही पूर्णफल की प्राप्ति होना सुलभ होता है ।
विभिन्न प्रयोगः- इस को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है । भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है । मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है ।
१॰ मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है । राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।
२॰ अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बाँधने से चौरासी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ।
३॰ इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।
४॰ आग लगने पर इक्कीस बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।
५॰ मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।
६॰ कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बाँधने पर ज्वर, एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं ।
७॰ सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
८॰ पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणि उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।
९॰ गर्भ पीड़ा के समय जल अभिमंत्रित कर गर्भवती को पिलावे, तो पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से होता है, मंत्र से १०८ बार मंत्रित करे ।
१०॰ सर्प का उपद्रव मकान आदि में हो, तो पानी को १०८ बार मंत्रित कर मकानादि में छिड़कने से भय दूर होता है । सर्प काटने पर जल को ३१ बार मंत्रित कर पिलावे तो विष दूर हो ।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

दीपावली का त्योहार और उससे जुड़ी कथाएं

दीपावली पांच पर्वों का त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरकचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि त्योहार मनाए जाते हैं.

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दीपावली पांच पर्वों का अनूठा त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि मनाए जाते हैं. घर के बड़े-बुजुर्ग घरों की साफ-सफाई करते हैं, घरों में सफेदी कराते हैं. घरों को सजाते हैं, नये साल का कलैंडर लगाते हैं. बच्चे घरों को सजाने में रुचि लेते हैं, साथ ही दीपावली के दिन से पहले ही पटाखे फोड़ना शुरू कर देते हैं. लोग आपस में मिठाइयां बांटते हैं.
बाजार नये-नये सामानों से सज जाते हैं. बाजारों में रोनक तो देखते ही बनती है. लोग इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. दीपावली की रात्रि को महानिशीथ के नाम से जाना जाता है. इस रात्रि में कई प्रकार के तंत्र-मंत्र से महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर पूरे साल के लिए सुख-समृद्धि और धन लाभ की कामना की जाती है.
दीपावली पर पूजन के लिए सामग्री
महालक्ष्मी पूजन में केसर, रोली, चावल, पान का पत्ता, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बतासे, सिन्दूर, सूखे मेवे, मिठाई, दही गंगाजल धूप, अगरबत्ती दीपक रुई, कलावा, नारियल और कलश के लिए एक ताम्बे का पात्र चाहिए.
कैसे करें दीपावली पर पूजन की तैयारी
1. एक थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनाएं या नवग्रह का यंत्र स्थापित करें. इसके साथ ही एक ताम्बे का कलश बनाएं, जिसमें गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपड़े से ढक कर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर रख दें.
2. जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया है, वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिटटी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश सरस्वती जी या ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवी देवताओं की मूर्तियां या चित्र सजायें.
3. कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही और गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फल-फूल आदि से सजाएं. इसके ही दाहिने ओर एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है.
4. दिवाली के दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है. इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रूप में उनका स्वागत किया जाता है. दिवाली के दिन जहां गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि और धन की कामना करते हैं, वहीं साधु-संत और तांत्रिक कुछ विशेष सिद्धियां अर्जित करने के लिए रात्रिकाल में अपने तांत्रिक कर्म करते हैं.
दीपावली पर पूजा का विधान
1. घर के बड़े-बुजुर्गों को या नित्य पूजा-पाठ करने वालों को महालक्ष्मी पूजन के लिए व्रत रखना चाहिए. घर के सभी सदस्यों को महालक्ष्मी पूजन के समय घर से बाहर नहीं जाना चाहिए. सदस्य स्नान करके पवित्र आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम करके स्वस्ति वाचन करें. फिर गणेशजी का स्मरण कर अपने दाहिने हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, दव्य और जल आदि लेकर दीपावली महोत्सव के निमित्त गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजनार्थ संकल्प करें.
2. कुबेर पूजन करना लाभकारी होता है. कुबेर पूजन करने के लिये सबसे पहले तिजोरी अथवा धन रखने के संदुक पर स्वस्तिक का चिन्ह बनायें, और कुबेर का आह्वान करें.
3. सबसे पहले गणेश और अम्बिका का पूजन करें. फिर कलश स्थापन, षोडशमातृका पूजन और नवग्रह पूजन करके महालक्ष्मी आदि देवी-देवताओं का पूजन करें. पूजन के बाद सभी सदस्य प्रसन्न मुद्रा में घर में सजावट और आतिशबाजी का आयोजन करें.
