शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023
गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023
बारह भावों के विभिन्न नाम
प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य का विचार होता है।
द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमुल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।
तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, अपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि पर विचार करते है।
चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख का विचार करते है।
पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्टा आदि का विचार करते हैं।
षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि का विचार होता है।
सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, सांझेदारी के व्यापार आदि पर विचार किया जाता है।
अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि का विचार होता है।
नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों पर विचार इसी भाव के अन्तर्गत होता है।
दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुषृय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्ध यात्राएं, सुख आदि पर विचार किया जाता है।
एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भा से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि का विचार होता है।
द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि का विचार किया जाता है।
मंगलवार, 31 जनवरी 2023
कॉम्पुटर दवारा हिंदी में रंगीन कुंडली 60 पेज केवल 1100 रूपये
शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2022
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020
कुंडली मिलान बहुत जरूरी है
हमारे अनुसार विवाह में कुंडलियों का मिलान करते समय गुणों के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण बातों का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए, भले ही गुण निर्धारित संख्या की अपेक्षा कम मिले हों। परंतु दांपत्य सुख के अन्य कारकों से यदि दांपत्य सुख की सुनिश्चितता होती है, तो विवाह करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। आइए, जानते हैं कि मेलापक (कुंडली मिलान) करते या करवाते समय गुणों के अतिरिक्त किन विशेष बातों का ध्यान रखा जाता आवश्यक है?
यह ग्रह देते हैं भयंकर रोग, पढ़ें चौंकाने वाले ज्योतिष रहस्य
ज्योतिष विज्ञान को मानने वाले वैदिक शोधकर्ताओं का मानना है कि ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के शरीर का संचालन भी ग्रहों के अनुसार होता है। सूर्य आंखों, चंद्रमा मन, मंगल रक्त संचार, बुध हृदय, बृहस्पति बुद्धि, शुक्र प्रत्येक रस तथा शनि, राहू और केतु उदर का स्वामी है।शनि अगर बलवान है तो नौकरी और व्यापार में विशेष लाभ होता है। गृहस्थ जीवन सुचारु चलता है। लेकिन अगर शनि का प्रकोप है तो व्यक्ति को बात-बात पर क्रोध आता है। निर्णय शक्ति काम नहीं करती, गृहस्थी में कलह और व्यापार में तबाही होती है।
हर ग्रह शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करता है उसी के अनुसार रोग होते हैं जैसे शुक्र काम कला का प्रतीक है तो समस्त यौन रोग शुक्र की अशुभता से ही होते हैं। बुध की अशुभता हृदय रोग देती है। बृहस्पति बुद्धि से संबंधित परेशानी देता है। शनि, राहू और केतु उदर के स्वामी हैं अत: इनकी अशुभता पेट के विकारों को पैदा करती है।
बुधवार, 11 दिसंबर 2019
भगवान दत्तात्रेय ने बनाए 24 ‘गुरु’, जानें क्यों
(2) पवन- कभी अचल न होकर बैठना, निरंतर गतिशील रहना, संतप्तों को सांत्वना देना, गंध को वहन करना पर स्वयं निर्लिप्त रहना- ये विशेषताएं पवन में पाईं और उन्हें सीखकर उसे गुरु माना।
(3) आकाश- अनंत विशाल होते हुए भी अनेक ब्रह्मांडों को अपनी गोद में भरे रहने वाले, ऐश्वर्यवान रहते हुए भी रंच मात्र अभिमान न करने वाले आकाश का गुण मुझे बहुत प्रिय लगा। इन गुणों को आचरण में लाने का प्रयत्न करते हुए मैंने उसे गुरु वरण किया।
(4) जल- सबको शुद्ध बनाना, सदा सरल और तरल रहना, आतप को शीतलता में परिवर्तित कर देना, वृक्ष-वनस्पतियों तक को जीवन दान करना आदि महानताएं जल में देखीं तो उसे गुरु मानना ही उचित समझा।
(5) यम- अनुपयोगी को हटा देना, अभिवृद्धि पर नियंत्रण रखना, संसार यात्रा से थके हुओं को विश्राम देने के कार्य में संलग्न यम को पाया तो उसे भी गुरु बना लिया।
