मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

मां काली हिन्दू धर्म की देवी हैं। इन्हें देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि या मां काली कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति राक्षसों के संहार हेतु की गई थी। मान्यता के अनुसार काली माता बल और शक्ति की देवी हैं। आइए इनकी आराधना कर इन्हें प्रसन्न करें।










श्री काली चालीसा
॥॥दोहा ॥॥
जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ॥
अरि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता ॥1॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । हाथ तीसरे सोहत भाला ॥2॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥3॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता । जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥4॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता । तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । कल्याणी पापी कुल घालक ॥5॥
शेष सुरेश न पावत पारा । गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥6॥
रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । भक्तजनों के संकट टारे ॥7॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी । भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । नारद शारद पार न पावैं ॥8॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी । तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । विश्वविदित भव संकट त्राता ॥9॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥10॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥11॥
त्रेता में रघुवर हित आई । दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥12॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे । कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥13॥
ये बालक लखि शंकर आए । राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥14।
बाढ्यो महिषासुर मद भारी । पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता । नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥16॥
मान मथनहारी खल दल के । सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं । उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥18॥
काली चालीसा जो पढ़हीं । स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥19॥
करहु मातु भक्तन रखवाली । जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥20॥
॥॥दोहा॥॥
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥

हिन्दू धर्म में हनुमान जी को वीरता, भक्ति और साहस का परिचायक माना जाता है। शिवजी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंग बली, पवनपुत्र, मारुती नंदन, केसरी आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि हनुमान जी अजर-अमर हैं।

श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa in Hindi)
।।दोहा।।
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार |
बरनौ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ||
।।चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर |
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ||2||
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी |
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा ||4|
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे |
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन ||6|
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर |
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया ||8||
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा |
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे ||10||
लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये |
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई ||12||
सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें |
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ||14||
जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते |
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ||16||
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना |
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु ||18|
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं |
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||20||
राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे |
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना ||22||
आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे |
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें ||24||
नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा |
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें ||26||
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा |
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे ||28||
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा |
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे ||30||
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता 
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ||32||
तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें |
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ||34||
और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई |
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा ||36||
जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं |
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई ||38||
जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा |
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ||40||
।।दोहा।।
पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||
हनुमान चालीसा का लाभ (Benefits of Hanuman Chalisa)
हनुमान जी को प्रतिदिन याद करने और उनके मंत्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं। शनि साढ़ेसाती या महादशा से पीड़ित जातकों के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना लाभदायक माना जाता है। साथ ही जिन लोगों की कुंडली में मांगलिक दोष हो उनके लिए भी हनुमान चालीसा का पाठ लाभदायक समझा जाता है। 
भगवान श्री गणेश हिन्दू धर्म में प्रथम पूजनीय माने जाते हैं। विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा हर शुभ कार्य के आरंभ में की जाती है, जिसे सारे कार्य सूख पूर्वक संपन्न हो जाते हैं। माना जाता है कि श्री गणेश की आराधना करने से घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत तथा हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

॥दोहा॥ जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥ जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू ॥ ॥चौपाई॥ जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥ वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥ राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥ पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥1॥ सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥ धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥ ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥ कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥2॥ एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥ भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥ अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥ अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥3॥ मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥ गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥ अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥ बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥4॥ सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥ शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥ लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥ निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥5॥ गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥ कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥ नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥ पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥6॥ गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥ हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥ तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥ बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥7॥ नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥ बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥ चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥ चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥8॥ तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥ मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥ भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥ अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥9॥ ॥दोहा॥ श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान। नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥ सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश। पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥
श्री शिव चालीसा (Shri Shiv Chalisa in Hindi)
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥7॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥8॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥10॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
श्री दुर्गा चालीसा (Shri Durga Chalisa in Hindi)
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥1॥
तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥2॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥3॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥4॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥5॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन र जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥6॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥7॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥8॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥9॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥10॥
देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

मेरे अनुभूत सरल लघु प्रयोग

  (MERE ANUBHOOT SARAL LAGHU PRAYOG)




1.घर मे क्लेश का वातावरण अचानक से हो जाए तो थोडा नमक ले कर उसे अपने कंधे पर रख कर उत्तर दिशा की तरफ मुख कर ११ बार निम्न मंत्र का उच्चारण करे. “ उत्तराय सर्व बाधा निवारणाय फट् उस नमक को फिर हाथ मे ले कर घर के बहार थोड़े दूर कही रख दे तो घर मे क्लेश का वातावरण दूर होता है.
· 2.अगर घर मे उपरीबाधा या इतरयोनी की शंका हो तो शाम के समय धूप जलाए और पुरे घर मे “ हं रुद्ररूपाय उपद्रव नाशय नाशय फट्इस मंत्र का उच्चारण करते हुए घुमाए. ऐसा कुछ दिन करने पर इतरयोनी परेशान नहीं करती
· 3.नौकरी के interview के लिए जब जाना हो, उसके एक दिन पहले किसी मज़ार पर जा कर सफ़ेद मिठाई बच्चो मे बांटे, मज़ार पे दुआ करे और एक हरे रंग का धागा बिछे हुए कपडे से निकाले. घर पर आ कर उसे लोहबान का धुप लगाए और अल्लाहु मदद का जाप कर फूंक मारे, ऐसा ८८ बार जाप करे और फूंक मारे. इस धागे को अपनी जेब मे रखकर interview के लिए जाए, सफलता मिलेगी.
· 4.व्यापर वृद्धि के लिए व्यक्ति को अपने व्यापर स्थान पर एक अमरबेल लगानी चाहिए. उसे रोज पानी देना चाहिए तथा अगरबत्ती दिखा कर कोई भी लक्ष्मी मंत्र का जाप करने पर, उस लक्ष्मी मंत्र का प्रभाव बढ़ता है
· 5.किसी भी प्रकार की औषधि लेने से पूर्व उसे अपने सामने रख कर १०८ बार निम्न मंत्र का जाप कर लिया जाए और उसके बाद उसको सेवन के लिए उपयोग किया जाए तो उसका प्रभाव बढ़ता है. “ॐ धनवन्तरि सर्वोषधि सिद्धिं कुरु कुरु नमः
· 6.हाथी दांत का टुकड़ा अपने आप मे महत्वपूर्ण है. किसी भी शुक्रवार की रात्री को उस पर कुंकुम से ‘श्रीं’ लिख कर श्रीसूक्त के यथा संभव पाठ करे. इसके बाद उसे लाल कपडे मे लपेट कर तिजोरी मे रख देने पर निरंतर लक्ष्मी कृपा बनी रहती है

