शुक्रवार, 17 मार्च 2023

जुड़वां बच्चों की कुंडली होती है समान, फिर क्यों भविष्य में होता है अंतर ?

 

जुड़वां बच्चों के जन्म में कुछ समय का अंतर होता है. यह 3 से 12 मिनट का हो सकता है. ज्योतिष के अनुसार इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी बदल जाने से बच्चों के भाग्य में  भी अंतर हो जाता है

ज्योतिष’ मुनष्य के भविष्य को ज्ञात करने वाली पद्धित मानी जाती है. इसलिए कहा जाता है कि जब तक भविष्य है तब तक ज्योतिष भी है. ज्योतिषियों से हर कोई भविष्य जानना चाहता है. लेकिन सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्न हैं कि ‘जुडवां बच्चों की कुंडली समान होने के बाद भाग्य में अंतर क्यों कहा जाता है कि कर्म सिद्धांत के कारण भी जुड़वां बच्चों के भाग्य में अंतर होता है. क्योंकि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अगले जन्म में भुगतना पड़ता है. जुड़वां बच्चों पर भी यही बात लागू होती है. भले ही उनके जन्म समय में कुछ मिनट का अंतर होता है, लेकिन उनके द्वारा किए कर्म उन्हें अलग-अलग दिशाओं में ले जाते हैं.

वास्तव में जुड़वां बच्चों की कुंडली महत्वपूर्ण विषय है. यदि प्रत्यक्ष रूप में देखा जाए तो दोनों की कुंडली समान लगती है और जन्म समय में भी बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है. फिर भी भाग्य में अंतर होने के कारण दोनों बच्चों के जीवन की दशा और दिशा अलग-अलग होती है. जुड़वां बच्चों की कुंडली का अध्ययन विशेष तरीकों से किया जा सकता है.जुड़वां बच्चों की कुंडली में खासतौर पर जन्म स्थान, जन्म तिथि और दिन एक समान होते हैं. लेकिन शक्ल, विचारधाएं, इच्छाएं और बच्चों के साथ होनी वाली घटनाओं में अंतर होता है. इतना ही नहीं दोनों का व्यक्तित्व भी अलग होता है.

कैसे देखें जुड़वां बच्चों की कुंडली

जुड़वां बच्चों की कुंडली देखना आसान काम नहीं है, क्योंकि जन्म स्थान, जन्म तिथि आदि जैसी कई चीजें समान होने के साथ यह दिखने में एक जैसी प्रतीत होती है. इसलिए जुड़वां बच्चों की कुंडली बनाते समय जन्म कुंडली के साथ ही गर्भ कुंडली का निर्माण किया जाता है.

गर्भ कुंडली और जन्म कुंडली में अंतर

गर्भ कुंडली, जन्म कुंडली से अलग होती है. गर्भ कुंडली से जुड़वां बच्चों के भविष्य के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है. गर्भ कुंडली को जन्म कुंडली के आधार पर ही बनाया जाता है. लेकिन इसे गर्भाधान या गर्भधारण के समय को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है. लेकिन यह काफी कठिन कार्य है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि गर्भाधान के अनुसार जुड़वां बच्चों की कुंडली बनाई जाए तो जुड़वां बच्चों के जीवन और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को आसानी से समझा जा सकता है.

क्यों जरूरी है गर्भाधान मुहूर्त को जानना

कहा जाता है कि बच्चे पर माता-पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ता है और खासकर सबसे अधिक मां का. क्योंकि शिशु पूरे 9 महीने मां के गर्भ में ही आश्रय पाता है. माना जाता है कि जिस समय दंपत्ति गर्भाधान करते हैं उस समय ब्रह्मांड में नक्षत्रों की व्यवस्था और ग्रहों की स्थितियों का भी प्रभाव होने वाले बच्चे पर पड़ता है. यही कारण है कि शास्त्रों में गर्भाधान के मुहूर्त को महत्वपूर्ण माना जाता है. गर्भाधान के दिन, समय, तिथि वार, नक्षत्र, चंद्र स्थिति और दंपतियों की कुंडली आदि का गहनता से परीक्षण कर गर्भाधान मुहूर्त को निकाला जाता है.

इस कारण एक जैसा नहीं होता जुड़वां बच्चों का भविष्य

कृष्णमूर्ति पद्धति, जिसका निर्माण वैदिक ज्योतिष से प्रेरणा लेकर हुआ है, इसमें नक्षत्र और उपनक्षत्र के आधार पर ग्रहों से मिलने वाले फल की गणना की जाती है. इसके अनुसार, जुड़वां बच्चों की जन्मतिथि भले ही समान होती है, लेकिन समय में अंतर होता है. कहा जाता है कि जुड़वां बच्चों के जन्म में 3 मिनट से लेकर 10 या फिर 12 मिनट का अंतर हो सकता है.