4. आप हाथ में अक्षत, पुष्प, जल और धन राशि ले लें. यह सब हाथ में लेकर संकसंकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए, ‘मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान और समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो’. सबसे पहले गणेश जी और गौरी का पूजन करिए.
5. हाथ में थोड़ा-सा जल ले लें और भगवान का ध्यान करते हुए पूजा सामग्री चढ़ाएं. हाथ में अक्षत और पुष्प ले लें. अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन करें. घर पूरा धन-धान्य और सुख-समृद्धि हो जाएगा.
6. दीपावली का विधिवत-पूजन करने के बाद घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी जी की आरती की जाती है. आरती के लिए एक थाली में रोली से स्वास्तिक बनाएं. उस में कुछ अक्षत और पुष्प डालें, गाय के घी का चार मुखी दीपक चलायें. और मां लक्ष्मी की शंख, घंटी, डमरू आदि से आरती उतारें.
7. आरती करते समय परिवार के सभी सदस्य एक साथ होने चाहिए. परिवार के प्रत्येक सदस्य को माता लक्ष्मी के सामने सात बार आरती घूमानी चाहिए. सात बात होने के बाद आरती की थाली को लाइन में खड़े परिवार के अगले सदस्य को दे देना चाहिए. यहीं क्रिया सभी सदस्यों को करनी चाहिए.
8. दीपावली पर सरस्वती पूजन करने का भी विधान है. इसके लिए लक्ष्मी पूजन करने के पश्चात मां सरस्वती का भी पूजन करना चाहिए.
9. दीपावली एवं धनत्रयोदशी पर महालक्ष्मी के पूजन के साथ-साथ धनाध्यक्ष कुबेर का पूजन भी किया जाता है. कुबेर पूजन करने से घर में स्थायी सम्पत्ति में वृद्धि होती है और धन का अभाव दूर होता है.
इनका पूजन इस प्रकार करें.
कैसे करें बही-खाता पूजन
1. बही खातों का पूजन करने के लिए पूजा मुहुर्त समय अवधि में नवीन खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से या फिर लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए. इसके बाद इनके ऊपर 'श्री गणेशाय नम:' लिखना चाहिए. इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए.
2. मां सरस्वती का ध्यान करें. ध्यान करें कि जो मां अपने कर कमलों में घटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, चन्द्र के समान जिनकी मनोहर कांति है. जो शुंभ आदि दैत्यों का नाश करने वाली है. ‘वाणी’ जिनका स्वरूप है, जो सच्चिदानन्दमय से संपन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूं. ध्यान करने के बाद बही खातों का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करना चाहिए.
3. जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया गया है, वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती जी की मूर्तियां सजायें. कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही ओर गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फूल आदि से सजाएं. इसके ही दाहिने और एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें, जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है.
दीपावली को मनाने के पीछे की कथाएं
पहली कथाः 
एक बार की बात है, एक बार एक राजा ने एक लकड़हारे पर प्रसन्न होकर उसे एक चंदन की लकड़ी का जंगल उपहार स्वरुप दे दिया. पर लकड़हारा तो ठहरा लकड़हारा, भला उसे चंदन की लकड़ी का महत्व क्या मालूम, वह जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर उन्हें जलाकर, भोजन बनाने के लिये प्रयोग करता था.
राजा को अपने अपने गुप्तचरों से यह बात पता चली तो, उसकी समझ में आ गया कि, धन का उपयोग भी बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाता है. यही कारण है कि लक्ष्मी जी और श्री गणेश जी की एक साथ पूजा की जाती है. ताकि व्यक्ति को धन के साथ साथ उसे प्रयोग करने कि योग्यता भी आयें.
श्री राम का अयोध्या वापस आनाः- धार्मिक ग्रन्थ रामायण में यह कहा गया कि जब चौदह साल का वनवास काट कर राजा राम, लंका नरेश रावण का वध कर, वापस अयोध्या आये थे, उन्ही के वापस आने की खुशी में अयोध्या वासियों ने अयोध्या को दीयों से सजाया था. अपने भगवान के आने की खुशी में अयोध्या नगरी दीयों की रोशनी में जगमगा उठी थी.