· 7. सूर्य को अर्ध्य देना अत्यंत ही शुभ है. अर्ध्य जल अर्पित करने से पूर्व ७ बार गायत्री का जाप कर अर्पित करने से आतंरिक चेतना का विकास होता है
8. घर के मुख्य द्वार के सामने सीधे ही आइना ना रखे. इससे लक्ष्मी सबंधित समस्या किसी न किसी रूप मे बनी रहती है, अतः इस चीज़ का ध्यान रखना चाहिए

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

नवग्रह शांतिदायक टोटके-------

नवग्रह शांतिदायक टोटके-------
सूर्यः-

१॰ सूर्यदेव के दोष के लिए खीर का भोजन बनाओ और रोजाना चींटी के बिलों पर रखकर आवो और केले को छील कर रखो ।
२॰ जब वापस आवो तभी गाय को खीर और केला खिलाओ ।
३॰ जल और गाय का दूध मिलाकर सूर्यदेव को चढ़ावो। जब जल चढ़ाओ, तो इस तरह से कि सूर्य की किरणें उस गिरते हुए जल में से निकल कर आपके मस्तिष्क पर प्रवाहित हो ।
४॰ जल से अर्घ्य देने के बाद जहाँ पर जल चढ़ाया है, वहाँ पर सवा मुट्ठी साबुत चावल चढ़ा देवें ।
चन्द्रमाः-
१॰ पूर्णिमा के दिन गोला, बूरा तथा घी मिलाकर गाय को खिलायें । ५ पूर्णमासी तक गाय को खिलाना है ।
२॰ ५ पूर्णमासी तक केवल शुक्ल पक्ष में प्रत्येक १५ दिन गंगाजल तथा गाय का दूध चन्द्रमा उदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय ऊपर दी गई विधि का इस्तेमाल करें ।
३॰ जब चाँदनी रात हो, तब जल के किनारे जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को हाथ जोड़कर दस मिनट तक खड़ा रहे और फिर पानी में मीठा प्रसाद चढ़ा देवें, घी का दीपक प्रज्जवलित करें । उक्त प्रयोग घर में भी कर सकते हैं, पीतल के बर्तन में पानी भरकर छत पर रखकर या जहाँ भी चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पानी में दिख सके वहीं पर यह कार्य कर सकते हैं ।
मंगलः-
१॰ चावलों को उबालने के बाद बचे हुए माँड-पानी में उतना ही पानी तथा १०० ग्राम गुड़ मिलाकर गाय को खिलाओ ।
२॰ सवा महीने में जितने दिन होते हैं, उतने साबुत चावल पीले कपड़े में बाँध कर यह पोटली अपने साथ रखो । यह प्रयोग सवा महीने तक करना है ।
३॰ मंगलवार के दिन हनुमान् जी के व्रत रखे । कम-से-कम पाँच मंगलवार तक ।
४॰ किसी जंगल जहाँ बन्दर रहते हो, में सवा मीटर लाल कपड़ा बाँध कर आये, फिर रोजाना अथवा मंगलवार के दिन उस जंगल में बन्दरों को चने और गुड़ खिलाये ।
बुधः-
१॰ सवा मीटर सफेद कपड़े में हल्दी से २१ स्थान पर “ॐ” लिखें तथा उसे पीपल पर लटका दें ।
२॰ बुधवार के दिन थोड़े गेहूँ तथा चने दूध में डालकर पीपल पर चढ़ावें ।
३॰ सोमवार से बुधवार तक हर सप्ताह कनैर के पेड़ पर दूध चढ़ावें । जिस दिन से शुरुआत करें उस दिन कनैर के पौधे की जड़ों में कलावा बाँधें । यह प्रयोग कम-से-कम पाँच सप्ताह करें ।
बृहस्पतिः-
१॰ साँड को रोजाना सवा किलो ७ अनाज, सवा सौ ग्राम गुड़ सवा महीने तक खिलायें ।
२॰ हल्दी पाँच गाँठ पीले कपड़े में बाँधकर पीपल के पेड़ पर बाँध दें तथा ३ गाँठ पीले कपड़े में बाँधकर अपने साथ रखें ।
३॰ बृहस्पतिवार के दिन भुने हुए चने बिना नमक के ग्यारह मन्दिरों के सामने बांटे । सुबह उठने के बाद घर से निकलते ही जो भी जीव सामने आये उसे ही खिलावें चाहे कोई जानवे हो या मनुष्य ।
शुक्रः-
१॰ उड़द का पौधा घर में लगाकर उस पर सुबह के समय दूध चढ़ावें । प्रथम दिन संकल्प कर पौधे की जड़ में कलावा बाँधें । यह प्रयोग सवा दो महीने तक करना है ।
२॰ सवा दो महीने में जितने दिन होते है, उतने उड़द के दाने सफेद कपड़े में बाँधकर अपने पास रखें ।
३॰ शुक्रवार के दिन पाँच गेंदा के फूल तथा सवा सौ उड़द पीपल की खोखर में रखें, कम-से-कम पाँच शुक्रवार तक ।
शनिः-
१॰ सवा महिने तक प्रतिदिन तेली के घर बैल को गुड़ तथा तेल लगी रोटी खिलावें ।
राहूः-
१॰ चन्दन की लकड़ी साथ में रखें । रोजाना सुबह उस चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर पानी में मिलाकर उस पानी को पियें ।
२॰ साबुत मूंग का खाने में अधिक सेवन करें ।
३॰ साबुत गेहूं उबालकर मीठा डालकर कोड़ी मनुष्यों को खिलावें तथा सत्कार करके घर वापस आवें ।
केतुः-
१॰ मिट्टी के घड़े का बराबर आधा-आधा करो । ध्यान रहे नीचे का हिस्सा काम में लेना है, वह समतल हो अर्थात् किनारे उपर-नीचे न हो । इसमें अब एक छोटा सा छेद करें तथा इस हिस्से को ऐसे स्थान पर जहाँ मनुष्य-पशु आदि का आवागमन न हो अर्थात् एकान्त में, जमीन में गड्ढा कर के गाड़ दें । ऊपर का हिस्सा खुला रखें । अब रोजाना सुबह अपने ऊपर से उबार कर सवा सौ ग्राम दूध उस घड़े के हिस्से में चढ़ावें । दूध चढ़ाने के बाद उससे अलग हो जावें तथा जाते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें

