शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

दीपावली का त्योहार और उससे जुड़ी कथाएं

दीपावली पांच पर्वों का त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरकचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि त्योहार मनाए जाते हैं.

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दीपावली पांच पर्वों का अनूठा त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि मनाए जाते हैं. घर के बड़े-बुजुर्ग घरों की साफ-सफाई करते हैं, घरों में सफेदी कराते हैं. घरों को सजाते हैं, नये साल का कलैंडर लगाते हैं. बच्चे घरों को सजाने में रुचि लेते हैं, साथ ही दीपावली के दिन से पहले ही पटाखे फोड़ना शुरू कर देते हैं. लोग आपस में मिठाइयां बांटते हैं.
बाजार नये-नये सामानों से सज जाते हैं. बाजारों में रोनक तो देखते ही बनती है. लोग इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. दीपावली की रात्रि को महानिशीथ के नाम से जाना जाता है. इस रात्रि में कई प्रकार के तंत्र-मंत्र से महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर पूरे साल के लिए सुख-समृद्धि और धन लाभ की कामना की जाती है.
दीपावली पर पूजन के लिए सामग्री
महालक्ष्मी पूजन में केसर, रोली, चावल, पान का पत्ता, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बतासे, सिन्दूर, सूखे मेवे, मिठाई, दही गंगाजल धूप, अगरबत्ती दीपक रुई, कलावा, नारियल और कलश के लिए एक ताम्बे का पात्र चाहिए.
कैसे करें दीपावली पर पूजन की तैयारी
1. एक थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनाएं या नवग्रह का यंत्र स्थापित करें. इसके साथ ही एक ताम्बे का कलश बनाएं, जिसमें गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपड़े से ढक कर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर रख दें.
2. जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया है, वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिटटी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश सरस्वती जी या ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवी देवताओं की मूर्तियां या चित्र सजायें.
3. कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही और गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फल-फूल आदि से सजाएं. इसके ही दाहिने ओर एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है.
4. दिवाली के दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है. इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रूप में उनका स्वागत किया जाता है. दिवाली के दिन जहां गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि और धन की कामना करते हैं, वहीं साधु-संत और तांत्रिक कुछ विशेष सिद्धियां अर्जित करने के लिए रात्रिकाल में अपने तांत्रिक कर्म करते हैं.
दीपावली पर पूजा का विधान
1. घर के बड़े-बुजुर्गों को या नित्य पूजा-पाठ करने वालों को महालक्ष्मी पूजन के लिए व्रत रखना चाहिए. घर के सभी सदस्यों को महालक्ष्मी पूजन के समय घर से बाहर नहीं जाना चाहिए. सदस्य स्नान करके पवित्र आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम करके स्वस्ति वाचन करें. फिर गणेशजी का स्मरण कर अपने दाहिने हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, दव्य और जल आदि लेकर दीपावली महोत्सव के निमित्त गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजनार्थ संकल्प करें.
2. कुबेर पूजन करना लाभकारी होता है. कुबेर पूजन करने के लिये सबसे पहले तिजोरी अथवा धन रखने के संदुक पर स्वस्तिक का चिन्ह बनायें, और कुबेर का आह्वान करें.
3. सबसे पहले गणेश और अम्बिका का पूजन करें. फिर कलश स्थापन, षोडशमातृका पूजन और नवग्रह पूजन करके महालक्ष्मी आदि देवी-देवताओं का पूजन करें. पूजन के बाद सभी सदस्य प्रसन्न मुद्रा में घर में सजावट और आतिशबाजी का आयोजन करें.
4. आप हाथ में अक्षत, पुष्प, जल और धन राशि ले लें. यह सब हाथ में लेकर संकसंकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए, ‘मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान और समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो’. सबसे पहले गणेश जी और गौरी का पूजन करिए.
5. हाथ में थोड़ा-सा जल ले लें और भगवान का ध्यान करते हुए पूजा सामग्री चढ़ाएं. हाथ में अक्षत और पुष्प ले लें. अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन करें. घर पूरा धन-धान्य और सुख-समृद्धि हो जाएगा.
6. दीपावली का विधिवत-पूजन करने के बाद घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी जी की आरती की जाती है. आरती के लिए एक थाली में रोली से स्वास्तिक बनाएं. उस में कुछ अक्षत और पुष्प डालें, गाय के घी का चार मुखी दीपक चलायें. और मां लक्ष्मी की शंख, घंटी, डमरू आदि से आरती उतारें.
7. आरती करते समय परिवार के सभी सदस्य एक साथ होने चाहिए. परिवार के प्रत्येक सदस्य को माता लक्ष्मी के सामने सात बार आरती घूमानी चाहिए. सात बात होने के बाद आरती की थाली को लाइन में खड़े परिवार के अगले सदस्य को दे देना चाहिए. यहीं क्रिया सभी सदस्यों को करनी चाहिए.
8. दीपावली पर सरस्वती पूजन करने का भी विधान है. इसके लिए लक्ष्मी पूजन करने के पश्चात मां सरस्वती का भी पूजन करना चाहिए.
9. दीपावली एवं धनत्रयोदशी पर महालक्ष्मी के पूजन के साथ-साथ धनाध्यक्ष कुबेर का पूजन भी किया जाता है. कुबेर पूजन करने से घर में स्थायी सम्पत्ति में वृद्धि होती है और धन का अभाव दूर होता है.
इनका पूजन इस प्रकार करें.
कैसे करें बही-खाता पूजन
1. बही खातों का पूजन करने के लिए पूजा मुहुर्त समय अवधि में नवीन खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से या फिर लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए. इसके बाद इनके ऊपर 'श्री गणेशाय नम:' लिखना चाहिए. इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए.
2. मां सरस्वती का ध्यान करें. ध्यान करें कि जो मां अपने कर कमलों में घटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, चन्द्र के समान जिनकी मनोहर कांति है. जो शुंभ आदि दैत्यों का नाश करने वाली है. ‘वाणी’ जिनका स्वरूप है, जो सच्चिदानन्दमय से संपन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूं. ध्यान करने के बाद बही खातों का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करना चाहिए.
3. जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया गया है, वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती जी की मूर्तियां सजायें. कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही ओर गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फूल आदि से सजाएं. इसके ही दाहिने और एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें, जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है.
दीपावली को मनाने के पीछे की कथाएं
पहली कथाः 
एक बार की बात है, एक बार एक राजा ने एक लकड़हारे पर प्रसन्न होकर उसे एक चंदन की लकड़ी का जंगल उपहार स्वरुप दे दिया. पर लकड़हारा तो ठहरा लकड़हारा, भला उसे चंदन की लकड़ी का महत्व क्या मालूम, वह जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर उन्हें जलाकर, भोजन बनाने के लिये प्रयोग करता था.
राजा को अपने अपने गुप्तचरों से यह बात पता चली तो, उसकी समझ में आ गया कि, धन का उपयोग भी बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाता है. यही कारण है कि लक्ष्मी जी और श्री गणेश जी की एक साथ पूजा की जाती है. ताकि व्यक्ति को धन के साथ साथ उसे प्रयोग करने कि योग्यता भी आयें.
श्री राम का अयोध्या वापस आनाः- धार्मिक ग्रन्थ रामायण में यह कहा गया कि जब चौदह साल का वनवास काट कर राजा राम, लंका नरेश रावण का वध कर, वापस अयोध्या आये थे, उन्ही के वापस आने की खुशी में अयोध्या वासियों ने अयोध्या को दीयों से सजाया था. अपने भगवान के आने की खुशी में अयोध्या नगरी दीयों की रोशनी में जगमगा उठी थी.
दूसरी कथाः 
भगवान कृ्ष्ण ने दीपावली से एक दिन पहले नरकासुर का वध किया था. नरकासुर एक दानव था और उसके पृथ्वी लोक को उसके आतंक से मुक्त किया था. इसी कारण बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रुप में भी दीपावली पर्व मनाया जाता है.
राजा और साधु की कथाः 
एक कथा के अनुसार, एक बार के साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार आया. इसके लिये उसने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी. तपस्या पूरी होने पर लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित वरदान दे दिया. वरदान प्राप्त करने के बाद वह साधु राजा के दरबार में पहुंचा और सिंहासन पर चढ़कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया.
राजा ने देखा कि मुकुट के अन्दर से एक विषैला सांप निकल कर भागा. यह देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की थी. इसी प्रकार एक बार साधु ने सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा, सभी के बाहर जाते ही, राजमहल गिर कर खंडहर में बदल गया. राजा ने फिर उसकी प्रशंसा की, अपनी प्रशंसा सुनकर साधु के मन में अहंकार आने लगा.
साधु को अपनी गलती का पता चला, उसने गणपति को प्रसन्न किया, गणपति के प्रसन्न होने पर राजा की नाराजगी दूर हो और साधु को उसका स्थान वापस दे दिया गया. इसीलिए कहा गया है कि धन के लिये बुद्धि का होना आवश्यक है. यही कारण कि दीपावली पर लक्ष्मी व श्री गणेश के रुप में धन व बुद्धि की पूजा की जाती है.
लक्ष्मी जी और साहूकार की बेटी की कथा
एक गांव में एक साहूकार था, उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी. जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पेड़ पर लक्ष्मी जी का वास था. एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा ‘मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ’. लड़की ने कहा की ‘मैं अपने पिता से पूछ कर आऊंगा’. यह बात उसने अपने पिता को बताई, तो पिता ने ‘हां’ कर दी. दूसरे दिन से साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया.
दोनों अच्छे मित्रों की तरह आपस में बातचीत करने लगे. एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई. अपने घर में लक्ष्मी जी उसका दिल खोल कर स्वागत किया. उसकी खूब खातिर की. उसे अनेक प्रकार के भोजन परोसे. मेहमान नवाजी के बाद जब साहूकार की बेटी लौटने लगी तो, लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया कि अब तुम मुझे कब अपने घर बुलाओगी. साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला तो लिया, परन्तु अपने घर की आर्थिक स्थिति देख कर वह उदास हो गई. उसे डर लग रहा था कि क्या वह, लक्ष्मी जी का अच्छे से स्वागत कर पायेगी.
साहूकार ने अपनी बेटी को उदास देखा तो वह समझ गया, उसने अपनी बेटी को समझाया, कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ-सफाई कर. चार बत्ती के मुख वाला दिया जला और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा. उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर उसके पास डाल गया. साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर भोजन की तैयारी की. थोड़ी देर में श्री गणेश के साथ लक्ष्मी जी उसके घर आ गई. साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की, उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई. और साहूकार बहुत अमीर बन गया.
इन्द्र और बलि कथाः 
एक बार देवताओं के राजा इन्द्र से डर कर राक्षस राज बलि कहीं जाकर छुप गये. देवराज इन्द्र दैत्य राज को ढूंढते- ढूंढते एक खाली घर में पहुंचे, वहां बलि गधे के रूप में छुपे हुए थे. दोनों की आपस में बातचीत होने लगी. उन दोनों की बातचीत अभी चल ही रही थी, कि उसी समय दैत्यराज बलि के शरीर से एक स्त्री बाहर निकली.
देव राज इन्द्र के पूछने पर स्त्री ने कहा, ‘मै, देवी लक्ष्मी हूं. मैं स्वभाव वश एक स्थान पर टिककर नहीं रहती हूं’. परन्तु मैं उसी स्थान पर स्थिर होकर रहती हूं, जहां सत्य, दान, व्रत, तप, पराक्रम तथा धर्म रहते हैं. जो व्यक्ति सत्यवादी होता है, ब्राह्मणों का हितैषी होता है, धर्म की मर्यादा का पालन करता है. उसी के यहां मैं निवास करती हूं. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि लक्ष्मी जी केवल वहीं स्थायी रूप से निवास करती है, जहां अच्छे गुणी व्यक्ति निवास करते हैं.