(6) अग्नि- निरंतर प्रकाशमान, ऊर्ध्वमुख, संग्रह से दूर रहने वाली, स्पर्श करने वालों को अपना ही रूप बना लेने वाली, समीप रहने वालों को भी प्रभावित करने वाली अग्रि मुझे आदर्श लगी, अत: उसे गुरु वरण किया।
(7) चन्द्रमा- अपने पास प्रकाश न रहने पर भी सूर्य से याचना करके पृथ्वी को चांदनी का दान देते रहने वाला परमार्थी चंद्रमा मुझे सराहनीय लोक सेवक लगा। विपत्ति में सारी कलाएं क्षीण हो जाने पर भी निराश न होकर न बैठना और फिर आगे बढऩे का साहस बार-बार करते रहना, धैर्यवान चंद्रमा का श्रेष्ठ गुण कितना उपयोगी है- यह देखकर उसे मैंने गुरु बनाया।
(8) सूर्य- नियत समय पर अपना नियत कार्य अविचल भाव से निरंतर करते रहना, स्वयं प्रकाशित होना और दूसरों को प्रकाशित करना सूर्य का गुण देखकर उन्हें गुरु माना।
(9) कबूतर- पेड़ के नीचे बिछे हुए जाल में पड़े दाने देखकर लालची कबूतर आलस्यवश अन्यत्र न गया और उतावली में बिना कुछ सोचे-विचारे ललचाया और जाल में फंस कर अपने प्राण गंवा बैठा। उसे गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की कि लोभ और अविवेक से किस प्रकार पतन होता है।
(10) अजगर- शीतकाल में अंग जकड़ जाने के कारण भूखा अजगर मिट्टी खाकर दुॢदन को सहन करता था, उसकी इस सहनशीलता ने मुझे अपना अनुयायी और शिष्य बना लिया।
(11) समुद्र- अपनी मर्यादा से आगे न बढऩे वाला, स्वयं खारा होने पर भी बादलों को मधुर जल दान करने वाले समुद्र को गुरु कैसे न मानता।
(12) पतंगा- लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्राणों की परवाह न करके सदैव अग्रसर होने वाला पतंगा अपनी निष्ठा से गुरु बन मुझे शिक्षा दे रहा था।
(13) मधु मक्खी- पुष्पों का मधुर संचय करके दूसरों के लिए समर्पण करने की जीवन साधना में लगी हुई मधुमक्खी मुझे शिक्षा दे रही थी कि मनुष्य स्वार्थी नहीं, परमार्थी बने।
(14) भौंरा- राम के आसक्त प्राणी किस प्रकार अपने प्राण गंवाता है यह शिक्षा अपने गुरु भौंरा से मैंने सीखी और गांठ बांध ली।
(15) हाथी- कामातुर हाथी किस प्रकार बंधन में बंध गया, यह देखकर मैंने वासना के दुष्परिणामों को समझा और उसे गुरु माना।
(16) मृग, मछली- कानों के विषयों में आसक्त मृग की बधिकों द्वारा पकड़े जाते और जिह्वा की लोलुप मछली को कछुआरे के जाल में तड़पते देखा तो उनसे भी शिक्षा ग्रहण की।
(17) वेश्या- सद्गृहस्थ का आनंद और पतिव्रत धर्म द्वारा परलोक साधन का व्यवहार गंवा कर पश्चाताप से दूसरों को सावधानी का संदेश देने वाली पिंगला वेश्या भी मेरे गुरु पद पर प्रतिष्ठित हुई।
(18) काक- काक पक्षी ने मुझे सिखाया कि धूर्तता और स्वार्थपरता की नीति अंत में हानिकारक होती है। अत: वह भी मेरा गुरु ही है।
(19) अबोध बालक- राग द्वेष, चिंता, काम, क्रोध, लोभ आदि दुर्गुणों से रहित अबोध बालक कितना सुखी और शांत रहता है, उसके समान बनने के लिए बच्चे को अपना आदर्श माना तथा उसे भी गुरु कहा।
(20) धान कूटती स्त्री- एक स्त्री चूडिय़ां पहने धान कूट रही थी। चूडिय़ां आपस में खनकती थीं। घर आए मेहमानों को इस बात का पता न लगे, इसलिए उसने एक-एक करके हाथों की चूडिय़ां उतार दीं और एक-एक ही रहने दीं। उससे मैंने सीखा कि अनेक कामनाओं के रहते चूडिय़ों की तरह मन में संघर्ष होते रहते हैं पर यदि एक ही लक्ष्य नियत कर लिया जाए तो सभी उद्वेग शांत हो जाएं।
(21) लोहार- लोहार अपनी भट्ठी में लोहे के टूटे-फूटे टुकड़ों को गर्म करके हथौड़े की चोट से कई तरह का सामान बना रहा था, उसे देखकर सीखा कि निरुपयोगी और कठोर प्रतीत होने वाले मनुष्य भी यदि अपने को तपाने और चोट सहने की तैयारी कर लें तो उपयोगी उपकरण बन सकते हैं।
(22) सर्प- सर्प दूसरों को कष्ट देता और प्रत्युतत्तर में सब ओर से त्रास पाता है। उसने मुझे सिखाया कि उद्दण्ड, क्रोधी, आक्रामक और आततायी होना किसी के लिए भी श्रेयस्कर नहीं है।
(23) मकड़ी- मकड़ी की क्रिया को देखकर मुझे सूझा कि अपनी दुनिया हर मनुष्य अपनी भावना के अनुरूप ही गढ़ता है।
(24) भृंगज- भृंगज कीड़ा एक झींगुर को पकड़कर लाया और अपनी भुनभुनाहट से प्रभावित कर उसे अपने समान बना लिया। यह देखकर मैंने सोचा कि एकाग्रता और तन्मयता के द्वारा मनुष्य अपना शारीरिक और मानसिक कायाकल्प कर डालने में भी सफल हो सकता है।
विवेकशील व्यक्ति सामान्य वस्तुओं और घटनाओं से भी शिक्षा ग्रहण करते और अपने जीवन में धारण करते हैं। अतएव उनका विवेक बढ़ता जाता है, यह विवेक ही सब सिद्धियों का मूल कारण है। अविवेकी लोग तो ब्रह्मा के समान गुरु को भी पाकर कुछ लाभ उठा नहीं सकते।