टोटका

स्वास्थ्य :
  1. सदा स्वस्थ बने रहने के लिए रात्रि को पानी किसी लोटे-गिलास में सुबह उठ कर पीने के लिए रख दें। उसे पी कर बर्तन को उल्टा रख दें तथा दिन में भी पानी पीने के बाद बर्तन (गिलास आदि) को उल्टा रखने से यकृत संबंधी परेशानियां नहीं होतीं तथा व्यक्ति सदैव स्वस्थ बना रहता है।
  2. किसी भी रविवार/ मंगलवार के दिन फिटकरी का टुकड़ा बच्चे के सिरहाने रख दें। बच्चा बुरे स्वप्न के प्रभाव से दूर रह कर आराम से सो सकेगा।
  3. हृदय विकार, रक्तचाप के लिए एकमुखी, या सोलहमुखी रुद्राक्ष श्रेष्ठ होता है। इनके न मिलने पर ग्यारहमुखी, सातमुखी, अथवा पांचमुखी रुद्राक्ष का उपयोग कर सकते हैं। इच्छित रुद्राक्ष को ले कर श्रावण माह में, किसी प्रदोष व्रत के दिन, अथवा सोमवार के दिन, गंगा जल से स्नान करा कर, शिव जी पर चढ़ाएं। फिर संभव हो तो रुद्राभिषेक करें, या शिव जी पर, ú नमः शिवाय बोलते हुए दूध से अभिषेक कराएं। इस प्रकार अभिमंत्रित रुद्राक्ष को काले डोरे में डाल कर गले में पहनें।
  4. सूर्य भगवान का प्रतिदिन ध्यान करना, सूर्य पर जल चढ़ाना, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना भी हृदय रोग में लाभ देते हैं।
  5. कैंसर की स्थिति में मंगलवार के दिन एक लाल रंग का धागा हाथ मे, या कमर में बांधें। जो धागा न बांधना चाहें, वे तांबे का कड़ा, या छल्ला पहन सकते हैं। बुधवार को थोड़े चावल दान करें तथा शनिवार को 3 ( रत्ती, या अधिक वजन का नीलम, सूर्यास्त के बाद, सोने में पहनें। अपने इष्ट प्रभु का ध्यान करें।
  6. बच्चों को नज़र शीघ्र लगती है। नज़र लगने की दशा में बच्चा लगातार रोता रहता है। आंखों एवं होठों का सूज जाना, चेहरा लाल हो जाना एवं अन्य बीमारी भी हो जाती है। ऐसी स्थिति में राई की धुनी बच्चे को देनी चाहिए। 7 साबुत लाल मिर्च बच्चे पर से उबार कर जला दें। 9 नींबुओं पर तेल लगाएं। फिर उनपर सिंदूर लगावें। अब उन्हंे बच्चे पर से 7 बार उबार कर, किसी चौराहे पर ले जा कर, 4 भाग कर के, चारों दिशाओं में फेंक आएं।

नौकरी-व्यापार :
  1. व्यापार में यदि निरंतर घाटा हो रहा हो, तो बुधवार के दिन यह प्रयोग करें। इस दिन एक पीली बड़ी कौड़ी बाजार से खरीद कर लाएं। 2 लौंग, 2 छोटी इलायची तथा 1 चुटकी दुकान, कारखाना आदि की मिट्टी के साथ उस कौड़ी को जला कर उसकी राख बना लें। यह राख बुधवार को ही एक पान के पत्ते पर रख कर उसमें एक छेद वाला तांबे का पैसा डाल दें और इस पान के पत्ते को सारी सामग्री सहित कहीं बहते पानी में छोड़ दें। जिस बुधवार को यह प्रयोग करें, उस दिन प्रयोग समाप्त होने तक निराहार रहें। किसी भूखे को भोजन तथा दक्षिणा देने के बाद ही भोजन करें। इसको नियमित रूप से 5 बुधवार तक करें। अंतिम, अर्थात पांचवे बुधवार को अपने इष्ट देवता को जल, पुष्प, मिठाई आदि से प्रसन्न करें। उनका प्रसाद पहले स्वयं लें, फिर बाहर के अन्य लोगों को स्वयं बांटे।
  2. मंगलवार के दिन 7 साबुत सीधी डंठल वाली हरी मिर्च और एक नींबू लाएं। इसके पश्चात् उन्हें काले डोरे में पिरो लें। इनको कार्यालय स्थल के बाहर टांग दें। ऐसा हर मंगलवार को करें। ऐसा करने से व्यापार बढ़ता है और नजर, या टोक भी नहीं लगती। यह प्रयोग शनिवार के दिन भी किया जा सकता है।
  3. किसी भी आवश्यक कार्य के लिए घर से निकलते समय घर की देहरी के बाहर, पूर्व दिशा की ओर, एक मुट्ठी लाल धुधंची को रख कर, अपना कार्य बोलते हुए, उसपर बलपूर्वक पैर रख कर, कार्य हेतु निकल जाएं, तो आवश्य ही कार्य में सफलता प्राप्त होगी।
  4. जिन व्यापारियों को लगातार हानि हो रही हो, वे गायत्री मंत्र के द्वारा हवन करवाएं। व्यापार स्थल के हवन की विभूति को, किसी सफेद रंग के कपड़े में डाल कर, घर में तथा व्यापार स्थल पर रखें। हानि होनी बंद हो जाएगी। व्यापार अच्छा चल जाएगा। परेषानी होने पर, सेहत खराब होने पर इस हवन की कुछ विभूती का तिलक करें तथा जीभ से भी चाटें, तो शारीरिक कष्ट दूर होगा तथा बीमारी हर हालत में ठीक हो जाएगी।

वास्तु :
  1. वास्तु दोष दूर करने के लिए किसी शुभ गृह प्रवेश के मुहूर्त में 5 रत्न, या चांदी के छोटे-छोटे 5 टुकड़े ले कर, उन्हें गो दूध, फिर गंगा जल से स्नान करा कर, षोडषोपचार विधि से श्री उमा-महेश्वर का पूजन कर के, ‘शिव तांडव स्तोत्र का एक पाठ करें। फिर इनको घर की चारों दिशाओं में 1-1 फुट नीचे गाड़ दें। 5वां रत्न, या चांदी का टुकड़ा मुख्य द्वार में कहीं गड्ढा कर गाड़ दें। धीरे-धीरे, वास्तु दोष से मुक्ति प्राप्त हो कर, सुख-शांति प्राप्त होगी।
  2. मुख्य द्वार पर आगे-पीछे गणेश जी की प्रतिमा, या चित्र लगाएं।
  3. द्वार पर मंगल कलश, मछली का चित्र, स्वस्त्तिक चिह्न, शुभ-लाभ, जो भी लगा सकते हों, लगाएं।
  4. शनि जन्मकुंडली के चौथे घर में स्थित हो, तो जातक को पैतृक भूमि पर मकान नहीं बनाना चाहिए। यदि जातक ऐसा करता है, तो परिवार के सदस्यों को जिंदगी भर कष्ट उठाने पड़ते हैं। पुत्र रोगी रहता है। तंदुरुस्त होने की हालत में उसे, किसी झूठे मुकदमे मे फंस कर, कारावास की सजा भुगतनी पड़ती है।
  5. शनि जन्मकुंडली के छठें घर में हो, तो भवन निर्माण के पूर्व उस भूमि पर हवनादि करें और जमीन को शुद्ध कर लें, जिससे केतु का प्रभाव मंद पड़ जाता है।
  6. जन्मकुंडली के ग्यारहवें घर में शनि हो, तो मुख्य द्वार की चौखट बनाने से पूर्व उसके नीचे चंदन दबा दें।
  7. एक बार भवन निर्माण का कार्य प्रारंभ हो जाए, तो बीच में उसे रोकें नहीं, अन्यथा पूरे मकान में राहु का वास हो जाता है।
  8. भवन निर्माण शुरू कराने से पूर्व भवन निर्माण करने वालों (कारीगरों) को मिष्ठान्न खिलाएं।
  9. भवन निर्माण से पूर्व मकान की जमीन पर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
  10. भवन निर्माण करते समय जमीन में से, या जमीन पर चीटियां निकले, तो उन चीटियों को शक्कर एवं आटा मिला कर खिलाएं।
  11. भवन के मालिक की जन्मकुंडली में पांचवें घर में केतु हो, तो भवन निर्माण के पहले केतु का दान अवश्य करें।