शनिवार, 23 जून 2018

क्यों मिलाते हैं कुंडली?

क्यों मिलाते हैं कुंडली?
1. दोनों के बीच आपसी सामंजस्य अच्छा रहे।
2. दोनों का स्वास्थ्य अच्‍छा रहे।
3. दोनों को रतिसुख अच्छे से प्राप्त हो।
4. दोनों में से किसी का भी अनिष्ट न हो।
5. दोनों को ही आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े।
6. दोनों को ही संतान सुख की प्राप्ति हो।

उक्त 6 पॉइंट में शारीरिक, आर्थिक और मानसिक सुख सिमटा हुआ है। इन तीनों ही तरह के सुखों से लड़का और लड़की किसी भी प्रकार से वंचित न हो इसीलिए दोनों की ही कुंडली का मिलान किया जाता है। मिलान नहीं होने से यह माना जाता है कि यदि मिलान उचित नहीं है और फिर भी दोनों विवाह कर लेते हैं तो किसी भी प्रकार का अनिष्ट न भी हो, तो हो सकता है कि उनमें सामंजस्यता कायम न हो या उन्हें संतान सुख प्राप्त न हो। कई बार तलाक की नौबत भी आ जाती है या दोनों में से कोई एक विधुर या विधवा हो जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं।


उक्त बातें जन्म पत्रिका में क्रमश: लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव से देखी जाती है। प्रथम से जातक का स्वास्थ्य, चतुर्थ से घर के उपयोग की वस्तुओं का सुख, सप्तम से परस्पर स्त्री-पुरुष का सहवास-सुख, अष्टम से दीर्घकालीन जीवन तथा द्वादश या 12वें भाव से क्रय-विक्रय की शक्ति आदि पर विचार किया जाता है।