शनिवार, 27 जुलाई 2019
शिवरात्रि, मनोकामना के अनुसार ऐसे करें शिव की पूजा
सावन का पवित्र महीना चल रहा है। इस महीने में होने वाली शिवरात्रि को खास माना जाता है। शिवरात्रि 30 जुलाई को मनाई जाएगी, जिसे इस महीने का सबसे पुण्यदायक दिन माना गया है। इस दिन शिव भक्त महादेव का जलाभिषेक कर सुख-समृद्धि और कल्याण की कामना करते हैं। शास्त्रों के अनुसार सावन शिवरात्रि पर जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। साथ ही सावन की शिवरात्रि के साथ ही कई त्योहारों की शुरुआत हो जाती है।सावन में शिव की पूजा का महत्व
गुरुवार, 18 अप्रैल 2019
कार्य~सिद्धि कारक गोरक्षनाथ मंत्र
“ॐ गों गोरक्षनाथ महासिद्धः, सर्व-व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद्भवाः ।। २।।
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वैताला, राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।
नाऽकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दश्यते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों ।। ४।।
ॐ घण्टाकर्णो नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।।”
विभिन्न प्रयोगः- इस को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है । भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है । मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है ।
१॰ मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है । राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।
२॰ अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बाँधने से चौरासी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ।
३॰ इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।
४॰ आग लगने पर इक्कीस बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।
५॰ मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।
६॰ कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बाँधने पर ज्वर, एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं ।
७॰ सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
८॰ पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणि उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।
९॰ गर्भ पीड़ा के समय जल अभिमंत्रित कर गर्भवती को पिलावे, तो पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से होता है, मंत्र से १०८ बार मंत्रित करे ।
१०॰ सर्प का उपद्रव मकान आदि में हो, तो पानी को १०८ बार मंत्रित कर मकानादि में छिड़कने से भय दूर होता है । सर्प काटने पर जल को ३१ बार मंत्रित कर पिलावे तो विष दूर हो ।
शुक्रवार, 2 नवंबर 2018
दीपावली का त्योहार और उससे जुड़ी कथाएं
दीपावली पांच पर्वों का त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरकचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि त्योहार मनाए जाते हैं.
महालक्ष्मी पूजन में केसर, रोली, चावल, पान का पत्ता, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बतासे, सिन्दूर, सूखे मेवे, मिठाई, दही गंगाजल धूप, अगरबत्ती दीपक रुई, कलावा, नारियल और कलश के लिए एक ताम्बे का पात्र चाहिए.
1. एक थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनाएं या नवग्रह का यंत्र स्थापित करें. इसके साथ ही एक ताम्बे का कलश बनाएं, जिसमें गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपड़े से ढक कर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर रख दें.
1. घर के बड़े-बुजुर्गों को या नित्य पूजा-पाठ करने वालों को महालक्ष्मी पूजन के लिए व्रत रखना चाहिए. घर के सभी सदस्यों को महालक्ष्मी पूजन के समय घर से बाहर नहीं जाना चाहिए. सदस्य स्नान करके पवित्र आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम करके स्वस्ति वाचन करें. फिर गणेशजी का स्मरण कर अपने दाहिने हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, दव्य और जल आदि लेकर दीपावली महोत्सव के निमित्त गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजनार्थ संकल्प करें.
1. बही खातों का पूजन करने के लिए पूजा मुहुर्त समय अवधि में नवीन खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से या फिर लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए. इसके बाद इनके ऊपर 'श्री गणेशाय नम:' लिखना चाहिए. इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए.
पहली कथाः