झाड़ू को लक्ष्मी का रूप माना जाता है,

 घर की साफ-सफाई सभी करते हैं और इस काम के लिए घरों में झाड़ू अवश्य ही रहती है। शास्त्रों के अनुसार झाड़ू के संबंध कई महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं।झाड़ू को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, जब यह घर की गंदगी, धूल-मिट्टी साफ करती है तो इसका मतलब यही है कि देवी महालक्ष्मी हमारे घर से दरिद्रता को बाहर निकाल देती है।घर  में कई वस्तुएं होती हैं कुछ बहुत सामान्य रहती है। इनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। ऐसी चीजों में से एक है झाड़ू। जब भी साफ-सफाई करना हो तभी झाड़ू का काम होता है। अन्यथा इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता।  घर यदि साफ और स्वच्छ रहेगा तो हमारे जीवन में धन संबंधी कई परेशानियां स्वत: ही दूर हो जाती हैं।जब घर में झाड़ू का इस्तेमाल न हो, तब उसे नजरों के सामने से हटाकर रखना चाहिए। झाड़ू वैसे तो एक सामान्य सी चीज है लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। प्राचीन परंपराओं को मानने वाले लोग आज भी झाड़ू पर पैर लगने के बाद उसे प्रणाम करते हैं क्योंकि झाड़ू को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। विद्वानों के अनुसार झाड़ू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाड़ू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है। जिस घर में पूरी साफ-सफाई रहती है वहां धन, संपत्ति और सुख-शांति रहती है। इसके विपरित जहां गंदगी रहती है वहां दरिद्रता का वास होता है। ऐसे घरों में रहने वाले सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कारण घर को पूरी तरह साफ  रखने पर जोर दिया जाता है ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके। घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाड़ू यानि महालक्ष्मी हमें धन-धान्य, सुख-संपत्ति प्रदान करती है। जब घर में झाड़ू का कार्य न हो तब उसे ऐसे स्थान पर रखा जाता है जहां किसी की नजर न पड़े। इसके अलावा झाड़ू को अलग रखने से उस पर किसी का पैर नहीं लगेगा जिससे देवी महालक्ष्मी का निरादर नहीं होगा। यदि भुलवश झाड़ू को पैर लग जाए तो महालक्ष्मी से क्षमा की प्रार्थना कर लेना चाहिए।जब घर में झाड़ू का इस्तेमाल न हो, तब उसे नजरों के सामने से हटाकर रखना चाहिए।ऐसे ही झाड़ू के कुछ सतर्कता के नुस्खे अपनाये गये उनमें से आप सब के समक्ष है जैसे :-

- झाड़ू को कभी भी खड़ा नहीं रखना चाहिए।

- ध्यान रहे झाड़ू पर जाने-अनजाने पैर नहीं लगने चाहिए, इससे महालक्ष्मी का अपमान होता है।

- झाड़ू हमेशा साफ रखें ,गिला न छोडे ।

- ज्यादा पुरानी झाड़ू को घर में न रखें।

- झाड़ू को कभी घर के बाहर बिखरकर न फहके ,जलाना नहीं चाहिए।

- शनिवार को पुरानी झाड़ू बदल देना चाहिए।


- घर के मुख्य दरवाजा के पीछे एक छोटी झाड़ू टांगकर रखना चाहिए। इससे घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

