बुधवार, 19 अप्रैल 2023

शुक्र का अन्य ग्रहों के साथ युति का क्या फल होता है ?

 सूर्य-शुक्र युति

इस युति को ज्योतिष में अच्छा नहीं कहा गया है। दरअसल शुक्र सूर्य के समीप आकर अपनी ऊर्जा को खो देता है जिसके कारण जातक को सुख में कमी महसूस होती है। इस युति के कारण जीवन में संघर्ष के साथ ही पत्नी के सुख की कमी अनुभव हो सकती है। 


चन्द्रमा-शुक्र युति

इस युति के जातक को अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। जातक का शरीर सुंदर होगा और उसे कला साहित्य में रूचि होगी। ऐसा जातक स्त्री वर्ग में लोकप्रिय हो सकता है। उसे व्यापार में लाभ प्राप्त होता है। एक अच्छा लेखक, अभिनेता और कवि भी हो सकता है। 


मंगल-शुक्र युति

मंगल रक्त और शुक्र वीर्य का कारक होने के कारण यह युति शुभ नहीं है। इस युति पर राहु का प्रभाव हो तो स्त्री और पुरुष दोनों चरित्रहीन हो सकते हैं। रक्त से जुड़ी बीमारी और यौन सुख में कमी भी जातक को अनुभव हो सकती है। वैवाहिक जीवन ठीक नहीं होगा। 


बुध-शुक्र युति

बुध वाणी और शुक्र कला का कारक होने के कारण यह युति शानदार परिणाम देने वाली होती है। जातक एक प्रसिद्ध लेखक हो सकता है। हास्य नाटक का लेखक या बड़ा निर्देशक बन सकता है। ऐसे व्यक्ति पढ़ाई में बहुत अच्छा होगा। अपनी बुद्धि से स्त्री वर्ग को प्रसन्न रखता है।


गुरु- शुक्र युति 

इस युति में जातक असमंजस में रहता है क्योंकि उसे भौतिक और आध्यात्मिक दोनों सुख मिलते हैं ऐसे में व्यक्ति का चरित्र लोगों की समझ में नहीं आता है। स्त्री सुख में कमी लेकिन मंत्रों का ज्ञाता और वेद में निपुण होगा। ऐसा व्यक्ति अपनी वाणी से मन मोह लेता है लेकिन भौतिक सुख में कमी अवश्य रहती है। 


शनि-शुक्र युति 

शनि की ऊर्जा शुक्र को खत्म कर देती है। जातक स्त्री से दूर ही रहता है और यौन सुख में रूचि नहीं रहती है। ऐसा व्यक्ति दार्शनिक भी हो सकता है। ऐसा जातक बातों को बड़ी गहराई से समझता है और मनन करता है। भौतिक सुख की कामना नहीं होती और साधक बन सकता है। 


राहु-शुक्र युति

राहु को छल कपट का कारक कहा गया है लेकिन शुक्र ऐसा नहीं है इसलिए यह युति जीवन में कष्टकारी ही साबित होती है। ऐसा व्यक्ति स्त्री के साथ धोखा करता है और उन्हें भोगने में रूचि रखता है। नशे का आदी और शराब पीने वाला होगा। ऐसे में यह युति चरित्र के लिए ठीक नहीं है


केतु-शुक्र युति 

केतु शुक्र की ऊर्जा को उभारने का काम करता है। इस युति के कारण जातक की सिनेमा और साहित्य में अच्छी रूचि होगी। ऐसा व्यक्ति अपनी स्त्री का सुख कम ही भोगता है। जीवन में किसी ना किसी लड़की का प्रवेश होता रहता है। बुद्धि स्थिर नहीं होगी और जातक इधर उधर की बात सोचता रहता है।


शुक्रवार, 17 मार्च 2023

जुड़वां बच्चों की कुंडली होती है समान, फिर क्यों भविष्य में होता है अंतर ?

 

जुड़वां बच्चों के जन्म में कुछ समय का अंतर होता है. यह 3 से 12 मिनट का हो सकता है. ज्योतिष के अनुसार इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी बदल जाने से बच्चों के भाग्य में  भी अंतर हो जाता है

ज्योतिष’ मुनष्य के भविष्य को ज्ञात करने वाली पद्धित मानी जाती है. इसलिए कहा जाता है कि जब तक भविष्य है तब तक ज्योतिष भी है. ज्योतिषियों से हर कोई भविष्य जानना चाहता है. लेकिन सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्न हैं कि ‘जुडवां बच्चों की कुंडली समान होने के बाद भाग्य में अंतर क्यों कहा जाता है कि कर्म सिद्धांत के कारण भी जुड़वां बच्चों के भाग्य में अंतर होता है. क्योंकि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अगले जन्म में भुगतना पड़ता है. जुड़वां बच्चों पर भी यही बात लागू होती है. भले ही उनके जन्म समय में कुछ मिनट का अंतर होता है, लेकिन उनके द्वारा किए कर्म उन्हें अलग-अलग दिशाओं में ले जाते हैं.

