मान्यताओं के अनुसार हवन और यज्ञ में दी गई आहुति वास्तव में देवताओं को सम्पूर्ण रूप से प्राप्त होती है। देवता आहुतियों से प्रसन्न होते है जिससे आपका मनोरथ यानी आपकी इच्छा पूरी होती है। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जिस हवि और आहुति को यज्ञ और हवन के माध्यम से देवता स्वयं आकर ग्रहण करते हैं उसे कभी भी अशुभ मुहुर्त में नहीं करना चाहिए। हवन और यज्ञ का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए ध्यान रखें कि जब भी इसका संकल्प लें या इसे प्रारम्भ करें उससे पहले मुहुर्त जरूर देख लें
हवन और यज्ञ के लिए शुभ मुहुर्त क्या होना चाहिए व मुहुर्त किस प्रकार ज्ञात करना चाहिए, आइये इसे देखें
1.आयन विचार
यज्ञ और हवन के लिए नक्षत्र आंकलन करने से पहले अयन का विचार करलें । उत्तरायन को धर्मशास्त्र में अत्यंत शुभ माना गया है। अयन सूर्य की गति का नाम है, सूर्य जब उत्तर दिशा में गमन करता है तो उत्तरायण होता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता और दक्षिणायन को रात अत: यज्ञादि कार्य उत्तरायण में करना श्रेष्ठ कहा गया है।
2.नक्षत्र विचार
उत्तरायण में जिस दिन आप यज्ञ या हवन शुरू करें उस दिन नक्षत्रों की स्थिति का आंकलन करलें। विशाखा कृतिका उत्तराफाल्गुनी उत्तराषाढ़ा उत्तराभाद्रपद रोहिणी, रेवती मृगशि ज्येष्ठा और पुष्य नक्षत्र में से कोई नक्षत्र दिवस जिस दिन हो आप यज्ञ का श्रीगणेश कर सकते हैं अर्थात यज्ञ शुरू कर सकते हैं।
2.लग्न आंकलन
यज्ञ और हवन के लिए शुभ लग्न मुहुर्त का विचार करना चाहिए । इस सम्बन्ध में बताया जाता है कि जब लग्न अथवा नवमांश में कर्क, मकर, कुम्भ अथवा मीन राशि हो और प्रथम, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्टम, सप्तम, नवम, दशम, एकादश भावों में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बृहस्पति हो तथा 8वां भाव खाली हो तो उत्तम होता है।
3.तिथि आंकलन
तिथि के विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि चतुर्थ, नवम, चतुर्दशी तिथियां रिक्ता तिथि होती है. अत: इन तिथियों में हवन और यज्ञ नहीं करना चाहिए। इन तिथियों के अलावा किसी भी तिथि में यज्ञ किया जा सकता है।
4.ग्रह आंकलन
ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार जिस दिन चन्द्र, मंगल, बृहस्पति और शुक्र नीचस्थ हों या अस्त हों उस दिन यज्ञ और हवन नहीं करना चाहिए।
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