मानव जन्म से ही असर पड़ता है

मानव जन्म से ही असर पड़ता है जातक के भाग्य पर ,उसके मानव शरीर पर,जातक जन्म जिस  मास, तिथि या वार को पैदा हुआ हो, उसका असर इनके आधार पर उनका स्वभाव, वृत्ति, संवेदन, चारित्र, गुण, दोष आदि जान सकते है । क्योके उपरोक्त विषयों का मानव के साथ एक घनिष्ट सम्बन्ध रहा है !आदिकाल से ही शास्त्रों में अनेको बार काल की गणना एवं मनुष्य के भाग्य चक्र का वर्णन आया है क्योके सनातन पद्धति में वार -तिथि-नक्षत्र-एवं पक्षों का एक सुंदर समन्वय शास्त्रों में दर्शाया गया है ! निम्नलिखित विषयों पर मानव जन्म में क्या असर किस मास में कैसा असर दर्शाती है उनका विवरण सनातन पद्धति (विक्रम संवत)द्वारा बताया जा रहा है :-
1. कार्तिकः- कार्तिक मास में जन्मा हुआ व्यक्ति अच्छे काम करने वाला, सुंदर एवं आकर्षक चेहरा, सुंदर केश वाला, ज्यादा बोलने वाला, व्यापारमें रस रखने वाला, उदार, परिश्रमवादी, साहसिक, और हमेशा ईमानदारी से जीवन व्यतित करने वाला, अन्य ऊपर वर्चस्व धराने की इच्छा वाला एवं निर्णय किया हुआ कार्य अवश्य पूर्ण करने वाला होता है ।
2. मार्गशिर्षः- मार्गशिर्ष मास में जन्मा हुआ व्यक्ति कलाओ में रस लेने वाला, यात्रा का शोकीन, परोपकारी, विलासी, चतुर. स्वच्छ दिल वाला, विद्याभ्यास का रसिक, अन्य का किया हुआ कार्य पसंद न आये, ईट का जवाब पत्थर से देने वाला, अन्यो के लिए दुःख सहन करने वाला, सामाजिक कार्यो में रस लेने वाला और सर्विस में वफादार रहने वाला होता है ।
3. पौषः- पौष मास में जन्मा हुआ व्यक्ति साधारण एवं कमजोर शरीर वाला, पिताकी संपत्ति कम प्राप्त करने वाला, पैसा प्राप्त करने में तकलीफ वाला, प्रभावशाली, साधारण स्थिति वाला, लोभी, धर्म का रसिक, स्वाभिमानी, चतुर, माता-पिता के पिछे खर्च करने वाला एवं शत्रुओ के ऊपर  विजय प्राप्त करने वाला होता है ।
4. माघः- माघ मास में जन्मा हुआ व्यक्ति धार्मिक, श्रद्धावान, अच्छे मित्र वाला, विचारशील, संगीतप्रेमी, आकस्मिक पैसे प्राप्त करने वाला, कुटुंब प्रेमी, कर्तव्य परायण, उदार, निःस्वार्थी, जीवन जीनेमें रस रखने वाला होता है ।
5. फाल्गुनः- फाल्गुन मास में जन्मा हुआ व्यक्ति चतुर, व्यवहार कुशल, दयावान, बलवान, जिद्दि, व्यक्ति के स्वभाव को पहचानने वाला, आत्म विश्वासु एवं भावनाशील होता है ।
6. चैत्रः- चैत्र मास में जन्मा हुआ व्यक्ति खाने पीने का शोखीन, अच्छे विचार रखने वाला, नम्र, अच्छे कार्य करने वाला,ईमानदार , स्पष्ट वक्ता, साफ दिल वाला, कला ओर विज्ञान में रस रखने वाला, निडरतासे काम करने वाला, कुटुंबसे सुखी, मिलनसार व्यक्तित्व वाला,  नौकरी -व्यवसायमें प्रतिकूलता खडी करने वाला और मित्रो से लाभ प्राप्त करने वाला होता है ।
7. वैशाखः- वैशाख मास में जन्मा हुआ व्यक्ति भाई से सुखी, अपना कार्य स्वतंत्र करने वाला, गुणवान, बळवान, अन्यको प्रभावित करने वाला, मिलनसार व्यक्तित्व वाला, खुशामत का विरोधी, संतानो के लीए खर्च करने वाला, शुभ और धार्मिक कार्योमें भी खर्च करने वाला एवं आधुनिक विचार वाला होता है ।
8. जेठः- जेठ मास में जन्मा हुआ व्यक्ति चंचल, तीव्र बुद्धि वाला, महेनती , Let go की भावना वाला, विरोध सहन नही करने वाला, कितनेक समय पर व्यसनी, वाचाल, समय के अनुरुप कार्य कुशल, द्रढ निर्णय धराने वाला, स्वतंत्र निर्णय शक्ति वाला, कुटुंब हेतु खर्च करने वाला एवं वांचन प्रीय होता है ।
9. अषाढः- अषाढ मास में जन्मा हुआ व्यक्ति राष्ट्र प्रेमी, गंभीर, दयालु, ज्यादा खर्च करने वाला, मंद पाचन शक्ति धराने वाला, अभिमानी, चंचल मन वाला, अच्छी पारिवारिक भावना रखने वाला, नोकरी से सुखी, वैवाहिक जीवनमें विघ्न वाला, मानसिक शक्तिशाली होता है एवं युवा अवस्था संघर्षमय होती है ।
10. श्रावणः- श्रावण मास में जन्मा हुआ व्यक्ति राष्ट्र प्रेमी, गंभीर, दयालु, धार्मिक, क्रांतिकारी, पुत्रो और मित्रो से सुखी, प्रतिभाशाली, नीडर, सत्यप्रीय, स्पष्ट वक्ता, स्वमानी, कम व्यवहार कुशलता वाला, प्रतिकूल संयोग सहन न करने वाला. संतानो के पीछे ज्यादा रस रखने वाला और आज्ञांकित  होता है।
11. भाद्रपद- भाद्रपद मास में जन्मा हुआ व्यक्ति खुले हाथ खर्च करने वाला, स्त्री और निति नियमोसे दुःख सहन नही करने वाला, कितने समय पर शारिरिक निर्बल, एक ही विचार वाला, ईमानदारी से दुःखी होने वाला, आध्यात्मिक विचारो वाला, विशाल हृदय वाला होता है ।
12. आश्विनः- अश्विन मास में जन्मा हुआ व्यक्ति चतुर, विद्वान, धनवान, असत्य के विरोधी, विचारशील, भावुक, साधारण, जीद्दी, निंदा से दुर रहने वाला, अपने आप आगे बढने वाला, प्रामाणिक वाक्य बोलने वाला, लग्न के बाद ज्यादा सुखी, निडर,सत्ता शोकीन और न्याय प्रिय होते है ।
13. अधिक मासः- अधिक मास में जन्मा हुआ व्यक्ति अच्छे चारित्रवाला, दूर दृष्टि वाला, धार्मिक मनोवृत्तिवाला, मिलनसार व्यक्तित्व का धनी,महेनत करने वाला, विशाल दिल वाला, आचरण शील और परोपकारी होता है ।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

तलाक या लड़ाई-झगड़े से बचना हो तो घर में क्या और क्यों करें?




शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के जीवन के 16 महत्वपूर्ण संस्कार बताए गए हैं, इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार में से एक है विवाह संस्कार। सामान्यत: बहुत कम लोगों को छोड़कर सभी लोगों का विवाह अवश्य ही होता है। शादी के बाद सामान्य वाद-विवाद तो आम बात है लेकिन कई बार छोटे झगड़े भी तलाक तक पहुंच जाते हैं। इस प्रकार की परिस्थितियों को दूर रखने के लिए ज्योतिषियों और घर के बुजूर्गों द्वारा एक उपाय बताया जाता है।

अक्सर परिवार से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए मां पार्वती की आराधना की बात कही जाती है। शास्त्रों के अनुसार परिवार से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या के लिए मां पार्वती भक्ति सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। मां पार्वती की प्रसन्नता के साथ ही शिवजी, गणेशजी आदि सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। अत: सभी प्रकार के ग्रह दोष भी समाप्त हो जाते हैं।

ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ विशेष ग्रह दोषों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में उन ग्रहों के उचित ज्योतिषीय उपचार के साथ ही मां पार्वती को प्रतिदिन सिंदूर अर्पित करना चाहिए। सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। जो भी व्यक्ति नियमित रूप से देवी मां की पूजा करता है उसके जीवन में कभी भी पारिवारिक क्लेश, झगड़े, मानसिक तनाव की स्थिति निर्मित नहीं होती है।

अगर आपको रोड पर दिखाई दे सांप तो समझ लें कि...