प्रत्येक ग्रह अपने भ्रमणकाल या परिभ्रमण के समय पत्रिका के 12 में से किसी न किसी भाव में होता है। ऐसे में यदि इन 5 भावों में पाप ग्रह हों या ये 5 भाव पाप ग्रहों से दृष्ट हों व युति-संबंध रखते हों, तो दांपत्य जीवन का 5 भागित 12 अर्थात 40 प्रतिशत से अधिक जीवन प्रभावित होता है। ऐसे में हमारे देवज्ञों ने सुखी, समृद्ध तथा आनंदमय दांपत्य जीवन व्यतीत करने के लिए 'अष्टकूट मिलान' करने की परंपरा प्रारंभ की।

क्या होता है अष्टकूट मिलान?
इसमें लड़के और लड़की के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। शास्त्रों में मेलापक के 2 भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर लड़के और लड़की की शिक्षा, चरित्र, भाग्य, आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। नक्षत्रों के 'अष्टकूट' तथा 9 ग्रह (परंपरागत) इस रहस्य को व्यक्त करते हैं।

अष्टकूट सूत्र में दोनों के आपसी गुणधर्मों को 8 भागों में बांटा गया है। ये 8 गुण जन्म राशि एवं नक्षत्र पर आधारित हैं। दोनों की कुंडली में जन्म समय चन्द्र जिस राशि एवं नक्षत्र में होता है उन्हें जातक की व्यक्तिगत राशि एवं नक्षत्र कहा जाता है। 8 गुणों को क्रमश: 1 से 8 अंक दिए गए हैं, जो कुल मिलाकर 36 होते हैं। प्रत्येक गुण के अलग-अलग अंक निर्धारित हैं। इन 36 अंकों में से से कम से कम 19 अंक मिल जाने से मिलान को ठीक माना जाता है, लेकिन इसके लिए उसका नाड़ी मिलान होना जरूरी होता है।

अष्टकूट मिलान में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, राशीश (ग्रह मैत्री), गण, भटूक और नाड़ी का मिलान किया जाता है। अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं है। कुंडली में मंगल दोष भी देखा जाता है, फिर सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम और सप्तमेश को देख रहे ग्रह और सप्तमेश की युति आदि भी देखी जाती है।

अष्टकूट मिलान में 36 अंकों का वितरण
वर्ण : 1
वश्य : 2
तारा : 3
योनि : 4
मैत्री : 5
गण : 6
भकूट : 7
नाड़ी : 8

1. वर्ण : वर्ण का अर्थ होता है स्वभाव और रंग। वर्ण 4 होते हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। लड़के या लड़की की जाति कुछ भी हो लेकिन उनका स्वभाव और रंग उक्त 4 में से 1 होगा। मिलान में इस मानसिक और शारीरिक मेल का बहुत महत्व है। यहां रंग का इतना महत्व नहीं है जितना कि स्वभाव का है।

2. वश्य : वश्य का संबंध भी मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं- चतुष्पाद, कीट, वनचर, द्विपाद और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है?

3. तारा : तारा का संबंध दोनों के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाई गई है- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं।

4. योनि : योनि का संबंध संभोग से होता है। जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है। विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं- अश्व, गज, मेष, सर्प, श्‍वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। विवाह में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण योनि के कारण ही तो होता है। शरीर संतुष्टि के लिए योनि मिलान भी आवश्यक होता है।

5. राशिश या मैत्री : राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है।

6 . गण : गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैं- देव, राक्षस और मनुष्य।

7. भकूट : भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एक-दूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जाना जाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है।

8. नाड़ी : नाड़ी का संबंध संतान से है। दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी, यह नाड़ी पर निर्भर करता है। शरीर में रक्त प्रवाह और ऊर्जा का विशेष महत्व है। दोनों की ऊर्जा का मिलान नाड़ी से ही होता है।

शुक्रवार, 4 मई 2018

जेल यात्रा योग



वैदिक ज्योतिष के शास्त्रों में वर्णित परिभाषा अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मंगल और राहु एक साथ किसी घर में बैठकर युति कर रहे हों अथवा मंगल व राहू के बीच दृष्टि संबंध बन रहा हो तो ऐसी जन्मकुंडली में अंगारक योग निर्मित होता है। 

जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में "अंगारक दोष" का निर्माण होता है तो व्यक्ति का स्वभाव हिंसक पशु जैसा हो जाता है। अंगारक दोष वाले व्यक्तियों के अपने बंधुओं, मित्रों व रिश्तेदारों के साथ कटु संबंध स्थापित होते हैं। 