वास्तव में जुड़वां बच्चों की कुंडली महत्वपूर्ण विषय है. यदि प्रत्यक्ष रूप में देखा जाए तो दोनों की कुंडली समान लगती है और जन्म समय में भी बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है. फिर भी भाग्य में अंतर होने के कारण दोनों बच्चों के जीवन की दशा और दिशा अलग-अलग होती है. जुड़वां बच्चों की कुंडली का अध्ययन विशेष तरीकों से किया जा सकता है.जुड़वां बच्चों की कुंडली में खासतौर पर जन्म स्थान, जन्म तिथि और दिन एक समान होते हैं. लेकिन शक्ल, विचारधाएं, इच्छाएं और बच्चों के साथ होनी वाली घटनाओं में अंतर होता है. इतना ही नहीं दोनों का व्यक्तित्व भी अलग होता है.

कैसे देखें जुड़वां बच्चों की कुंडली

जुड़वां बच्चों की कुंडली देखना आसान काम नहीं है, क्योंकि जन्म स्थान, जन्म तिथि आदि जैसी कई चीजें समान होने के साथ यह दिखने में एक जैसी प्रतीत होती है. इसलिए जुड़वां बच्चों की कुंडली बनाते समय जन्म कुंडली के साथ ही गर्भ कुंडली का निर्माण किया जाता है.

गर्भ कुंडली और जन्म कुंडली में अंतर

गर्भ कुंडली, जन्म कुंडली से अलग होती है. गर्भ कुंडली से जुड़वां बच्चों के भविष्य के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है. गर्भ कुंडली को जन्म कुंडली के आधार पर ही बनाया जाता है. लेकिन इसे गर्भाधान या गर्भधारण के समय को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है. लेकिन यह काफी कठिन कार्य है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि गर्भाधान के अनुसार जुड़वां बच्चों की कुंडली बनाई जाए तो जुड़वां बच्चों के जीवन और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को आसानी से समझा जा सकता है.

क्यों जरूरी है गर्भाधान मुहूर्त को जानना

कहा जाता है कि बच्चे पर माता-पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ता है और खासकर सबसे अधिक मां का. क्योंकि शिशु पूरे 9 महीने मां के गर्भ में ही आश्रय पाता है. माना जाता है कि जिस समय दंपत्ति गर्भाधान करते हैं उस समय ब्रह्मांड में नक्षत्रों की व्यवस्था और ग्रहों की स्थितियों का भी प्रभाव होने वाले बच्चे पर पड़ता है. यही कारण है कि शास्त्रों में गर्भाधान के मुहूर्त को महत्वपूर्ण माना जाता है. गर्भाधान के दिन, समय, तिथि वार, नक्षत्र, चंद्र स्थिति और दंपतियों की कुंडली आदि का गहनता से परीक्षण कर गर्भाधान मुहूर्त को निकाला जाता है.

इस कारण एक जैसा नहीं होता जुड़वां बच्चों का भविष्य

कृष्णमूर्ति पद्धति, जिसका निर्माण वैदिक ज्योतिष से प्रेरणा लेकर हुआ है, इसमें नक्षत्र और उपनक्षत्र के आधार पर ग्रहों से मिलने वाले फल की गणना की जाती है. इसके अनुसार, जुड़वां बच्चों की जन्मतिथि भले ही समान होती है, लेकिन समय में अंतर होता है. कहा जाता है कि जुड़वां बच्चों के जन्म में 3 मिनट से लेकर 10 या फिर 12 मिनट का अंतर हो सकता है.

इस दौरान लग्न अंशों और ग्रहों के अंशों में भी बदलाव हो जाता है. क्योंकि ज्योतिष के अनुसार इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी भी बदल जाते हैं और इस अंतर के कारण एक नक्षत्र में जन्म लेने के कारण जुड़वां बच्चों के नक्षत्र के स्वामियों में अंतर आ सकता है. इसी सूक्ष्म गणना के अनुसार जुड़वां बच्चों की पत्रिकाएं भी अलग हो जाएंगी और उनके व्यवहार व भविष्य भी एक जैसे नहीं रहेंगे.