सांप एक ऐसा जीव है जिसे अपने सामने देखते ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं। सांप का भय इतना अधिक रहता है कि काफी लोग सांप के नाम से ही घबराते हैं। शास्त्रों के अनुसार सांप को पूजनीय भी बताया गया है। महादेव नाग को आभूषण की तरह अपने गले में धारण करते हैं। सांपों से जुड़े कई शकुन और अपशकुन हमारे समाज में प्रचलित हैं।

यदि आप कहीं जा रहे हैं और रास्ते में आपको सांप दिखाई दे तो इसके कई प्रकार के संकेत बताए गए हैं। ऐसे समय में सांप का दिखाई देना सामान्यत: अपशकुन की श्रेणी में ही आता है। शास्त्रों के अनुसार शकुन और अपशकुन के संबंध में कई प्रकार की अवधारणाएं प्रचलित हैं। किसी भी कार्य की शुरूआत से पहले कई प्रकार की छोटी-छोटी घटनाएं होती हैं। इनमें से कुछ असामान्य सी भी प्रतीत होती हैं। ऐसी ही घटनाओं को शकुन और अपशकुन से जोड़कर देखा जाता है।

शकुन और अपशकुन की छोटी-छोटी घटनाओं में कई प्रकार के संकेत छिपे होते हैं जिन्हें समझने पर भविष्य में होने वाली संभावित घटनाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। आजकल काफी लोग इन मान्यताओं को अंधविश्वास का नाम देते हैं जबकि पुराने समय इनका काफी अधिक महत्व माना जाता था।

जब भी आप किसी शुभ कार्य के लिए जा रहे हैं और रास्ते में कोई सांप दिख जाए तो इस अशुभ संकेत माना जाता है। इसका अर्थ यही है कि आप जिस कार्य के लिए जा रहे हैं उसमें आपको किसी प्रकार की कोई समस्या का सामना करना पड़ सकता है। अत: जब भी ऐसा हो तो कुछ देर रुककर अपने इष्टदेव का स्मरण करके ही कार्य के लिए निकलने चाहिए। यदि संभव हो तो उस समय वह कार्य टाल दिया जाना चाहिए। जरूरी होने पर भगवान को याद करके कार्य करें।
विवाह योग के लिएः- यदि परिवार में योग्य पुत्र या पुत्री का विवाह, प्रयत्न के बाद भी, नहीं हो पा रहा, तो घर में सफेद खरगोश पालना चाहिए और अविवाहित पुत्र, या पुत्री से उसे खाना दिलवाना चाहिए। खरगोश की सेवा उनसे करवानी चाहिए। इससे धीरे-धीरे, विवाह का योग बनने लगता है।
पुरुषों के विवाह में यदि रुकावटें और विलंब हो, तो दोमुखी रुद्राक्ष के पांच दाने लें। एक कटोरी जल में उन्हें पूजा में रखें। धूप, दीप जलाएं। प्रतिदिन तीन माला  'ऊँ पार्वती वल्लवभायु स्वाहा' का जाप करें। यह प्रयोग करीब तीन महीने तक करें। जल पौधें पर चढ़ा दें। तीन महीने की पूजा के पश्चात एक रुद्राक्ष गणेश पर, एक रुद्राक्ष पार्वती पर, एक रुद्राक्ष कार्तिकेय पर, एक रुद्राक्ष नदी को और एक रुद्राक्ष भगवान शिव पर चढ़ा दें। शिवलिंग पर जल चढ़ाए और आराधना करते हुए प्रभु भोलेनाथ से प्रार्थना करें। यह बहुत चमत्कारी टोटका है। अवश्य शीघ्र विवाह के लिए रिश्ते आने लगगें । यह उपाय शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरंभ करें। रुद्राक्ष की पवित्र माला से जाप करें।
ससुराल में प्यार पाने के लिएः- विवाह पश्चात ससुराल में प्यार पाने के लिए और सभी से अच्छे संबंध हों, इसके लिए लड़की को सर्वप्रथम सबका सम्मान करना चाहिए। एक कटोरी में जल लें। उसे पूजास्थल में रखें। धूप दीप जला लें। भोग-प्रसाद रखें। 'ऊँ क्लीं कृष्णाय नमः' मंत्र की एक माला प्रतिदिन जाप करें। पूजा के पश्चात जल पी लें। इलायची एक सुबह, एक शाम को खा लें। परिवार में सुख-शांति रहती है। ससुराल में सबसे मधुर संबंध बना रहता है।
संतान प्राप्ति में विलंब होने के कारण जानने परः- संतान प्राप्ति देव आराधना से होता है। यदि बुध और शुक्र बाधक हों, तो शिव भगवान् का अभिषेक, रुद्राभिषेक करना चाहिए। यदि चंद्रमा बाधक हो, तो यंत्र, मंत्र जाप और औषधियों का उपयोग करना चाहिए। शनि, मंगल और सूर्य बाधक हों, तो दूर्गा देवी की आराधना करनी चाहिए। यदि राहु-केतु बाधक हों तो विधिपूर्वक कुल देवता की पूजा करनी चाहिए। नवग्रह शांति पाठ भी कराना चाहिए।
मंगल दोष निवारण के लिएः- यदि पति मंगला है तो पत्नी को मूंगा धारण करना चाहिए तथा यदि पत्नी मंगली है तो पति को मूंगा धारण करना चाहिए। मूंगा रत्न धारण करने से पति या पत्नी की मांगलिक दोष के क्रूर प्रभाव से रक्षा होती है। देशी मूंगा विद्वान ज्योतिषी के परामर्श से, दाहिने हाथ की अनामिका में, चांदी की अंगूठी में जड़वा कर, मंगलवार के दिन प्रातः काल मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित कर, धारण करना चाहिए।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

क्यों होती है जन्म पत्रिका बनवाने की आवश्यकता


ग्रहों के चक्कर से कोई नहीं बच सकता। रावण जैसा राजा नीति कुशल, विद्वान, बलशाली सभी ग्रहों को वशीभूत करने वाला भी शनि की कुदृष्टि से नहीं बच पाया। राजा हरिशचंद्र को भी ग्रहों ने श्मशान में चौकीदारी करवा दी। राजा नल व दमयंती को भी ग्रहों ने नहीं छोड़ा और चोरी का इल्जाम लगा। राजा रामचंद्र को वन-वन भटकना पड़ा। गांडीवधारी अर्जुन को लूट लिया गया। ग्रह किसी को भी नहीं बख्शते। एक ग्वाले को प्रसिद्ध राजा नेपोलियन बोनापार्ट बना दिया। चाहे कोई भी समाज हो, कोई भी धर्म हो ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति से कोई नहीं बच सकता।
जन्म कुंडली जातक का शरीर है। जिस प्रकार डॉक्टर रोग पहचानकर इलाज करता है, ठीक उसी प्रकार एक कुशल ज्योतिष भी निदान बताने में समर्थ होता है। पीड़ा तो होगी लेकिन उस पीड़ा का अहसास कम होगा। उदाहरणार्थ यदि किसी की जन्म पत्रिका में यह मालूम है कि इसका किसी ट्रक से एक्सीडेंट होगा, उसे उस ग्रहों को अनुकूल बनाने वाले उपाय करने से टक्कर तो होगी, लेकिन सायकल से होगी। यदि पहले से जाना जाए कि इसका तलाक हो सकता है तो उस तलाक करवाने वाले ग्रहों को अनुकूल बनाकर उसे टाला जा सकता है।
ग्रह कोई भगवान नहीं होता, बल्कि आकाशीय मंडल में पृथ्वी के समान ही है। हमारे जन्म के समय उस ग्रहों की रश्मि किस प्रकार पड़ रही है, बस इसी का ज्ञान जन्म पत्रिका से जाना जा सकता है। दशा-अंतरदशा व गोचर स्थिति को जानकर सही-सही भविष्यवाणी की जा सकती है। इस कारण ही जन्म पत्रिका बनवाना चाहिए।

जन्म पत्रिका से क्या-क्या जाना जा सकता है?