वैदिक ज्योतिष के फलित खंड अनुसार अंगारक दोष वाले व्यक्ति शुभाशुभ दशा-अंतर्दशा आने पर अपराधी बन जाते हैं व उसे अपने असामाजिक कार्यों के चलते लंबे समय तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ता है। कुंडली में किस भाव में अंगारक दोष बनता है उसके अनुसार ही फल प्राप्त होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं। जमिन जायदाद से जुड़ी परेशानियां व धन संबंधित परेशानियां बनी रहती हैं। माता के सुख में कमी आती है। संतान प्राप्ति में परेशानियां आती है इत्यादि।
सावन माह में भगवान शिव खुद विराजते हैं  और यहां मन्नतें पूर्ण करतेहै

राहू व मंगल की युति अथवा दृष्टि संबंध को "लाल किताब" में "पागल हाथी" अथवा "खूंखार शेर" कहकर संबोधित किया गया है।

 अगर यह योग किसी की कुंडली में होता है तो वो व्यक्ति अपनी मेहनत से नाम व पैसा कमाता है। ऐसे लोगों के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं। 

यह योग अच्छा और बुरा दोनों तरह का फल देने वाला है। वास्तविकता में वैदिक ज्योतिष व लाल किताब में "अंगारक दोष" की व्याख्या का मूल उद्देश है व्यक्ति की क्रूर मानसिकता को परिभाषित करना। 

अंगारक दोष का अशुभ फल तब प्राप्त होता है जब कुंडली में मंगल व राहु दोनों ही अशुभ होते हैं। कुंडली में मंगल व राहु में से किसी के शुभ होने की स्थिति में जातक को अशुभ फल प्राप्त नहीं होते। कुंडली में मंगल व राहु दोनों के शुभ होने पर शुभ फलकारी अंगारक योग बनाता है। यह योग शुभ व अशुभ दोनो रूप से फल देता है। 

वैदिक ज्योतिष अनुसार कुंडली में अंगारक की स्थिति होने पर इसकी शांति आवश्यक है अन्यथा लंबे समय तक परेशानियां बनी रहती है।
 
जन्मकुंडली के द्वादश भाव में आंगरक योग का फल 

- पहले भाव में अंगारक योग होने से पेट रोग, शरीर पर चोट, अस्थिर मानसिकता, क्रूरता होती है। 
 
- दूसरे भाव में अंगारक योग होने से धन में उतार-चढ़ाव व व्यक्ति का घर-बार बरबाद हो जाता है।
 
- तीसरे भाव में अंगारक योग होने से भाइयों से कटु संबंध बनते हैं परंतु व्यक्ति धोखेबाजी से सफल हो जाता है। 
 
- चौथे भाव में अंगारक योग होने से माता को दुख व भूमि संबंधित विवाद होते हैं।
 
- पांचवें भाव में अंगारक योग होने से संतानहीनता व जुए-सट्टे से लाभ होता है।
 
- छठे भाव में अंगारक योग होने से ऋण लेकर उन्नति होती है। व्यक्ति खूनी या शल्य-चिकित्सक भी बन सकता है। 
 
- सातवें भाव में अंगारक योग होने से दुखी विवाहित जीवन, नाजायज संबंध, विधवा या विधुर होना परंतु सांझेदारी से लाभ भी मिलता है। 
 
- आठवें भाव में अंगारक योग होने से पैतृक सम्पत्ति मिलती है परंतु सड़क दुर्घटना के प्रबल योग बनते हैं।
 
- नवें भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति भाग्यहीन, वहमी, रूढ़ीवादी व तंत्रमंत्र में लिप्त होते हैं।
 
- दसवें भाव में अंगारक योग होने से व्यक्ति अति कर्मठ, मेहनतकश, स्पोर्टमेन व अत्यधिक सफल होते हैं।
 
- ग्यारवें भाव में अंगारक योग होने से प्रॉपर्टी से लाभ मिलता है। व्यक्ति चोर, कपटी धोखेबाज़ होते हैं। 
 
- बारहवें भाव में अंगारक योग होने से इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट व रिश्वतख़ोरी से लाभ। ऐसे व्यक्ति बलात्कार जैसे अपराधों में भी लिप्त होते हैं।  
 
उपाय: अंगारक योग की अशुभता को दूर करने हेतु वैदिक शास्त्रों नें पुरुषों हेतु अंगारेश्वर महादेव व स्त्रियॉं  हेतु मंगलचंडिका में माध्यम से मंगल-राहु अंगारक योग की शांति होती है।