इस दौरान लग्न अंशों और ग्रहों के अंशों में भी बदलाव हो जाता है. क्योंकि ज्योतिष के अनुसार इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी भी बदल जाते हैं और इस अंतर के कारण एक नक्षत्र में जन्म लेने के कारण जुड़वां बच्चों के नक्षत्र के स्वामियों में अंतर आ सकता है. इसी सूक्ष्म गणना के अनुसार जुड़वां बच्चों की पत्रिकाएं भी अलग हो जाएंगी और उनके व्यवहार व भविष्य भी एक जैसे नहीं रहेंगे.

जानें किन ग्रहों का आधिपत्य किन वस्तुओं पर

 

  • सूर्य ग्रह- तांबा, माणिक्य, राजसी चिह्नयुक्त वस्तु, पुरातन महत्व वाली वस्तु और विज्ञान से संबंधित वस्तुओं का संबंध सूर्य ग्रह से होता है. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ग्रह की स्थिति शुभ हो तो उसे इससे संबंधित चीजों को ग्रहण करना शुभ फलदायी होता है.वहीं सूर्य नीच या दु:स्थान में हो तो ऐसी चीजों का दान करना उचित होता है. 
  • चंद्रमा ग्रह, चांदी, चावल, सीप, मोती, शंख, वाहन आदि जैसी वस्तुएं चंद्रमा से संबंधित होती हैं. चंद्रमा की अनिष्ट स्थिति में इन चीजों का दान करना चाहिए लेकिन ग्रहण नहीं करना चाहिए. वहीं कुंडली में चंद्र की अच्‍छी स्थिति में होने पर इन वस्तुओं को लेना चाहिए. लेकिन दान नहीं करना चाहिए अन्यथा ग्रह कलेह, चिंता, व्यर्थ भागदौड़ आदि में परेशानी में वृद्धि होती है.
  • मंगल ग्रह- जिंक धातु और चोरी की वस्तुओं पर मंगल ग्रह का आधिपत्य होता है.कुंडली में मंगल ग्रह अनिष्ट फल दे तो किसी से भी मिठाई का भेंट लेने से बचें. लेकिन मिठाई का दान करना अच्छा होता है.
  • बुध ग्रह- कुंडली में यदि बुध अनिष्ट फलदायी हो तो कलम , खिलौने और खेलकूद का सामान देने चाहिए. वहीं कुंडली में यदि बुध शुभ फलदायी हो तो इन चीजों को लेने में संकोच नहीं करें.
  • गुरु ग्रह- धार्मिक पुस्तकें, स्वर्ण, पीले वस्त्र, केसर आदि का उपहार गुरु के अशुभ फलदायी होने पर ले सकते हैं. लेकिन इन चीजों का दान करने पर गुरु का शुभ फल कम हो सकता है. इससे धन आवक में अवरोध, व्यापार में घाटा और तरक्की में रुकावटें हो सकती है. 
  • शुक्र ग्रह- सुगंधित द्रव्य, रेशमी वस्त्र, चार पहिया वाहन, सुख-सुविधा से जुड़े सामान, स्‍त्रियों प्रसाधान वस्तुएं शुक्र ग्रह से संबंधित होती हैं. यदि कुंडली में शुक्र अशुभ फलदायी हो तो इन चीजों को बांटें लेकिन ग्रहण नहीं करें. ऐसा करना स्त्रियों से पीड़ा, वैमनस्य, मूत्र रोग का कारण बन सकते हैं.
  • शनि ग्रह- कुंडली में यदि शनि ग्रह शुभ स्थिति में तो ही पार्टी वगैरह में जाएं लेकिन घर पर मेहमानों को बुलाकर पार्टी न करें.
  • राहु ग्रह- बिजली उपकरण, कार्बन, दवाइयां, वर्तुलाकार आदि वस्तुओं पर राहु ग्रह का अधिकार होता है. इन वस्तुओं का आदान-प्रदान करने से पहले कुंडली में राहु की स्थिति जरूर जान लें.
  • केतु ग्रह- कंबल, जूते-चप्पल, कुत्ता, चाकू-छुरी, मछली से बने व्यंजन आदि पर केतु ग्रह का अधिकार है. केतु अच्छा हो तो इन वस्तुओं को लेना चाहिए लेकिन देने से बचें. केतु कमजोर होने पर इन चीजों का लेने और मजबूत होने पर देने पर कान के रोग, पैरों पर चोट और पुत्र को पीड़ा हो सकती है.