दूसरी कथाः 
भगवान कृ्ष्ण ने दीपावली से एक दिन पहले नरकासुर का वध किया था. नरकासुर एक दानव था और उसके पृथ्वी लोक को उसके आतंक से मुक्त किया था. इसी कारण बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रुप में भी दीपावली पर्व मनाया जाता है.
राजा और साधु की कथाः 
एक कथा के अनुसार, एक बार के साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार आया. इसके लिये उसने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी. तपस्या पूरी होने पर लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित वरदान दे दिया. वरदान प्राप्त करने के बाद वह साधु राजा के दरबार में पहुंचा और सिंहासन पर चढ़कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया.
राजा ने देखा कि मुकुट के अन्दर से एक विषैला सांप निकल कर भागा. यह देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की थी. इसी प्रकार एक बार साधु ने सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा, सभी के बाहर जाते ही, राजमहल गिर कर खंडहर में बदल गया. राजा ने फिर उसकी प्रशंसा की, अपनी प्रशंसा सुनकर साधु के मन में अहंकार आने लगा.
साधु को अपनी गलती का पता चला, उसने गणपति को प्रसन्न किया, गणपति के प्रसन्न होने पर राजा की नाराजगी दूर हो और साधु को उसका स्थान वापस दे दिया गया. इसीलिए कहा गया है कि धन के लिये बुद्धि का होना आवश्यक है. यही कारण कि दीपावली पर लक्ष्मी व श्री गणेश के रुप में धन व बुद्धि की पूजा की जाती है.
लक्ष्मी जी और साहूकार की बेटी की कथा
एक गांव में एक साहूकार था, उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी. जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पेड़ पर लक्ष्मी जी का वास था. एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा ‘मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ’. लड़की ने कहा की ‘मैं अपने पिता से पूछ कर आऊंगा’. यह बात उसने अपने पिता को बताई, तो पिता ने ‘हां’ कर दी. दूसरे दिन से साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया.
दोनों अच्छे मित्रों की तरह आपस में बातचीत करने लगे. एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई. अपने घर में लक्ष्मी जी उसका दिल खोल कर स्वागत किया. उसकी खूब खातिर की. उसे अनेक प्रकार के भोजन परोसे. मेहमान नवाजी के बाद जब साहूकार की बेटी लौटने लगी तो, लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया कि अब तुम मुझे कब अपने घर बुलाओगी. साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला तो लिया, परन्तु अपने घर की आर्थिक स्थिति देख कर वह उदास हो गई. उसे डर लग रहा था कि क्या वह, लक्ष्मी जी का अच्छे से स्वागत कर पायेगी.
साहूकार ने अपनी बेटी को उदास देखा तो वह समझ गया, उसने अपनी बेटी को समझाया, कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ-सफाई कर. चार बत्ती के मुख वाला दिया जला और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा. उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर उसके पास डाल गया. साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर भोजन की तैयारी की. थोड़ी देर में श्री गणेश के साथ लक्ष्मी जी उसके घर आ गई. साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की, उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई. और साहूकार बहुत अमीर बन गया.
इन्द्र और बलि कथाः 
एक बार देवताओं के राजा इन्द्र से डर कर राक्षस राज बलि कहीं जाकर छुप गये. देवराज इन्द्र दैत्य राज को ढूंढते- ढूंढते एक खाली घर में पहुंचे, वहां बलि गधे के रूप में छुपे हुए थे. दोनों की आपस में बातचीत होने लगी. उन दोनों की बातचीत अभी चल ही रही थी, कि उसी समय दैत्यराज बलि के शरीर से एक स्त्री बाहर निकली.
देव राज इन्द्र के पूछने पर स्त्री ने कहा, ‘मै, देवी लक्ष्मी हूं. मैं स्वभाव वश एक स्थान पर टिककर नहीं रहती हूं’. परन्तु मैं उसी स्थान पर स्थिर होकर रहती हूं, जहां सत्य, दान, व्रत, तप, पराक्रम तथा धर्म रहते हैं. जो व्यक्ति सत्यवादी होता है, ब्राह्मणों का हितैषी होता है, धर्म की मर्यादा का पालन करता है. उसी के यहां मैं निवास करती हूं. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि लक्ष्मी जी केवल वहीं स्थायी रूप से निवास करती है, जहां अच्छे गुणी व्यक्ति निवास करते हैं.