जन्म पत्रिका बनना सीखने से पहले हमें जान लेना होगा कि जन्म पत्रिका से क्या-क्या जाना जा सकता है?
जन्म पत्रिका वह है, जिसमे जन्म के समय किन ग्रहों की स्थिति किस प्रकार थी व कौनसी जन्म लग्न जन्म के समय थी। जन्म पत्रिका में बारह खाने होते हैं जो इस प्रकार हैं-

यदि प्रथम भाव में 1 नंबर है तो मेष लग्न होगा, उसी प्रकार 2 नंबर को वृषभ, 3 नंबर को मिथुन, 4 को कर्क, 5 को सिंह, 6 को कन्या, 7 को तुला, 8 को वृश्चिक, 9 को धनु, 10 को मकर, 11 को कुंभ व 12 नंबर को मीन लग्न कहेंगे। इसी प्रकार पहले घर को प्रथम भाव कहा जाएगा, इसे लग्न भी कहते हैं।

जन्म पत्रिका के अलग-अलग भावों से हमें अलग-अलग जानकारी मिलती है, इसे हम निम्न प्रकार जानेंगे-

प्रथम भाव से हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है। इस भाव से जनस्वास्थ्य, मंत्रिमंडल की परिस्थितियों पर भी विचार जाना जा सकता है।

द्वितीय भाव से हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी विचार, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आंख, स्मरण शक्ति, नाक, ठुड्डी, दांत, स्त्री की मृत्यु, कला, सुख, गला, कान, मृत्यु का कारण एवं राष्ट्रीय विचार में राजस्व, जनसाधारण की आर्थिक दशा आयात एवं वाणिज्य व्यवसाय आदि के बारे में जाना जा सकता है। इस भाव से कैद यानी राजदंड भी देखा जाता है।

तृतीय भाव से भाई, पराक्रम, साहस, मित्रों से संबंध, साझेदारी, संचार-माध्यम, स्वर, संगीत, लेखन कार्य, वक्ष स्थल, फेफड़े, भुजाएं, बंधु-बान्धव। राष्ट्रीय ज्योतिष के लिए रेल, वायुयान, पत्र-पत्रिकाएं, पत्र व्यवहार निकटतम देशों की हलचल आदि जाना जाता है।

चतुर्थ भाव में माता, स्वयं का मकान, पारिवारिक स्थिति, भूमि, वाहन सुख, पैतृक संपत्ति, मातृभूमि, जनता से संबंधित कार्य, कुर्सी, कुआं, दूध, तालाब, गुप्त कोष, उदर, छाती, राष्ट्रीय ज्योतिष हेतु शिक्षण संस्थाएं, कॉलेज, स्कूल, कृषि, जमीन, सर्वसाधारण की प्रसन्नता एवं जनता से संबंधित कार्य एवं स्थानीय राजनीति, जनता के बीच पहचान देखा जाता है।

पंचम भाव में विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय भी जानी जाती है क्योंकि यहां से कोई भी ग्रह सप्तम दृष्टि से आय भाव को देखता है।

षष्ठ भाव इस भाव से शत्रु, रोग, ऋण, विघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-चाची, अपयश, चोट, घाव, विश्वासघात, असफलता, पालतू जानवर, नौकर, वाद-विवाद, कोर्ट से संबंधित कार्य, आंत, पेट, सीमा विवाद, आक्रमण, जल-थल सैन्य के बारे में जाना जा सकता है।

सप्तम भाव स्त्री से संबंधित, विवाह, सेक्स, पति-पत्नी, वाणिज्य, क्रय-विक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मूत्राशय, सार्वजनिक, गुप्त रोग, राष्ट्रीय नैतिकता, वैदेशिक संबंध, युद्ध का विचार भी किया जाता है। इसे मारक भाव भी कहते हैं।

अष्टम भाव से मृत्यु, आयु, मृत्यु का कारण, स्त्री धन, गुप्त धन, उत्तराधिकारी, स्वयं द्वारा अर्जित मकान, जातक की स्थिति, वियोग, दुर्घटना, सजा, लांछन आदि इस भाव से विचार किया जाता है।

नवम भाव से धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का निर्माण कराना, योजना, विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य जाने जाते हैं।

दशम भाव से पिता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात, विद्रोह आदि के बारे में जाना जाता है। इस भाव से पदोन्नति, उत्तरदायित्व, स्थायित्व, उच्च पद, राजनीतिक संबंध, जांघें एवं शासकीय सम्मान आदि के बारे में जाना जाता है।

एकादश भाव से मित्र, समाज, आकांक्षाएं, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि जाना जाता है।

द्वादश भाव से व्यय, हानि, दंड, गुप्त शत्रु, विदेश यात्रा, त्याग, असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दुर्भाग्य, जेल, अस्पताल में भर्ती होना, बदनामी, भोग-विलास, बायां कान, बाईं आंख, ऋण आदि के बारे में जाना जाता ह

साढ़ेसाती और कालसर्प


 कुछ लोग कालसर्प योग को नहीं मानते। देखा जाए तो शास्त्रों में कालसर्प योग नाम का कोई भी योग नहीं है। कुछ विद्धानों ने अपने अनुभव के आधार पर राहु और केतु के मध्य सारे ग्रह होने की स्थिति को कालसर्प योग की संज्ञा दी है। हमने भी यह हजारों पत्रिका को देखकर जाना कि ऐसी ग्रह स्थिति वाला व्यक्ति परेशान रहा।

राहु व केतु के मध्य सारे ग्रह आ जाने से कालसर्प योग विशेष प्रभावशाली नहीं होता जबकि केतु व राहु के मध्य ग्रहों का आना अधिक प्रभावी होता है। यहाँ धीरूभाई अम्बानी व सचिन तेंडुलकर के उदाहरण से समझा जा सकता है। दोनों की कुंडली में कालसर्प योग का असर है। दोनों ने ही संघर्ष किया। अत : केतु व राहु के बीच ग्रहों के आने का खासा प्रभाव दिखाई देता है।

इसी प्रकार शनि की साढ़ेसाती भी उसी अवस्था में परेशान करती है जब जन्म-पत्रिका में शनि की प्रतिकूल स्थिति हो। राजा नल, सत्यवादी राजा हरिशचन्द्र, महाराजा विक्रमादित्य जैसे पराक्रमी भी शनि की साढ़ेसाती के फेर से नहीं बच सके तो आम आदमी कैसे बच सकता है?