जानें किन ग्रहों का आधिपत्य किन वस्तुओं पर

 

  • सूर्य ग्रह- तांबा, माणिक्य, राजसी चिह्नयुक्त वस्तु, पुरातन महत्व वाली वस्तु और विज्ञान से संबंधित वस्तुओं का संबंध सूर्य ग्रह से होता है. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ग्रह की स्थिति शुभ हो तो उसे इससे संबंधित चीजों को ग्रहण करना शुभ फलदायी होता है.वहीं सूर्य नीच या दु:स्थान में हो तो ऐसी चीजों का दान करना उचित होता है. 
  • चंद्रमा ग्रह, चांदी, चावल, सीप, मोती, शंख, वाहन आदि जैसी वस्तुएं चंद्रमा से संबंधित होती हैं. चंद्रमा की अनिष्ट स्थिति में इन चीजों का दान करना चाहिए लेकिन ग्रहण नहीं करना चाहिए. वहीं कुंडली में चंद्र की अच्‍छी स्थिति में होने पर इन वस्तुओं को लेना चाहिए. लेकिन दान नहीं करना चाहिए अन्यथा ग्रह कलेह, चिंता, व्यर्थ भागदौड़ आदि में परेशानी में वृद्धि होती है.
  • मंगल ग्रह- जिंक धातु और चोरी की वस्तुओं पर मंगल ग्रह का आधिपत्य होता है.कुंडली में मंगल ग्रह अनिष्ट फल दे तो किसी से भी मिठाई का भेंट लेने से बचें. लेकिन मिठाई का दान करना अच्छा होता है.
  • बुध ग्रह- कुंडली में यदि बुध अनिष्ट फलदायी हो तो कलम , खिलौने और खेलकूद का सामान देने चाहिए. वहीं कुंडली में यदि बुध शुभ फलदायी हो तो इन चीजों को लेने में संकोच नहीं करें.
  • गुरु ग्रह- धार्मिक पुस्तकें, स्वर्ण, पीले वस्त्र, केसर आदि का उपहार गुरु के अशुभ फलदायी होने पर ले सकते हैं. लेकिन इन चीजों का दान करने पर गुरु का शुभ फल कम हो सकता है. इससे धन आवक में अवरोध, व्यापार में घाटा और तरक्की में रुकावटें हो सकती है. 
  • शुक्र ग्रह- सुगंधित द्रव्य, रेशमी वस्त्र, चार पहिया वाहन, सुख-सुविधा से जुड़े सामान, स्‍त्रियों प्रसाधान वस्तुएं शुक्र ग्रह से संबंधित होती हैं. यदि कुंडली में शुक्र अशुभ फलदायी हो तो इन चीजों को बांटें लेकिन ग्रहण नहीं करें. ऐसा करना स्त्रियों से पीड़ा, वैमनस्य, मूत्र रोग का कारण बन सकते हैं.
  • शनि ग्रह- कुंडली में यदि शनि ग्रह शुभ स्थिति में तो ही पार्टी वगैरह में जाएं लेकिन घर पर मेहमानों को बुलाकर पार्टी न करें.
  • राहु ग्रह- बिजली उपकरण, कार्बन, दवाइयां, वर्तुलाकार आदि वस्तुओं पर राहु ग्रह का अधिकार होता है. इन वस्तुओं का आदान-प्रदान करने से पहले कुंडली में राहु की स्थिति जरूर जान लें.
  • केतु ग्रह- कंबल, जूते-चप्पल, कुत्ता, चाकू-छुरी, मछली से बने व्यंजन आदि पर केतु ग्रह का अधिकार है. केतु अच्छा हो तो इन वस्तुओं को लेना चाहिए लेकिन देने से बचें. केतु कमजोर होने पर इन चीजों का लेने और मजबूत होने पर देने पर कान के रोग, पैरों पर चोट और पुत्र को पीड़ा हो सकती है.

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

बारह भावों के विभिन्न नाम

 प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य का विचार होता है।

द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमुल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।

तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, अपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि पर विचार करते है।

चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख का विचार करते है।

पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्टा आदि का विचार करते हैं।

षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि का विचार होता है।

सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, सांझेदारी के व्यापार आदि पर विचार किया जाता है।

अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि का विचार होता है।

नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों पर विचार इसी भाव के अन्तर्गत होता है।

दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुषृय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्ध यात्राएं, सुख आदि पर विचार किया जाता है।

एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भा से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि का विचार होता है।

द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि का विचार किया जाता है।