वैदिक ज्योतिष के शास्त्रों में वर्णित परिभाषा अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मंगल और राहु एक साथ किसी घर में बैठकर युति कर रहे हों अथवा मंगल व राहू के बीच दृष्टि संबंध बन रहा हो तो ऐसी जन्मकुंडली में अंगारक योग निर्मित होता है।
जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में "अंगारक दोष" का निर्माण होता है तो व्यक्ति का स्वभाव हिंसक पशु जैसा हो जाता है। अंगारक दोष वाले व्यक्तियों के अपने बंधुओं, मित्रों व रिश्तेदारों के साथ कटु संबंध स्थापित होते हैं।
वैदिक ज्योतिष के फलित खंड अनुसार अंगारक दोष वाले व्यक्ति शुभाशुभ दशा-अंतर्दशा आने पर अपराधी बन जाते हैं व उसे अपने असामाजिक कार्यों के चलते लंबे समय तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ता है। कुंडली में किस भाव में अंगारक दोष बनता है उसके अनुसार ही फल प्राप्त होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं। जमिन जायदाद से जुड़ी परेशानियां व धन संबंधित परेशानियां बनी रहती हैं। माता के सुख में कमी आती है। संतान प्राप्ति में परेशानियां आती है इत्यादि।
सावन माह में भगवान शिव खुद विराजते हैं और यहां मन्नतें पूर्ण करतेहै
राहू व मंगल की युति अथवा दृष्टि संबंध को "लाल किताब" में "पागल हाथी" अथवा "खूंखार शेर" कहकर संबोधित किया गया है।
अगर यह योग किसी की कुंडली में होता है तो वो व्यक्ति अपनी मेहनत से नाम व पैसा कमाता है। ऐसे लोगों के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं।
यह योग अच्छा और बुरा दोनों तरह का फल देने वाला है। वास्तविकता में वैदिक ज्योतिष व लाल किताब में "अंगारक दोष" की व्याख्या का मूल उद्देश है व्यक्ति की क्रूर मानसिकता को परिभाषित करना।
अंगारक दोष का अशुभ फल तब प्राप्त होता है जब कुंडली में मंगल व राहु दोनों ही अशुभ होते हैं। कुंडली में मंगल व राहु में से किसी के शुभ होने की स्थिति में जातक को अशुभ फल प्राप्त नहीं होते। कुंडली में मंगल व राहु दोनों के शुभ होने पर शुभ फलकारी अंगारक योग बनाता है। यह योग शुभ व अशुभ दोनो रूप से फल देता है।
वैदिक ज्योतिष अनुसार कुंडली में अंगारक की स्थिति होने पर इसकी शांति आवश्यक है अन्यथा लंबे समय तक परेशानियां बनी रहती है।
जन्मकुंडली के द्वादश भाव में आंगरक योग का फल
- पहले भाव में अंगारक योग होने से पेट रोग, शरीर पर चोट, अस्थिर मानसिकता, क्रूरता होती है।
- दूसरे भाव में अंगारक योग होने से धन में उतार-चढ़ाव व व्यक्ति का घर-बार बरबाद हो जाता है।
- तीसरे भाव में अंगारक योग होने से भाइयों से कटु संबंध बनते हैं परंतु व्यक्ति धोखेबाजी से सफल हो जाता है।
- चौथे भाव में अंगारक योग होने से माता को दुख व भूमि संबंधित विवाद होते हैं।
- पांचवें भाव में अंगारक योग होने से संतानहीनता व जुए-सट्टे से लाभ होता है।
- छठे भाव में अंगारक योग होने से ऋण लेकर उन्नति होती है। व्यक्ति खूनी या शल्य-चिकित्सक भी बन सकता है।
- सातवें भाव में अंगारक योग होने से दुखी विवाहित जीवन, नाजायज संबंध, विधवा या विधुर होना परंतु सांझेदारी से लाभ भी मिलता है।
- आठवें भाव में अंगारक योग होने से पैतृक सम्पत्ति मिलती है परंतु सड़क दुर्घटना के प्रबल योग बनते हैं।
- नवें भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति भाग्यहीन, वहमी, रूढ़ीवादी व तंत्रमंत्र में लिप्त होते हैं।
- दसवें भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति अति कर्मठ, मेहनतकश, स्पोर्टमेन व अत्यधिक सफल होते हैं।
- ग्यारवें भाव में अंगारक योग होने से प्रॉपर्टी से लाभ मिलता है। व्यक्ति चोर, कपटी धोखेबाज़ होते हैं।
- बारहवें भाव में अंगारक योग होने से इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट व रिश्वतख़ोरी से लाभ। ऐसे व्यक्ति बलात्कार जैसे अपराधों में भी लिप्त होते हैं।
उपाय: अंगारक योग की अशुभता को दूर करने हेतु वैदिक शास्त्रों नें पुरुषों हेतु अंगारेश्वर महादेव व स्त्रियॉं हेतु मंगलचंडिका में माध्यम से मंगल-राहु अंगारक योग की शांति होती है।