जन्म-पत्रिका में शनि की अशुभ स्थिति से साढ़ेसाती अशुभ फलदायी रहती है। यदि शनि उच्च राशि तुला में हो या मकर अथवा कुंभ में हो तो हानिप्रद नहीं होता।

शनि नीच राशि मेष में हो या सूर्य की राशि सिंह में हो व लोहे के पाद से हो तो फिर स्वयं भगवान ही क्यों न हो, फल भोगना ही पड़ता है। जब शनि अष्टम में नीच का हो या षष्ट भाव अथवा द्वादश में हो तो अशुभ फल देखने को मिलते हैं।

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दुर्भाग्य दूर करने के लिये

आटे का दिया, १ नीबू, ७ लाल मिर्च, ७ लड्डू,२ बत्ती, २ लोंग, २ बड़ी इलायची बङ या केले के पत्ते पर ये सारी चीजें रख दें |रात्रि १२ बजे सुनसान चौराहे पर जाकर पत्ते को रख दें व प्रार्थना करें,

 

अविवाहित युवती

पाँच सोमवार के व्रत करें, रोज एक रुद्राक्ष और एक बिल्बपत्र शिवलिंग पर चढायें, अगर माहवारी हो तो वह सोमवार छोड़ कर अगला वाला करें, एक समय सात्विक भोजन करें |

जब घर से निकले तब यह प्रार्थना करें = हे दुर्भाग्य, संकट, विपत्ती आप मेरे साथ चलें और पत्ते को रख दें | फिर प्रार्थना करें = मैं विदा हो रहा हूँ | आप मेरे साथ न आयें, चारों रास्ते खुले हैं आप कहीं भी जायें | एक बार करने के बाद एक दो महीने देखें, उपाय लाभकारी है| श्रद्धा से करें |

हवन और यज्ञ करने का मुहुर्त

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शास्त्रों में बताया गया है कि हम जो हवन या यज्ञ करते हैं उसमें दी गई हवि से यानी हवन सामग्री से देवताओं को बल प्राप्त होता है अर्थात वह उनका आहार है। आपने देवासुर संग्राम के विषय में काफी कुछ पढ़ा या सुना होगा जिसमें आपने देखा होगा कि असुर लोग जब देवताओं को पराजित कर देते थे तब असुर यज्ञ भाग पर अधिकार कर लेते थे ताकि देवताओं की शक्ति क्षीण हो जाए।
मान्यताओं के अनुसार हवन और यज्ञ में दी गई आहुति वास्तव में देवताओं को सम्पूर्ण रूप से प्राप्त होती है। देवता आहुतियों से प्रसन्न होते है जिससे आपका मनोरथ यानी आपकी इच्छा पूरी होती है। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जिस हवि और आहुति को यज्ञ और हवन के माध्यम से देवता स्वयं आकर ग्रहण करते हैं उसे कभी भी अशुभ मुहुर्त में नहीं करना चाहिए। हवन और यज्ञ का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए ध्यान रखें कि जब भी इसका संकल्प लें या इसे प्रारम्भ करें उससे पहले मुहुर्त जरूर देख लें  

हवन और यज्ञ के लिए शुभ मुहुर्त क्या होना चाहिए व मुहुर्त किस प्रकार ज्ञात करना चाहिए, आइये इसे देखें 

1.आयन विचार
यज्ञ और हवन के लिए नक्षत्र आंकलन करने से पहले अयन का विचार करलें । उत्तरायन को धर्मशास्त्र में अत्यंत शुभ माना   गया है। अयन सूर्य की गति का नाम है, सूर्य जब उत्तर दिशा में गमन करता है तो उत्तरायण होता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता और दक्षिणायन को रात अत: यज्ञादि कार्य उत्तरायण में करना श्रेष्ठ कहा गया है।

2.नक्षत्र विचार
उत्तरायण में जिस दिन आप यज्ञ या हवन शुरू करें उस दिन नक्षत्रों की स्थिति का आंकलन करलें। विशाखा  कृतिका उत्तराफाल्गुनी उत्तराषाढ़ा  उत्तराभाद्रपद  रोहिणी, रेवती  मृगशि  ज्येष्ठा और पुष्य नक्षत्र में से कोई नक्षत्र दिवस जिस दिन हो आप यज्ञ का श्रीगणेश कर सकते हैं अर्थात यज्ञ शुरू कर सकते हैं।

2.लग्न आंकलन
यज्ञ और हवन के लिए शुभ लग्न मुहुर्त का विचार करना चाहिए । इस सम्बन्ध में बताया जाता है कि जब लग्न अथवा नवमांश में कर्क, मकर, कुम्भ अथवा मीन राशि हो और प्रथम, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्टम, सप्तम, नवम, दशम, एकादश भावों में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बृहस्पति हो तथा 8वां भाव खाली हो तो उत्तम होता है।

3.तिथि आंकलन
तिथि के विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि चतुर्थ, नवम, चतुर्दशी तिथियां रिक्ता तिथि होती है. अत: इन तिथियों में हवन और यज्ञ नहीं करना चाहिए। इन तिथियों के अलावा किसी भी तिथि में यज्ञ किया जा सकता है।

4.ग्रह आंकलन
ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार जिस दिन चन्द्र, मंगल, बृहस्पति और शुक्र नीचस्थ हों या अस्त हों उस दिन यज्ञ और हवन नहीं करना चाहिए।

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

सर्व-संकट-निवारण ‘रुद्राष्टक’ का नित्य पाठ करें।


  Rudrastak Path

॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥
विशेषः- उक्त ‘रुद्राष्टक’ को स्नानोपरान्त भीगे कपड़े सहित शिवजी के सामने सस्वर पाठ करने से किसी भी प्रकार का शाप या संकट कट जाता है। यदि भीगे कपड़े सहित पाठ की सुविधा न हो, तो घर पर या शिव-मन्दिर में भी तीन बार, पाचँ बार, आठ बार पाठ करके मनोवाञ्छित फल पाया जा सकता है। यह सिद्ध प्रयोग है। विशेषकर ‘नाग-पञ्चमी’ पर रुद्राष्टक का पाठ विशेष फलदायी है।